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MP Election 2018: दल-बदलू और परिवारवाद के कारण दिलचस्प हुए मुकाबले

साम-दाम-दंड-भे से चुनाव जीतने के हथकंडे भी अपनाए जाएंगे जिससे यहां पूरे देश की नजरें टिकी रहेंगी।

By Rahul.vavikarEdited By: Published: Fri, 09 Nov 2018 11:41 PM (IST)Updated: Fri, 09 Nov 2018 11:41 PM (IST)
MP Election 2018: दल-बदलू और परिवारवाद के कारण दिलचस्प हुए मुकाबले
MP Election 2018: दल-बदलू और परिवारवाद के कारण दिलचस्प हुए मुकाबले

भोपाल (नईदुनिया ब्यूरो रवींद्र कैलासिया)। नामांकन पत्र दाखिल करने की निर्धारित अवधि खत्म होने के साथ ही विधानसभा चुनाव की तस्वीर भी कुछ-कुछ साफ होने लगी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा, पूर्व केंद्रीय मंत्रियों सरताज सिह, अरुण यादव व सुरेश पचौरी जैसे नेताओं के चुनाव मैदान में होने, टिकट से वंचित किए गए कुछ नेताओं के बागी होने और कुछ नेताओं के बेटे, बहुओं को उम्मीदवार बनाए जाने से ये चुनाव दिलचस्प हो गए हैं। दो सप्ताह तक इन सीटों पर जुबानी दंगल तो होगा ही, साम-दाम-दंड-भे से चुनाव जीतने के हथकंडे भी अपनाए जाएंगे जिससे यहां पूरे देश की नजरें टिकी रहेंगी।

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होशंगाबाद

विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा की इस सीट पर पिछली बार 49 हजार से ज्यादा वोटों की बढ़त थी लेकिन इस बार एनडीए सरकार में मंत्री और मौजूदा सरकार में मंत्री रहे सरताज सिंह के अंतिम समय में कांग्रेस में आने से शर्मा की मुश्किलें बढ़ी हैं। सरताज के कांग्रेस प्रत्याशी बनने से इस सीट पर सभी की निगाहें लगी रहेगी।

बुदनी 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस सीट पर देशभर की नजरें थीं लेकिन कांग्रेस ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव को शिवराज के खिलाफ उतारकर चुनौती पेश करने की कोशिश की है। हालांकि कांग्रेस पिछली बार यहां करीब 85 हजार वोटों से हारी थी। कांग्रेस ने मुख्यमंत्री को वॉकओवर देने के बजाय अपने बड़े नेता पर दांव लगाया है।

भोजपुर

पूर्व केंद्रीय मंत्री और पीसीसी के पूर्व अध्यक्ष सुरेश पचौरी पिछले चुनाव में मौजूदा सरकार में मंत्री सुरेंद्र पटवा से 20 हजार से ज्यादा वोटों से हारने के बाद एक बार फिर यहां से किस्मत आजमा रहे हैं। इस बार यह मुकाबला पहले की तुलना में ज्यादा रोचक होने के संभावना है। पचौरी के कारण देशभर की नजरें इस सीट पर लगी रहेंगी।

सांची

मौजूदा सरकार में मंत्री डॉ. गौरीशंकर शेजवार ने अपने बेटे मुदित के लिए इस सीट को छोड़ा है तो कांग्रेस ने फिर डॉ. प्रभूराम चौधरी को टिकट दिया है। चौधरी पिछली बार गौरीशंकर शेजवार से करीब 21 हजार वोटों से हारे थे लेकिन संभावना जताई जा रही है कि इस बार उनके बेटे के सामने होने से मुकाबला शेजवार परिवार के लिए इतना आसान नहीं होगा।

वारासिवनी

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साले संजय सिंह मसानी के अचानक पाला बदल कर कांग्रेस में प्रवेश और कांग्रेस प्रत्याशी बनने से सीट चर्चित हो गई है। हालांकि इस सीट पर भाजपा ने मौजूूदा विधायक डॉ. योगेंद्र सिंह निर्मल को ही टिकट दिया है जिनकी पिछली बार करीब 18 हजार वोटों की जीत हुई थी। मसानी की वजह से आने वाले दिनों में इस सीट पर सबकी नजर रहेंगी।

झाबुआ

सांसद, पीसीसी के पूर्व अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया के बेटे डॉ. विक्रांत भूरिया के इस सीट से चुनाव लड़ने के कारण सीट चर्चा में आई है। भाजपा ने भी इस सीट पर मुख्य अभियंता पद से सेवानिवृत्त जीएस डामोर को उतारकर मुकाबले को कड़ा कर दिया है।

इंदौर-तीन

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश के कांग्रेस मिजाज वाली इस विधानसभा सीट से उतरने और उनके सामने तीन बार विधायक रहे अश्विन जोशी के कांग्रेस उम्मीदवार होने से सीट चर्चा में बनी रहेगी। विजयवर्गीय के चुनाव प्रबंधन से सभी भलीभांति परिचित हैं। इस सीट पर कांग्रेस की अंर्तकलह को विजयवर्गीय कैसे भुनाते हैं यह देखना दिलचस्प होगा। इन दोनों वजहों से सीट पर सबकी नजरें रहेंगी।

गोविंदपुरा

पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर की परंपरागत सीट पर गौर परिवार की बहू और पूर्व महापौर कृष्णा गौर को भाजपा का टिकट मिलने से यह सीट चर्चित बन गई है। गौर परिवार कुछ दिनों से टिकट को लेकर जिस तरह से बयानबाजी कर रहा था उससे गोविंदपुरा सीट सुर्खियों में थी। कांग्रेस ने मौजूदा पार्षद गिरीश शर्मा को यहां से टिकट दिया है। बाबूलाल गौर के इस सीट पर करीब चार दशक के कब्जे को उनकी बहू बरकरार रख पाएंगी या नहीं, इसको लेकर सबकी निगाहें इस सीट पर रहेंगी।

मनावर

आदिवासी आंदोलन के नाम पर जय युवा आदिवासी संगठन (जयस) बनाकर काम करने वाले डॉ. हीरालाल अलावा को कांग्रेस ने टिकट दिया है तो भाजपा ने उनके खिलाफ मौजूदा विधायक रंजना बघेल को उतारा है। अलावा अपने आंदोलन के कारण अनुसूचित जनजाति वर्ग में काफी चर्चित व्यक्ति हैं, जबकि रंजना को चुनाव लड़ने का लंबा तर्जुबा हैं।

चांचौडा

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के अनुज और भाजपा से सांसद रहे लक्ष्मण सिंह को चुनाव में कांग्रेस द्वारा प्रत्याशी बनाया है तो वहीं, आईपीएस अधिकारी आरएसएस मीणा की पत्नी मौजूदा विधायक ममता मीणा भाजपा प्रत्याशी हैं। दोनों प्रत्याशी तीखे मिजाज वाले हैं जिससे जुबानी जंग से इस सीट के चर्चित बनने की संभावना है।

टिमरनी

सीट पर चाचा-भतीजे के बीच चुनावी टक्कर होने से मुकाबला बेहद दिलचस्प होगा। क्षेत्रीय राज परिवार के मौजूदा मंत्री विजय शाह के छोटे भाई संजय शाह मकड़ाई भाजपा से यहां प्रत्याशी बनाए गए हैं तो उनके बड़े भाई अजय शाह के बेटे अभिजीत को कांग्रेस ने मैदान में उतारा है। चाचा-भतीजों के बीच चुनावी मुकाबला जानने के लिए प्रदेश भर की नजरें रहेंगी।

मुरैना

इस सीट पर मौजूदा सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रुस्तम सिंह, बहुजन समाज पार्टी के विधायक बलवीरसिंह डंडोतिया की मौजूदगी से चुनाव दिलचस्प होने के आसार हैं। पिछली बार रुस्तम सिंह ने बसपा के रामप्रकाश को मात्र 1704 वोटों से परास्त कर जीत हासिल की थी। दिमनी से सीट बदलकर मुरैना आए बसपा नेता ड़डोतिया के अलावा चुनाव मैदान में कांग्रेस ने भी यहां गिरिराज डंडोतिया को उतारा है।

अटेर

कांग्रेस के मौजूदा विधायक हेमंत कटारे उपचुनाव में 857 वोटों से जीते थे जबकि उनके पिता स्व. सत्यदेव कटारे ने 11426 वोटों से सीट पर जीत हासिल की थी। उप चुनाव के बाद हेमंत का विवादों से नाता जुड़ा और इसमें उपचुनाव में हारे प्रतिद्वंद्वी अरविंद भदौरिया का नाम भी आया। इस बार भी दोनों आमने-सामने हैं जिससे सीट पर घमासान जोरदार होगा। जुबानी जंग के साथ बहुत कुछ देखने को मिल सकता है।

भिंड

मौजूदा विधायक नरेन्द्र कुशवाह का टिकट काटकर करीब पांच साल पहले कांग्रेस से भाजपा में आए चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी के चुनाव मैदान में उतरने से सीट पर सबकी नजर रहेंगी। कांग्रेस ने यहां पार्टी के जिला अध्यक्ष रमेश दुबे को टिकट दिया है। चतुर्वेदी यहां से चुनाव लड़ने के लिए लंबे समय से तैयारी कर रहे थे। उन्हें यह टिकट उनके भाई की मेहगांव से टिकट काटकर दी गई है।

भितरवार

भाजपा सांसद अनूप मिश्रा एकबार फिर राज्य की राजनीति में सक्रिय होना चाहते हैं और उन्हें यहां से टिकट देकर पार्टी ने यह मौका दिया है। पिछली बार वे इसी सीट से मौजूदा विधायक लाखन सिंह यादव से साढ़े छह हजार से ज्यादा वोटों से हार गए थे। मिश्रा पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटलबिहारी वाजपेयी के भांजे हैं और इस बार वे पिछली बार की तरह हार से बचने के लिए पूरी ताकत लगाएंगे जिससे मुकाबला रोचक होने की संभावना है।

दतिया

मौजूदा सरकार के सबसे ताकतवर मंत्रियों में से एक डॉ. नरोत्तम मिश्रा की इस सीट पर उनके पिछली बार के प्रतिद्वंद्वी राजेंद्र भारती से ही मुकाबला है। भारती पांच साल से मिश्रा के खिलाफ चुनाव आयोग और अदालत के दरवाजे खटखटाते रहे हैं। इस बार मिश्रा उन गलतियों से बचेंगे जिनसे राजेंद्र भारती से उन्हें चुनावी जंग ही नहीं अदालती जंग भी करना पड़ी थी।

मैहर

इस सीट पर नारायण त्रिपाठी ने 2013 विधानसभा और इसके बाद उनके भाजपा में चले जाने के बाद हुए उप चुनाव दोनों में जीत हासिल की थी लेकिन इस बार उनके मुकाबले में कांग्रेस ने श्रीकांत चतुर्वेदी को चुनावी मैदान में उतारा है। कहा जा रहा है कि दोनों ही बाहुबली हैं। इससे मैहर की सीट पर विधानसभा चुनाव पिछली बार की तुलना में ज्यादा रोचक होगा।

अमरपाटन

विधानसभा उपाध्यक्ष डॉ. राजेंद्र सिंह इस सीट से फिर कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। वहीं भाजपा ने भी रामखिलावन पटेल को ही इस बार भी उनके खिलाफ चुनावी मैदान में उतारा है। हालांकि इस सीट से बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और आप सभी के प्रत्याशियों ने नामांकन पर्चा भरा है।

चुरहट

नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह इस सीट से एकबार फिर मैदान में हैं। उनके सामने भाजपा के शरदेंदू तिवारी हैं। पिछले चुनाव में भी दोनों आमने-सामने थे और अजय सिंह की 19 हजार से ज्यादा वोटों की आसान जीत हुई थी। नेता प्रतिपक्ष को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जनआशीर्वाद यात्रा में जिस तरह घेरा था, उससे इस सीट पर उसके प्रभाव का आकलन करने के लिए सब निगाहें गाढ़े रहेंगे।

रीवा

भाजपा के पूर्व विधायक अभय मिश्रा को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया है तो उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बन चुके मौजूदा सरकार में मंत्री राजेंद्र शुक्ला भाजपा प्रत्याशी हैं। हालांकि कांग्रेस ने इस सीट पर पिछले चार बार के चुनाव लगातार हारे हैं। हाल ही में कांग्रेस में लौटे पुष्पराज सिंह आखिरी बार 1993 में कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर जीते थे। मिश्रा के आने से शुक्ला की मुश्किलें बढ़ी हैं तो सीट पर चुनाव आसान नहीं होगा।

विजयराघौगढ़

मौजूदा सरकार में मंत्री संजय पाठक ने पिछली बार कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में 2013 में भाजपा प्रत्याशी पद्मा शुक्ला पर 929 वोटों के मामूली अंतर से इस सीट पर जीत हासिल की थी। इस बार स्थिति उलट है और अब पाठक भाजपा तो पद्मा कांग्रेस की प्रत्याशी हैं। देश के अमीर राजनीतिज्ञों में गिने जाने वाले पाठक के कारण इस सीट पर चुनाव दिलचस्प और खर्चीला होने की संभावना है।

बालाघाट

100 करोड़ रुपए में केंद्रीय मंत्री पद लेने के विवादास्पद वायरल वीडियो वाले मौजूदा सरकार के कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन की इस सीट कांग्रेस ने जहां पूर्व सांसद विश्वेश्वर भगत को उतारा है तो समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी बनी हैं अनुभा मुंजारे। बिसेन की पिछली बार की जीत भी महज 2500 वोटों की थी। विवादास्पद बयानों के जाने-जाने वाले बिसेन और कांग्रेस-बसपा जैसे दलों के प्रत्याशियों से इस सीट पर सबकी नजरें रहने की संभावना है।

तेंदूखेड़ा

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने भाजपा छोड़कर पार्टी की सदस्यता लेने वाले तेंदूखेड़ा के मौजूदा विधायक संजय शर्मा की मौजूदगी से सीट सुर्खियों में आई है। कांग्रेस प्रत्याशी शर्मा के सामने कांग्रेस से भाजपा में गए मुलायम सिंह हैं जो टिकट के दावेदार थे। ऐसे में दोनों प्रत्याशियों को अपनी-अपनी पार्टियों में असंतुष्टों के कारण मुश्किलें आएंगी लेकिन संजय शर्मा के कारण इस सीट पर खर्च ज्यादा होने की संभावना है।


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