Madhya Pradesh Chunav 2018: ससुराल से संवरी थी 2 मंत्री दामाद की राजनीति
Madhya Pradesh Chunav 2018:प्रदेश सरकार के दो मंत्री जिन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वे सरकार के दिग्गज मंत्रियों में शुमार होकर प्रदेश की दशा और दिशा तय करेंगे।
रायसेन, अम्बुज माहेश्वरी। यूं तो हर दामाद को अपनी ससुराल प्रिय होती है और ससुराल के लिए तो दामाद परमप्रिय होते हैं। बात अगर सियासत में ससुराल की सीढ़ी से चढ़कर सफलता तक पहुंचे मंत्रियों की हो तो यह और रोचक हो जाती है।
जी हां, प्रदेश सरकार के दो मंत्री जिन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वे सरकार के दिग्गज मंत्रियों में शुमार होकर प्रदेश की दशा और दिशा तय करेंगे। सरकार के यह दो मंत्री डॉ. गौरीशंकर शेजवार और रामपालसिंह राजपूत हैं जिनके सियासी सफर को सबसे पहले उनकी ससुराल ने ही संवारा। ससुर ने बनाई सीढ़ी फिर दामाद ने मुड़कर पीछे नहीं देखा 1977 में डॉ. गौरीशंकर शेजवार भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई करके ही निकले थे और एक छोटे से क्लीनिक से उन्होंने प्रेक्टिस शुरू की थी तब उस
दौर में जनता पार्टी को सांची (अजा) सीट के लिए एक पढ़े-लिखे युवा प्रत्याशी की तलाश थी।डॉ. शेजवार के ससुर अमरसिंह की संघ में गहरी पैठ होने और कुशाभाई ठाकरे से मित्रवत संबंध होने पर जल्दी
ही यह तलाश उनके नाम पर जाकर पूरी हो गई और उन्हें 1977 में एकाएक सांची सीट से चुनाव लड़वा दिया गया। इस सीट से पहला चुनाव जीतकर शेजवार ढाई साल की जनता पार्टी सरकार में संसदीय कार्यमंत्री बने और इसके बाद 2013 तक उन्होंने 7 चुनाव जीते। पटवा सरकार में गृह मंत्री और उमा, गौर और शिवराज सरकार में वे महत्वपूर्ण पदों पर रहे।
1990 में ऐनवक्त पर रामपाल का टिकट हुआ फाइनल
1990 में जब रायसेन जिले की उदयपुरा विधानसभा सीट से युवा मोर्चा जिला अध्यक्ष रवि माहेश्वरी का टिकट लगभग तय हो रहा था तब टिकट पर पेंच फंसने के चलते युवा मोर्चा में जिला उपाध्यक्ष रामपाल सिंह के लिए
उनके ससुर हाकमसिंह निवाड़ी वालों ने लॉबिंग जमाई। कुशाभाई ठाकरे के मित्रवत व संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवक हाकमसिंह की अपने दामाद रामपाल के लिए जमाई सियासी सीढ़ी पर उनका पहला टिकट फाइनल हुआ और वे
उदयपुरा से जीतकर विधायक बने। इसके बाद लगातार 3 बार विधायक का चुनाव एक बार विदिशा क्षेत्र से सांसद का उपचुनाव रामपाल ने जीता। नए परिसीमन में 2008 में बनी सिलवानी सीट से 247 वोटों से चुनाव हारकर फिर 2013 में लंबे अंतर से जीत हासिल की। शिवराज सरकार में वे राजस्व, पीडब्ल्यूडी मंत्री बने।
चाचा के सपोर्ट से भतीजे हुए स्थापित
सरकार के मंत्रिमंडल में दो नाम ऐसे भी जिनके राजनीति में स्थापित होने में उनके नेता चाचा का बड़ा रोल रहा। राजस्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने बचपन से ही अपने चाचा नारायण प्रसाद गुप्ता 'नानाजी" को राजनीति में सक्रिय देखा और आगे चलकर वे भी संघ से जुड़ गए। बाद में युवा मोर्चा से राजनीति में आगे आए और फिर महापौर बनने के बाद भोपाल की दक्षिण पश्चिम सीट से विधायक बने, फिर सरकार में गृह, राजस्व मंत्री बने। इसी तरह सरकार के पर्यटन मंत्री सुरेंद्र पटवा अपने चाचा पूर्व मुख्यमंत्री स्व. सुंदरलाल पटवा के संरक्षण में ही राजनीति में स्थापित हो पाए। 2003 में भोजपुर से सुरेंद्र के पहला चुनाव हारने के बावजूद स्व. पटवा ने 2008 में टिकट
दिलाकर पूरा चुनावी मैनेजमेंट अपने हाथ रखा और भतीजे को जीत दिलाई। सुरेंद्र पटवा 2013 में दूसरी बार चुनाव जीतकर सरकार में पर्यटन और संस्कृति मंत्री बने।