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MP Assembly election 2023: कहानी उस नेता की, जिसने शराब बेची; मजदूरी की और फिर एक वारंट ने बना दिया मुख्‍यमंत्री

MP Assembly election 2023 सीएम की कुर्सी और वो कहानी... में आज आप पढ़ेंगे मध्यप्रदेश के उस मुख्यमंत्री का किस्सा जो राजनीति में आने से पहले कपड़ा मिल में मजदूरी करते थे। ट्रेड यूनियन की आवाज ने उन्हें पहचान दिलाई और उन्हें विधायकी का टिकट मिल गया। उसके बाद लगातार 10 बार विधानसभा चुनाव जीते। फिर एक वारंट ने 74 साल की उम्र में उन्हें मंत्री से मुख्यमंत्री बना दिया।

By Deepti MishraEdited By: Deepti MishraPublished: Thu, 26 Oct 2023 08:00 AM (IST)Updated: Thu, 26 Oct 2023 08:00 AM (IST)
MP Assembly election & former MP CM Babulal gaur: मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर की जिंदगी से जुड़े किस्से।

 ऑनलाइन डेस्‍क, दिल्‍ली। सीएम की कुर्सी और वो कहानी... में आज आप पढ़ेंगे मध्यप्रदेश के उस मुख्यमंत्री का किस्सा, जो राजनीति में आने से पहले कपड़ा मिल में मजदूरी करते थे। ट्रेड यूनियन की आवाज ने उन्हें पहचान दिलाई और उन्हें विधायकी का टिकट मिल गया। उसके बाद लगातार 10 बार विधानसभा चुनाव जीते। फिर एक वारंट ने 74 साल की उम्र में उन्हें मंत्री से मुख्यमंत्री बना दिया।

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लेकिन उससे पहले एक बार उत्तर प्रदेश की बात भी करते हैं। दरअसल मध्यप्रदेश के इस मुख्‍यमंत्री का उत्तर प्रदेश से भी नाता रहा है। उत्तरप्रदेश के सीएम अपने बुलडोजर एक्शन की वजह से पूरे देश में चर्चा में रहते हैं। लेकिन मध्यप्रदेश में तीन दशक पहले एक मंत्री को 'बुलडोजर मंत्री/बुलडोजर गौर' का खिताब मिल चुका था।

बतौर सीएम उन्हें चतुर, होशियार और नौकरशाही से काम निकलवाने वाला माना जाता था। एक मौका ऐसा भी आया एक तरफ बेटे की मौत का गम था और दूसरी ओर पार्टी की जीत का जश्न। उन्होंने पार्टी का जश्न नहीं टलने दिया। अंजुरी में गंगाजल लेकर उनसे एक शपथ ली गई थी और बदले में मिला था सीएम पद। पर वो कहते हैं न कि, "राजनीति खेल है मौके और समय का।" यह कथन भी चरितार्थ हुआ।

आज आपको पढ़ा रहे हैं, मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर की राजनीतिक जिंदगी से जुड़े चर्चित किस्से…

23 अगस्त, 2004 को मुख्यमंत्री उमा भारती को अपने पद से इस्‍तीफा देना पड़ा। उन्होंने अपने सबसे भरोसेमंद मंत्री बाबूलाल गौर को सत्‍ता सौंपी और जेल चली गईं। लेकिन पद सौंपने से पहले उमा ने बाबूलाल की अंजुरी में गंगाजल देकर उन्हें यह शपथ दिलाई थी कि जब वो कहेंगी, गौर को इस्‍तीफा देना होगा।

हालांकि, सबके सामने उमा भारती ने गौर को सीएम बनाने के पीछे वजह उनकी वरिष्ठता बताई थी। सभी जानते थे कि उमा ने अपनी वापसी सुनिश्चित करने के लिए बाबूलाल गौर को सीएम पद दिया है।

बाबूलाल गौर ने 23 अगस्त 2004 को मुख्यामंत्री पद की शपथ ली। दिखने में एक साधारण, जमीन से जुड़े, संवाद और व्यवहार कुशल गौर होशियार मुख्‍यमंत्री साबित हुए। वह अधिकारियों से काम लेना जानते थे। वो दक्षिण भोपाल और गोविंदपुरा सीट से 10 बार विधानसभा चुनाव जीत चुके थे। कई मौके ऐसे भी आए, जब भाजपा हाईकमान ने उनका टिकट काटना चाहा, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।

जून, 2016 में पार्टी हाईकमान ने उम्र का हवाला देते हुए बाबूलाल गौर को मंत्री पद छोड़ने के लिए कहा। इस फैसले से वह दुखी हुए। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा न बाबूलाल को टिकट देना चाहती थी और न ही उनकी पुत्रवधू कृष्णा गौर को।

इससे नाराज होकर गौर ने जब बगावती तेवर दिखाए और पार्टी के खिलाफ बयानबाजी शुरू कर दी। आखिरकार भाजपा ने कृष्णा गौर को टिकट दिया और वह जीतकर विधानसभा भी पहुंचीं।

बाबूराम यादव से बाबूराम गौर तक

ये कहानी है बाबूराम यादव की, जिनका जन्म 2 जून, 1930 को उत्‍तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के नौगीर में हुआ था। पिता ने बाबूराम यादव नाम रखा था। जिस स्‍कूल में उनका दाखिला कराया गया, वहां उन्हें मिलाकर तीन बाबूराम यादव पढ़ते थे।

एक रोज मास्साब ने कहा कि जो उनकी बात को गौर से सुनेगा और सही जवाब देगा, उसका नाम बाबूलाल गौर कर दिया जाएगा। बाबूराम ने सही जवाब दिए, बस उसी दिन से उनका नाम बाबूलाल गौर हो गया। यह किस्सा गौर ने एक इंटरव्यू में खुद सुनाया था।

बाबूलाल गौर जब पैदा हुए, तब ब्रिटिश शासन था। उन दिनों गांव में दंगल हुआ करते थे। बाबूलाल गौर के पिता श्री राम प्रसाद ऐसा ही एक दंगल जीत गए। इससे खुश हुए अंग्रेजों ने एक पारसी शराब कंपनी में नौकरी दे दी।

कैलेंडर में साल था 1938, और इसी नौकरी के साथ गांव छूट गया। नया ठिकाना बना भोपाल। गौर के पिता ने कुछ दिन नौकरी की इसके बाद कंपनी ने उन्हें एक शराब की दुकान दे दी, जहां आगे चलकर उन्होंने ने भी शराब बेची।

'शराब नहीं बेचूंगा...' कहकर लौट गए गांव

बाबूलाल गौर जब 16 साल के हुए तो राष्‍ट्रीय स्वयं संघ की शाखा जाने लगे। वहां उनसे कहा गया कि शराब बेचना छोड़ दो। इसी बीच उनके पिता का निधन हो गया। चर्चा शुरू हुई कि शराब की दुकान बाबूलाल के नाम कर दी जाए, लेकिन उन्होंने शराब बेचने से साफ मना कर दिया। वो वापस प्रतापगढ़ लौट आए और खेती किसानी में हाथ आजमाया। हालांकि यह काम भी आसान नहीं था।

मन नहीं लगा तो वो दोबारा भोपाल लौट आए। यहां एक कपड़ा मिल में मजदूरी करने लगे। उस समय उन्हें रोजाना एक रुपये दिहाड़ी मिलती थी। यहां काम करते करते वो मजदूर संगठन में शामिल हो गए, जो आए दिन मिल में हड़ताल कर देता था।

इस वजह से तनख्वाह कट जाती थी। इस पर गौर ने लाल झंडा छोड़ दिया और राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस में जुड़ गए। लेकिन वहां भी निराशा ही हाथ लगी और आगे चलकर जब भारतीय मजदूर संघ बना तो संस्‍थापक सदस्‍यों में बाबूलाल गौर का नाम भी शामिल किया गया।

साल 1956 में ट्रेड यूनियन लीडर का चुनाव हुआ जिसमें बाबूलाल के हाथ हार आई। 1972 में जनसंघ की ओर से भोपाल की गोविंदपुरा सीट से चुनाव लड़े, लेकिन वह चुनाव वो हार गए। उस समय गौर यह नहीं जानते थे कि यही गोविंदपुरा सीट उनका गढ़ बनने वाली है।

1975 के जेपी के आंदोलन में सक्रियता के चलते गौर पर जेपी की नजर पड़ी। जेपी और आडवाणी के कहने पर बाबूलाल जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और विधानसभा पहुंचे। जेपी भोपाल आए तो गौर के सिर पर हाथ रखकर जिंदगीभर जनप्रतिनिधि बने रहने का आशीर्वाद दिया।

क्यों कहलाए बुलडोजर गौर?

सरकारें आती-जाती रहीं... बाबूलाल गौर जीतते रहे और मंत्री भी बने। 1990 से 1992 में सुंदरलाल पटवा दूसरी बार सीएम बने। उनके कार्यकाल में बाबूलाल गौर को नया नाम मिला- 'बुलडोजर गौर'। उन्होंने सख्ती के साथ अतिक्रमण हटवाए। बुलडोजर से जुड़ा उनका एक किस्सा आज भी याद किया जाता है, जब भोपाल के गौतम नगर में अतिक्रमणकारियों को हटाने के लिए गौर ने बुलडोजर दौड़ा दिया था।

दरअसल सैकड़ों लोग अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई का विरोध कर रहे थे। तब गौर ने बुलडोजर का इंजन स्टार्ट करवाकर उसे चलाने का आदेश दिया और देखते ही देखते सारे प्रदर्शनकारी भाग खड़े हुए थे। वीआईपी रोड पर झुग्गियां आड़े आईं तो वहां भी बुलडोजर चलावाया। बुलडोजर चलाने में एक बार अधिकारी पीछे हट जाते थे, लेकिन गौर नहीं।

सीआरपीएफ की मदद

भोपाल में बड़े तालाब के किनारे अवैध झुग्गियां बनी थीं। जब उन्हें हटाने की बात चली तो तनाव का माहौल बन गया। दूसरी ओर तेलंगाना (तब अविभाजित आंध्रप्रदेश) में हो रही हिंसा को काबू करने के लिए सीआरपीएफ के 5000 जवान लखनऊ से विजयवाड़ा भेजे गए। जवानों को ट्रेन बदलने के लिए भोपाल में दो रुकना पड़ा। बाबूलाल गौर ने इकबाल मैदान में जवानों के ठहरने की व्यवस्था की।

अगले ही दिन गौर ने अधिकारियों से बात करके सीआरपीएफ के जवानों का फुल ड्रेस मार्च उसी बस्ती में करवा दिया, जहां से अतिक्रमण हटाना था। बस फिर क्या था, लोगों ने खुद ही अतिक्रमण हटा लिए। ऐसा नहीं है कि गौर का बुलडोजर सिर्फ बस्तियों पर चलता था।

साल 2005 में भाजपा के एक नेता ने भोपाल में राज्यपाल निवास राजभवन की जमीन पर कब्जा कर लिया और उस पर दीवार खड़ी कर दी। गौर के बुलडोजर ने उसे भी ढहा दिया था।

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(Source: जागरण नेटवर्क की पुरानी खबरों एवं मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी की किताब राजनीतिनामा मध्‍यप्रदेश से साभार)


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