Lok Sabha Elections 2019: पंजाब में अभी धुंधली है तस्वीर, नेताओं में भागमभाग
पंजाब में अंतिम यानी सातवें चरण में लोकसभा चुनाव होने के कारण अभी तक चुनावी मैदान में गर्मी नहीं आई है।
चंडीगढ़ [इन्द्रप्रीत सिंह]। पंजाब में अंतिम यानी सातवें चरण में चुनाव होने के कारण अभी तक चुनावी मैदान में गर्मी नहीं आई है। इक्का-दुक्का सीटों को छोड़कर सभी पार्टियों ने उम्मीदवारों को मैदान में उतार दिया है। शिरोमणि अकाली दल ने फिरोजपुर व बठिंडा संसदीय हलकों से अपने उम्मीदवार घोषित नहीं किए हैं। Congress ने सभी सीटों पर स्थिति स्पष्ट कर दी है।
ज्यों-ज्यों उम्मीदवारों का एलान हो रहा है, त्यों-त्यों पार्टियों के वे नेता, जिन्हें टिकट नहीं मिला है, वे अपनी पार्टी छोड़कर अन्य पार्टियों में राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं। सबसे बड़ा उदाहरण चार दशक Congress में बिताने वाले जगमीत बराड़ का है। Congress में जाने की उनकी तमाम कोशिशें नाकाम होने पर उन्होंने शिरोमणि अकाली दल की तकड़ी को थाम लिया है।
लगभग ऐसा ही हरबंस कौर दूलो ने किया है, लेकिन वह अकाली दल में जाने के बजाय आम आदमी पार्टी में शामिल हुई हैं। अकाली दल के पूर्व विधायक मोहन लाल बंगा, पिछले चुनाव में बागी होकर लड़ने वाले पूर्व विधायक त्रिलोचन सिंह सूंढ आदि Congress में शामिल हो गए हैं। टोहड़ा परिवार आम आदमी पार्टी से नाराज होकर वापस शिरोमणि अकाली दल में शामिल हो गया है। यानी सभी पार्टियों में नेताओं का आना-जाना लगा हुआ है।
पार्टियों में नेताओं आने-जाने के चलते माहौल में भी उथल-पुथल हो रही है। चुनाव शुरू होने से पहले एकबारगी यह लग रहा था कि Congress पंजाब में सभी दूसरी पार्टियों का सूपड़ा साफ कर देगी, लेकिन जैसे-जैसे दूसरी पार्टियों ने उम्मीदवारों के नाम तय किए, वैसे-वैसे स्थितियों में बदलाव आना शुरू हो गया है। आज की तारीख में एक बार फिर से 2014 का माहौल बनता जा रहा है। अगर हम पाटियों के आधार पर इसका आकलन करें तो पता चलता है कि तस्वीर अभी काफी धुंधली है।
शिरोमणि अकाली दल: नेताओं की घर वापसी से जगी उम्मीद
शिरोमणि अकाली दल पंजाब में दस सीटों पर चुनाव लड़ता है। शेष तीन सीटों पर भाजपा अपने उम्मीदवार उतारती है। शिअद ने भी आठ सीटों पर ही उम्मीदवारों की घोषणा की है। बठिंडा और फिरोजपुर, दोनों सीटों पर उम्मीदवारों का एलान बाकी है। 2014 के संसदीय चुनाव में अकाली दल को 26.30 फीसद और भाजपा को 8.70 फीसद वोट मिले थे, जिसके चलते अकाली दल को चार और भाजपा को दो सीटें मिली थीं।
विधानसभा में लगातार दो कार्यकाल लेने वाली शिअद की हालत तो 2012-17 वाली सरकार के दौरान ही खराब होनी शुरू हो गई थी। ड्रग्स को बढ़ावा देने, बेरोजगारी, खेती संकट, किसानों की आत्महत्या, कपास पट्टी में सफेद मक्खी के हमले के बाद सरकार की नाकामी और रेत बजरी के रेट आसमान छूने जैसे मुद्दों के चलते पार्टी को विपक्ष ने निशाने पर ले रखा था, लेकिन 2015 में फरीदकोट के गांव बुर्ज जवाहर सिंह वाला में श्री गुरु ग्रंथ साहिब के अंगों (पन्नों) को फाडऩे और उन्हें गलियों में फेंकने जैसे मुद्दे का मामला इस कद्र बिगड़ा कि पार्टी के बड़े-बड़े नेता घरों में कैद होकर रह गए। उस पर तुर्रा यह कि डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को माफी दे दी गई, जिससे बड़ी गिनती में पंथक वोट हिल गया। 2017 में हुए चुनाव में पार्टी को 9.4 फीसद और भाजपा को 1.8 फीसद वोटों का नुकसान हुआ। सरकार बनाना तो दूर पार्टी विपक्ष के नेता की कुर्सी भी नहीं ले सकी।
इन संसदीय चुनाव में पार्टी इस बात की पूरी कोशिश में है कि जैसे-तैसे पंथक वोट बैंक को वापस पार्टी फोल्ड में लाया जाए। इसलिए पार्टी ने ज्यादातर साफ छवि वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। 92 साल की आयु में पहुंचने वाले पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल भी पार्टी को निराशा से निकालने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं। अपने धुर विरोधियों को पार्टी में वापस लाने, नाराजगी दूर करने में वे खुद जुटे हुए हैं। अब तक दो दर्जन से ज्यादा नेताओं को पार्टी में शामिल किया जा चुका है। इनमें से छह ऐसे हैं, जिन्होंने पिछले चुनाव में आम आदमी पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ा था। टोहरा परिवार की भी वापसी हो गई है। वहीं, पार्टी प्रधान सुखबीर बादल हर विधानसभा हलके में जाकर रैलियां कर रहे हैं। उनके खुद भी चुनावी मैदान में उतरने की पूरी उम्मीद है।
Congress: बागियों से ही पार पाने में जुटी
2017 में पहली बार प्रदेश के इतिहास में 77 सीटें लेने वाली Congress के लिए महीना भर पहले लग रहा था कि उसका कोई मुकाबला नहीं है। विधानसभा की तरह इस बार लोकसभा चुनाव में भी पार्टी रिकॉर्ड कायम करेगी, लेकिन जैसे-जैसे उम्मीदवारों के नाम तय हो रहे हैं और जातीय समीकरणों के उलट सीटें दी जा रही हैं, उससे पार्टी उलझती जा रही है। गुरदासपुर, पटियाला, लुधियाना जैसी तीन-चार सीटों को छोड़कर ज्यादातर सीटों पर Congress को बागियों का सामना करना पड़ रहा है।
जालंधर में मोहिंदर सिंह केपी, होशियारपुर में पूर्व सांसद संतोष चौधरी, आरक्षित सीटों पर वाल्मीकि बिरादरी और श्री आनंदपुर सीट पर पिछड़ी श्रेणियों के विरोध ने पार्टी नेताओं को परेशानी में डाल रखा है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जिन सीटों पर अपनी पसंद के उम्मीदवारों को खड़ा किया है, उनमें बागियों को मनाने के लिए उन्हें खुद उतरना पड़ रहा है।
मुद्दों की बात करें तो Congress को अपनी कर्ज माफी योजना से काफी उम्मीदें थीं, यह योजना भी उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रही है। रेत, ड्रग्स, केबल और ट्रांसपोर्ट जैसे माफिया को खत्म करने के पार्टी के इरादों में केवल ड्रग्स पर ही कुछ काम हुआ है। शेष सभी मुद्दे वहीं पर हैं। ट्रांसपोर्ट पॉलिसी, एग्रीकल्चर पॉलिसी और वाटर पॉलिसी अभी तक लागू होने की बाट जोह रही हैं।
भाजपा: अमृतसर को छोड़ अन्य क्षेत्रों में उम्मीदवारों की तलाश अभी तक जारी
इन चुनाव में सबसे कम सीटें लड़ने वाली भाजपा को अभी तक अमृतसर को छोड़ अभी तक सशक्त उम्मीदवार ही नहीं मिले हैं। लिहाजा एक बार फिर से पार्टी का फोकस सेलिब्रिटी पर है। पार्टी गुरदासपुर से अक्षय खन्ना या कविता खन्ना को उम्मीदवार बनाना चाहती है। हालांकि, उनके पास नरेंद्र परमार, मास्टर मोहन लाल और अश्वनी शर्मा जैसे पार्टी कैडर के नेता मौजूद हैं। अमृतसर में पार्टी ने हरदीप पुरी को उम्मीदवार बना दिया है।
पिछले चुनाव में यहीं से अरुण जेटली कैप्टन अमरिंदर सिंह के हाथों बुरी तरह हार गए थे। यहां से कभी सिने स्टार सनी दियोल तो कभी पूनम ढिल्लों को लड़वाने की चर्चा भी हुई थी। होशियारपुर में मौजूदा सांसद विजय सांपला और विधायक सोमप्रकाश के बीच टिकट लेने के लिए कांटे का मुकाबला है। टिकटों का आवंटन न होने के कारण पार्टी प्रचार में काफी पिछड़ गई है। हालांकि, पार्टी ने तीनों सीटों पर संसदीय सीट के प्रभारियों को भेजकर मोदी के नाम पर वोट डलवाने की मुहिम तेज कर रखी है।
आम आदमी पार्टी: छोड़ कर जाने वालों से हो सकता है नुकसान
आम आदमी पार्टी ने सभी 13 सीटों पर सबसे पहले उम्मीदवार उतारे हैं, लेकिन पार्टी केवल संगरूर सीट पर ही लड़ती नजर आ रही है। चूंकि पार्टी के पास भगवंत मान के अलावा कोई और बड़ा नेता नहीं है लिहाजा प्रचार के मामले में पार्टी जहां पिछड़ रही है, वहीं कई अहम नेताओं के पार्टी को छोड़ देने से धारणा भी उसके खिलाफ बन रही है।
भगवंत मान खुद संगरूर सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं, इसलिए दूसरी सभी सीटों पर प्रचार के लिए उम्मीदवार या तो खुद ही लगे हुए हैं या फिर वॉलंटियरों के जरिए घर-घर जाने की मुहिम चलाई जा रही है। पार्टी के कई विधायकों के टूटने और पंजाब एकता पार्टी पार्टी की ओर से मैदान में उतरने के कारण भी आप को नुकसान हो रहा है। वैसे पार्टी के नेता इसे अपने लिए अच्छा मानते हैं। उनका कहना है कि मौकापरस्त नेताओं के चले जाने से पार्टी रिफाइन हो रही है।
लोगों तक पहुंचने के लिए आम आदमी पार्टी ने भगवंत मान की ओर से वोटरों के नाम लिखी खुली चिट्ठी का सहारा लिया है। वॉलंटियरों के जरिए ये चिट्ठी घर-घर पहुंचाई जा रही है। फोन किए जा रहे हैं, लेकिन साफ तौर पर देखने में आ रहा है कि पिछली बार की तरह न तो इस बार उन्हें एनआरआइज का साथ मिल रहा है और न ही पंजाब के लोगों में उनके लिए वह सम्मान रह गया है, जो पिछले चुनाव में था।
पीडीए: खुद न जीतें पर दूसरों का बिगाड़ सकते हैं खेल
पंजाबी एकता पार्टी, शिरोमणि अकाली दल टकसाली, लोक इंसाफ पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और भाकपा आदि छोटे-छोटे दलों ने पंजाब डेमोक्रेटिक अलायंस बनाया है। पीडीए ने सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं। आम आदमी पार्टी से अलग हुए सुखपाल खैहरा के नेतृत्व में चल रहा यह गठजोड़ अभी केवल तीन-चार सीटों पर ही अपना अस्तित्व बना पाया है।
पटियाला में डॉ. धर्मवीर गांधी और श्री खडूर साहिब में पूर्व मानवाधिकार कार्यकर्ता जसवंत सिंह खालड़ा की पत्नी पमरजीत कौर खालड़ा व बठिंडा से सुखपाल खैहरा ही ऐसे हैं, जो चुनाव में एक कोण बनते नजर आ रहे हैं, लेकिन क्या ये गठजोड़ 2014 में उस तरह की भूमिका में होगा जैसा कि आम आदमी पार्टी थी, इस बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन इतना अवश्य है कि गठजोड़ खुद कोई सीट जीत पाए या न पाए, लेकिन अपनी-अपनी पेरेंटल पार्टियों की जड़ों में तेल जरूर देगा।