MP Election 2018: सपाक्स का असर, कांग्रेस-भाजपा ने 25 फीसदी ब्राह्मण-क्षत्रियों को दिया टिकट
MP Election 2018: नमें से ज्यादातर प्रत्याशी बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र की सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं।
भोपाल, नईदुनिया स्टेट ब्यूरो। आरक्षण के खिलाफ प्रदेश में सुलगी आग का असर कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशियों की सूची में साफ दिख रहा है। इस मुद्दे को लेकर सपाक्स पार्टी के मैदान में आने के बाद दोनों पार्टियों ने अनारक्षित वर्ग के मतदाताओं को साधने के लिए रणनीति बदली है। पार्टियों ने 25 फीसदी से ज्यादा सीटों से ब्राह्मण एवं क्षत्रिय समाज के नेताओं को प्रत्याशी बनाया है। इनमें से ज्यादातर प्रत्याशी बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र की सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं।
आरक्षित वोट बैंक को लुभाने के लिए राज्य की भाजपा सरकार पदोन्न्ति में आरक्षण जैसे मसले पर खुलकर सामने आ गई। आरक्षित और अनारक्षित वर्ग के कर्मचारियों की इस लड़ाई में सरकार की दखलंदाजी अनारक्षित वर्ग के कर्मचारियों को रास नहीं आई और वे प्रदेश में सपाक्स समाज संस्था और सवा महीने पहले सपाक्स पार्टी का गठन कर मैदान में उतर गए। सपाक्स पार्टी के गठन से पहले प्रदेश में आरक्षण को लेकर ऐसा माहौल बना कि सत्तारुढ़ भाजपा और विपक्षी पार्टी कांग्रेस को ऐनवक्त पर अपनी रणनीति बदलनी पड़ी है। हालांकि पार्टियों ने आरक्षित वर्ग को साधने के लिए इस वर्ग के नेताओं को भी टिकट दी है।
भाजपा-कांग्रेस में बराबर दहशत
आरक्षण के मामले में अनारक्षित वर्ग खासकर सत्तारुढ़ भाजपा से नाराज है, लेकिन दहशत दोनों ही पार्टियों में है। ब्राह्मण नेताओं पर भरोसा जताने में कांग्रेस, भाजपा से एक कदम आगे है। भाजपा ने 230 सीटों में से 29 सीटों पर ब्राह्मण नेताओं को प्रत्याशी बनाया है, जबकि कांग्रेस ने 229 सीटों में से 30 पर। वहीं ठाकुरों पर भरोसा जताने में भाजपा आगे है। पार्टी ने 33 ठाकुर नेताओं को मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस ने 32 को।
बुंदेलखंड, विंध्य में ज्यादा प्रभाव
सूत्रों के मुताबिक आरक्षण मुद्दे का सबसे ज्यादा प्रभाव बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र में है। इसलिए कांग्रेस और भाजपा ने दोनों ही क्षेत्रों में अनारक्षित वर्ग के प्रत्याशियों को ज्यादा तवज्जो दी है। इस मुद्दे पर आरक्षित और अनारक्षित वर्ग ने भारत बंद का आह्वान किया है, तब इन्हीं क्षेत्रों में सबसे ज्यादा असर दिखाई दिया था। यह असर विधानसभा चुनाव में न दिखाई दे, इसलिए पार्टियों ने दोनों क्षेत्रों की सीटों पर विशेष ध्यान दिया है।
दांत खट्टे किए
कांग्रेस हो या भाजपा। दोनों ही दलों ने सपाक्स के आंदोलन को कोरी भभकी बताया था। इन पार्टियों के नेताओं का मानना था कि सपाक्स चुनाव में प्रभाव डालना तो दूर प्रत्याशी भी खड़े नहीं कर पाएगी, लेकिन पार्टी ने कम समय में स्थिति को संभाला। पार्टी ने सभी 230 सीटों से प्रत्याशी उतारने का दावा किया था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। फिर भी 129 प्रत्याशी उतारकर दोनों प्रमुख दलों के लिए समस्या खड़ी कर दी है।
इन सीटों से प्रमुख नेता मैदान में
भाजपा ने मेहगांव से राकेश शुक्ला, भिंड से चौधरी राकेश चतुर्वेदी, भितरवार से अनूप मिश्रा, दतिया से नरोत्तम मिश्रा, रहली से गोपाल भार्गव, सेमरिया से केपी त्रिपाठी और कांग्रेस ने जौरा से बनवारी लाल शर्मा, ग्वालियर दक्षिण से प्रवीण पाठक, खुरई से अरुणोदय चौबे, महाराजपुर से नीरज दीक्षित, छतरपुर से आलोक चतुर्वेदी को मैदान में उतारा है।
हमारे आंदोलन का असर
भाजपा और कांग्रेस ने पहली बार इतनी संख्या में अनारक्षित वर्ग से प्रत्याशी उतारे हैं। यह सपाक्स के आंदोलन का असर है। वरना, भाजपा-कांग्रेस का फोकस इस बार सिर्फ आरक्षित वर्ग पर था - डॉ. केएल साहू, उपाध्यक्ष, सपाक्स पार्टी
जाति आधार पर प्रत्याशी
जाति कांग्रेस भाजपा
ब्राह्मण 30 29
क्षत्रीय 32 33
ओबीसी 71 66
एससी 35 35
एसटी 47 47
मुस्लिम 03 01
सिंधी 01 01
जैन 06 09
सिख 03 01
वैश्य 01 08