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MP Election 2018: चुनावी नैया पार लगाने में ही उलझे रहे भाजपा के 13 पदाधिकारी

MP Election 2018 : इस बार सांसद-महामंत्री, कोषाध्यक्ष, मंत्री और 8 उपाध्यक्ष चुनावी मैदान में थे। वहीं अपने ही क्षेत्र में घिरे रहे भाजपा संगठन के दिग्गज नेता।

By Hemant UpadhyayEdited By: Published: Sun, 02 Dec 2018 10:28 PM (IST)Updated: Mon, 03 Dec 2018 07:39 AM (IST)
MP Election 2018: चुनावी नैया पार लगाने में ही उलझे रहे भाजपा के 13 पदाधिकारी
MP Election 2018: चुनावी नैया पार लगाने में ही उलझे रहे भाजपा के 13 पदाधिकारी

भोपाल। विधानसभा के चुनावी भंवर में भाजपा के 13 प्रदेश पदाधिकारी ऐसे घिरे कि अपने क्षेत्र से बाहर ही नहीं निकल पाए। प्रमुख पदाधिकारी के नाते उनसे अपेक्षा थी कि पार्टी के अन्य उम्मीदवारों की मदद करेंगे, लेकिन वे अपनी सीट ही बचाने की जद्दोजहद करते रहे।

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एक प्रदेश मंत्री राघवेंद्र सिंह लोधी तो टिकट न मिलने पर निर्दलीय ही मैदान में कूद गए। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं जबलपुर सांसद राकेश सिंह की टीम के कुल 11 उपाध्यक्षों में से 8 चुनावी मैदान में थे। पार्टी के कोषाध्यक्ष, मंत्री और महामंत्री जैसे पदाधिकारी भी चुनावी अखाड़े में दो-दो हाथ करते नजर आए।

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की टीम के एक चौथाई से अधिक पदाधिकारी पूरे समय चुनावी चक्रव्यूह में फंसे रहे। प्रदेश पदाधिकारी के नाते पार्टी को उनसे उम्मीद थी कि वे पड़ोसी जिलों में जाकर दूसरे प्रत्याशियों को भी मदद करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। ये सभी दिग्गज नेता अपने ही क्षेत्र में घिर गए थे। यहां तक कि देवास सांसद एवं पार्टी के महामंत्री मनोहर ऊंटवाल आगर विधानसभा से उम्मीदवार थे।

उनके खिलाफ कांग्रेस के युवा तुर्क एवं भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन के प्रदेश अध्यक्ष विपिन वानखेड़े ताल ठोक रहे थे। पहली बार चुनावी मैदान में उतरे वानखेड़े की चुनौती के चलते परिपक्व राजनेता ऊंटवाल अपने संसदीय क्षेत्र की विधानसभाओं में भी पार्टी के प्रचार के लिए समय नहीं निकाल पाए।

क्षेत्र में ही घिरे रहे

कमोबेश यही स्थिति भाजपा के प्रदेश कोषाध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल की बैतूल में रही। उनके खिलाफ भी कांग्रेस ने अपने नए नवेले प्रत्याशी निलय विनोद डागा को मैदान में उतारा तो खंडेलवाल भी चुनावी भंवर में ऐसे उलझे रहे कि दूसरे प्रत्याशियों की मदद करने नहीं निकल पाए। उनके सामने अपने क्षेत्र के मतदाताओं से डोर-टू-डोर संपर्क की चुनौती बनी रही।

खंदक की लड़ाई

भाजपा संगठन के चार मंत्री भी चुनावी अखाड़े में मौजूद थे। इनमें तीन शरदेंदु तिवारी, ब्रजेंद्र प्रताप सिंह और कृष्णा गौर को तो पार्टी ने टिकट दे दिया, लेकिन राघवेंद्र सिंह लोधी 'ऋषि भैया" जबेरा से निर्दलीय ही मैदान में कूद पड़े।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के खिलाफ शरदेंदु पूरे समय अपनी खंदक की लड़ाई लड़ते रहे। पिछली बार पवई में चुनाव हार चुके ब्रजेंद्र को पार्टी ने इस बार पन्नाा में मंत्री कुसुम सिंह महदेले को घर बिठाकर मैदान में उतारा है। उनके सामने कांग्रेस-बसपा सहित चौतरफा चुनौतियां इतनी थीं कि पुराने क्षेत्र पवई और गुन्नाौर में प्रचार करने की सोच भी नहीं पाए।

अपनी नैया ही संभालते रहे

आठ उपाध्यक्षों में रामेश्वर शर्मा भोपाल की हुजूर सीट पर कांग्रेस के नरेश ज्ञानचंदानी की चुनौतियों से दो-चार हो रहे थे। उन्हें पार्टी की अंदरूनी चुनौतियों से भी जूझना पड़ा। भिंड जिले में अटेर से उपचुनाव हार चुके अरविंद भदौरिया को भाजपा ने फिर कांग्रेसी उम्मीदवार हेमंत कटारे को टक्कर देने भेजा। इंदौर की ऊषा ठाकुर अंतिम क्षणों में अपना क्षेत्र बदल दिए जाने से महू में हैरान-परेशान बनी रहीं।

उनके सामने कांग्रेस के अंतरसिंह दरबार मैदान में थे। ऊषा क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दिखाने में ही व्यस्त बनी रहीं। उधर पूर्व मंत्री रंजना बघेल मनावर में जयस एवं कांग्रेस के हीरालाल अलावा की चुनौती से घिरी रहीं। आदिवासी नेता रामलाल रौतेल अनूपपुर में उलझे रहे, उन्हें कांग्रेस के बिसाहू लाल सिंह ने जबरदस्त टक्कर दी।

टिकट के साथ चुनौतियां भी मिलीं

पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर की पुत्रवधु कृष्णा गौर भी प्रदेश भाजपा की उपाध्यक्ष हैं। टिकट पाने की जद्दोजहद से निपटने के बाद उनके सामने कांग्रेस प्रत्याशी गिरीश शर्मा की चुनौती से ज्यादा भीतरघात पर काबू पाने का संकट बना रहा।

गोविंदपुरा सीट को छोड़ वह जिस मोहल्ले में रहती हैं, उस दक्षिण-पश्चिम विधानसभा में भी प्रचार के लिए समय नहीं निकाल पाईं। सागर की नरयावली सीट पर पार्टी के एक और उपाध्यक्ष प्रदीप लारिया के सामने कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष सुरेंद्र चौधरी की चुनावी चुनौती थी, वह भी पड़ोसी क्षेत्र के वार्ड-मोहल्ले में भी प्रचार को नहीं जा सके। 


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