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Maharastra Election 2019: नई पीढ़ी के लड़ाकों का गवाह बन रहा मराठवाड़ा

Maharashtra Election 2019 मराठवाड़ा इस बार कई रोचक लड़ाइयों का गवाह बनने जा रहा है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Fri, 18 Oct 2019 07:34 PM (IST)Updated: Fri, 18 Oct 2019 07:56 PM (IST)
Maharastra Election 2019: नई पीढ़ी के लड़ाकों का गवाह बन रहा मराठवाड़ा
Maharastra Election 2019: नई पीढ़ी के लड़ाकों का गवाह बन रहा मराठवाड़ा

ओमप्रकाश तिवारी, लातूर:  Maharashtra Assembly Election 2019: महाराष्ट्र के मौसमी सूखे का प्रभाव भले इसके मराठवाड़ा क्षेत्र पर सबसे ज्यादा हो, लेकिन नए सियासी खिलाड़ियों की पैदावार में यह कतई पीछे नहीं है। यहां कभी विलासराव देशमुख और गोपीनाथ मुंडे आपस में टकराते देखे जाते थे, तो आज उनकी अगली पीढ़ियां ताल ठोंकती दिखाई दे रही हैं।

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लड़ाई दो गठबंधनों के बीच

कभी निजाम हैदराबाद की रियासत का भाग रहा मराठवाड़ा 1960 में महाराष्ट्र राज्य का गठन होने के बाद इसका हिस्सा बना। आठ जिलों–औरंगाबाद, बीड, जालना, परभणी, हिंगोली, नांदेड़, लातूर और उस्मानाबाद में कुल 46 विधानसभा सीटें हैं। 2014 में कांग्रेस, राकांपा, शिवसेना और भाजपा की अलग-अलग लड़ाई में भाजपा 15, शिवसेना 11, कांग्रेस नौ और राकांपा आठ सीटें पाने में कामयाब रही थीं। इस बार लड़ाई भाजपा-शिवसेना गठबंधन और कांग्रेस-राकांपा गठबंधन के बीच है। मराठवाड़ा भले पिछड़ा रहा हो, लेकिन इसने कई दिग्गज नेता महाराष्ट्र को दिए। लातूर से शिवाजीराव निलंगेकर और विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री रहे, तो नांदेड़ के शंकरराव चह्वाण एवं उनके पुत्र अशोक चह्वाण भी मुख्यमंत्री रहे। बीड के गोपीनाथ मुंडे 1995 में पहली बार बनी शिवसेना-भाजपा गठबंधन सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे।

जलयुक्त शिवार योजना ने काफी काम किया

लेकिन इतने दिग्गज नेता देनेवाला मराठवाड़ा विकास के मामले में सूखे का सूखा ही रहा। ऊपर से पिछले पांच वर्ष में तीन वर्ष सूखे के झेलनेवाले इसी क्षेत्र में कुछ वर्ष पहले पीने का पानी भी ट्रेन से भिजवाने की नौबत आ गई थी। यही कारण रहा कि पांच वर्ष पहले आई देवेंद्र फड़नवीस ने 2015 से जलयुक्त शिवार योजना के जरिए गांव का पानी गांव में संचय करने की योजना शुरू की। इसके तहत काफी काम हुआ भी है। लेकिन क्षेत्र को इसका लाभ तभी मिल पाएगा, जब अच्छी बरसात हो, और जलयुक्त शिवार योजना के तहत तैयार तालाब, बावड़ी और नाले पूरी तरह भर जाएं। मराठवाड़ा को सूखे से उबारने के लिए भाजपा ने अपने इस बार के संकल्प पत्र में कोकण क्षेत्र से बरसात का वह पानी मराठवाड़ा में लाने की घोषणा की है, जो फिलहाल बिना उपयोग किए समुद्र में बह जाया करता है।

बीड जिले में मुंडे की बेटी और भतीजा आमने-सामने

मराठवाड़ा इस बार कई रोचक लड़ाइयों का गवाह बनने जा रहा है। इनमें उन्हीं नेताओं की अगली पीढ़ियां जोर-आजमाइश करती दिखाई दे रही हैं, जो अब नहीं रहे। बीड जिले की परली विधानसभा सीट पर गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे और भतीजे धनंजय मुंडे आमने-सामने हैं। पिछला चुनाव धनंजय मुंडे अपनी चचेरी बहन से ही हारे थे। इस बार वह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के ही टिकट पर पंकजा के सामने किस्मत आजमा रहे हैं। इसी प्रकार लातूर से पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के दो बेटे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। बड़े बेटे अमित देशमुख लातूर शहर से तो छोटे बेटे धीरज देशमुख लातूर ग्रामीण से मैदान में हैं। अमित पहले भी विधायक रह चुके हैं, जबकि धीरज पहली बार मैदान में हैं।

निलंगा सीट पर परिवार के दो सदस्‍य आमने-सामने

निलंगा सीट पर पर परली की ही तरह एक ही परिवार के दो सदस्य आमने-सामने हैं। करीब तीन दशक पहले कांग्रेस शासन में मुख्यमंत्री रहे शिवाजीराव पाटिल निलंगेकर के पौत्र एवं फड़नवीस सरकार में मंत्री रहे संभाजी पाटिल निलंगेकर को इस बार अपने ही चाचा अशोक का सामना करना पड़ रहा है। अशोक पाटिल 2014 में एक बार अपने भतीजे से हार चुके हैं। यही नहीं, 2004 में संभाजी पाटिल अपने दादा शिवाजीराव पाटिल निलंगेकर को भी एक बार पराजित कर चुके हैं।

लातूर जिले का हिस्सा निलंगा लंबे समय तक कांग्रेस का गढ़ रहा है। लेकिन निलंगेकर परिवार में भाजपा की घुसपैठ के बाद यहां स्थिति बदल चुकी है। लातूर के पड़ोस की सीट तुलजापुर में भी युवा नेता राणा जगजीत सिंह पांच बार कांग्रेस के विधायक रहे मधुकर राव चह्वाण को चुनौती दे रहे हैं। राणा जगजीत सिंह दिग्गज राकांपा नेता एवं पूर्व सांसद पद्मसिंह पाटिल के पुत्र हैं और हाल ही में भाजपा में शामिल हुए हैं। 


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