महाराष्ट्र में सीएम और डिप्टी सीएम को लेकर 1995 के फार्मूले पर बन सकती है बात
Maharashtra BJP. शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत कह रहे हैं कि इस बार सरकार का रिमोट कंट्रोल उद्धव ठाकरे के हाथ में होगा।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। शिवसेना फिलहाल ढाई-ढाई साल के फार्मूले पर अड़ी हुई है। लेकिन माना जा रहा है कि बुधवार को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के मुंबई आगमन के बाद दोनों दलों में 1995 के फार्मूले पर बात बन सकती है। जिसके अनुसार अधिक सीटें पाने वाले दल का मुख्यमंत्री और कम सीटें पाने वाले दल का उपमुख्यमंत्री बना था।
गुरुवार को विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद से ही शिवसेना 50-50 के फार्मूले की रट लगाती आ रही है। उसके नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक में शिवसेना के लिए ढाई साल के मुख्यमंत्री की मांग उठ चुकी है। शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत कह रहे हैं कि इस बार सरकार का रिमोट कंट्रोल उद्धव ठाकरे के हाथ में होगा। स्वयं उद्धव ठाकरे भी कह चुके हैं कि यदि ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री पर भाजपा सहमत नहीं हुई, तो उनके पास दूसरे विकल्प भी खुले हैं।
माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा से 49 सीटें कम जीतने वाली शिवसेना द्वारा ये सारी बातें भाजपा पर दबाव बनाने के लिए कही जा रही हैं। ताकि भाजपा 1995 के फार्मूले के अनुसार शिवसेना को उपमुख्यमंत्री पद के साथ कुछ प्रमुख मंत्रालय देने पर राजी हो जाए। यह भी समझा जा रहा है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के साथ यदि शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे की बातचीत हुई, तो इस फार्मूले पर सहमति बनते देर भी नहीं लगेगी।
1995 में शिवसेना-भाजपा दूसरी बार गठबंधन करके विधानसभा चुनाव लड़े थे। उस समय गठबंधन के शिल्पकार कहे जानेवाले वरिष्ठ भाजपा नेता प्रमोद महाजन और शिवसेना प्रमुख बालासाहब ठाकरे के बीच यह तय हुआ था कि भाजपा केंद्र की राजनीति करेगी और शिवसेना राज्य की। इसलिए शिवसेना राज्य में अधिक सीटों पर चुनाव लड़ेगी और भाजपा लोकसभा में अधिक सीटों पर।
इसके साथ ही यह भी तय हुआ था कि राज्य में जिसकी सीटें अधिक आएंगी, उसका मुख्यमंत्री बनेगा और जिसकी सीटें कम होंगी, उसका उपमुख्यमंत्री। हालांकि दोनों दलों द्वारा लड़ी गई सीटों का अंतर इतना अधिक था कि कम सीटों पर लड़ने वाले दल का अधिक सीटें जीतकर मुख्यमंत्री बनना लगभग असंभव था। तब शिवसेना 169 सीटों पर चुनाव लड़कर 73 सीटें और भाजपा 116 पर लड़कर 65 सीटें जीतने में कामयाब रही थीं। गठबंधन की शर्त के अनुसार शिवसेना को मुख्यमंत्री और भाजपा को उपमुख्यमंत्री का पद मिला था। उस समय गृह, राजस्व और पीडब्ल्यूडी जैसे प्रमुख मंत्रालय भी भाजपा के ही पास थे।
जबकि 2014 में भाजपा से अलग होकर लड़ी शिवसेना सरकार बनने के एक माह बाद सरकार में शामिल तो हो गई थी, लेकिन उसके हिस्से पीडब्ल्यूडी छोड़कर कोई प्रमुख मंत्रालय नहीं आया। यहां तक कि केंद्र सरकार में 2014 में भी उसे सिर्फ एक भारी उद्योग मंत्रालय मिला था, और इस बार उसे सिर्फ इसी एक मंत्रालय से अब तक संतोष करना पड़ रहा है। अब सत्ता संतुलन की प्रमुख कड़ी बनकर उभरी शिवसेना केंद्र और राज्य दोनों जगह हिसाब बराबर करना चाहती है। इसी योजना के तहत वह ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री की बात उठा रही है। ताकि सत्ता की सौदेबाजी शुरू हो, तो भाजपा कम से कम 1995 के फार्मूले पर तो राजी हो ही जाए।
बता दें कि विधानसभा चुनाव में भाजपा को 105 और शिवसेना को 56 सीटें प्राप्त हुई हैं। शिवसेना चार निर्दलीय विधायकों के समर्थन का दावा कर रही है, तो भाजपा 15 निर्दलीय विधायकों के। पिछली विधानसभा का कार्यकाल आठ नवंबर को समाप्त हो रहा है। उससे पहले नई सरकार का गठन होना है। सोमवार को मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी से मिलकर उन्हें राज्य के राजनीतिक हालात की जानकारी दे चुके हैं।
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