MP Election 2018: महू में वर्षों से एक ही चुनावी मुद्दा लेकिन नहीं निकलता हल
MP Election 2018: महू शहर में लोगों की एकमात्र मांग सिविल एरिया के विस्तार की रही है जो हर बार मुद्दा तो बना लेकिन इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया गया।
महू, आदित्य सिंह। वर्षों से हर विधानसभा चुनाव यहां के लोगों के लिए नई उम्मीद लेकर आते हैं कि शायद इस बार उनकी मांग मान ली जाए, लेकिन राजनीतिक दलों के वादे पूरे नहीं होते और फिर चुनाव आ जाते हैं। यह पीड़ा इंदौर से लगे महू विधानसभा क्षेत्र की है। महू शहर में लोगों की एकमात्र मांग सिविल एरिया के विस्तार की रही है जो हर बार मुद्दा तो बना लेकिन इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया गया। वोटों को लिहाज से यहां का शहरी क्षेत्र कांग्रेस का वोट बैंक है तो ग्रामीण भाजपा का। वर्षों से चले आ रहे इस समीकरण को तोड़ने के लिए इस बार दोनों प्रमुख दल जोर लगा रहे हैं।
कांग्रेस जीती लेकिन कमजोर भी हुई
महू शहर में कांग्रेस को जीत मिलती रही है। पिछले चार चुनावों के परिणामों पर गौर करें तो कांग्रेस यहां से हमेशा जीतती आई है हालांकि पिछले बीस सालों में जीत का यह आंकडा कम होता रहा है। 1998 में महू शहर से जहां कांग्रेस करीब आठ हजार मतों से जीती थी तो वहीं 2003 में कांग्रेस की जीत का यह आंकड़ा करीब पांच हजार हो गया। इसके बाद 2008 में कांग्रेस को शहर से करीब दो हजार और 2013 के चुनावों में यह अंतर करीब एक हजार ही बचा था। यहां छावनी परिषद के हालिया चुनावों में भी दोनों ही दल बराबर ही कहे जा सकते हैं। जहां आठ वार्डों में से चार भाजपा तो तीन कांग्रेस के हाथ आए। एक अन्य वार्ड कांग्रेस पार्षद की पत्नी ने निर्दलीय के रूप में जीत दर्ज की थी।
दोनों दलों के लिए चुनौती
दोनों ही दलों के लिए इस बार महू में अपनी जीत तय करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी, क्योंकि उनकी जीत का अंतर कम होता रहा है। भारतीय जनता पार्टी के लिए भी यह बड़ी चुनौती है कि वे पिछले चार चुनावों में शहर से मिल रही हार का सिलसिला तोड़ पाएंगे या नहीं।
शहर में कोई बड़ा मुद्दा नहीं
महू शहर की बात करें तो यहां विधानसभा चुनावों में कोई स्थानीय मुद्दे शायद ही कभी चुनावी चर्चा में शामिल रहे हों। इसकी मुख्य वजह यह इलाका सैन्य छावनी क्षेत्र में आना है। ऐसे में यहां एक मात्र बड़ा मुद्दा छावनी क्षेत्र में सिविल एरिया का विस्तार और यहां राज्य सरकार के स्थानीय निकाय बनाने का रहा है जो कि केंद्र सरकार के निर्णय पर ही संभव है। हालांकि पिछले विधानसभा चुनावों में यह एक मुद्दा कुछ हद तक हवा में भी था।