आखिर भाजपा के लिए क्यों बेहद खास है विदिशा, वाजपेयी से लेकर सुषमा तक निभाया साथ
भाजपा का गढ़ रही मध्य प्रदेश की विदिशा संसदीय सीट ने बुरे वक्त में भी पार्टी का साथ निभाया है। वाजपेयी और सुषमा स्वराज के बाद पार्टी के लिए अब अपने गढ़ को बचाने की चुनौती है।
नई दिल्ली, जागरण स्पेशल। विदिशा संसदीय सीट देश की उन सीटों में शामिल है, जिसे भाजपा की परंपरागत सीट कहा जा सकता है। यह सीट भाजपा का गढ़ है। 1967 में मध्य प्रदेश की विदिशा संसदीय सीट अस्तित्व में आई। यहां हुए पहले आम चुनाव में भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार केएस शर्मा ने जीत हासिल की। कांग्रेस इस सीट पर सिर्फ दो बार ही जीत हासिल कर सकी। इसमें एक चुनाव पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में हुए 1984 के चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की। उस वक्त देश में इंदिरा लहर थी। इस लहर में कांग्रेस उम्मीदवार भानु प्रताप विजयी रहे।
इसके पूर्व 1980 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार भानुप्रताप पहली बार इस सीट से विजयी रहे। इस सीठ के गठन के करीब 13 वर्ष बाद भाजपा प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस प्रत्याशी ने भाजपा उम्मीदवार राघवजी को हराया था। हालांकि, बाद के चुनाव में भाजपा ने सीट को कांग्रेस से छीन लिया। 1989 के आम चुनाव में भाजपा उम्मीदवार ने अपनी हार का बदला लेते हुए कांग्रेस प्रत्याशी भानुप्रताप को एक लाख से ज्याद मतों से परास्त किया।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सीट रही विदिशा
वर्ष 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा के उम्मीदवार थे। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार भानुप्रताप को एक लाख से ज्यादा मतों से परास्त किया। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार भानुप्रताप को एक लाख मतों से पराजित किया। 1991 के आम चुनाव में वाजपेयी ने विदिशा व लखनऊ संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा था। वाजपेयी दोनों संसदीय सीट से चुनाव जीतने में सफल रहे। बाद में उन्होंने विदिशा सीट से इस्तीफा दे दिया।
इस सीट पर हुआ शिवराज सिंह का कब्जा
इसके बाद इस सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का कब्जा रहा। 1996 के आम चुनाव में वह पहली बार इस संसदीय सीट से चुनाव जीते। इसके बाद वह लगातार तीन बार यहां से चुनाव जीतने में कामयाब रहे। 1998 एवं 2004 के आम चुनाव में वह इस सीट से चुनाव जीते। 2006 में मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने तक शिवराज सिंह ने इस संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व किया। मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवराज को यह सीट छोड़नी पड़ी। यहां हुए उपचुनाव में भाजपा के रामपाल सिंह ने कांग्रेस के राजश्री रुद्र प्रताप सिंह को परास्त किया।
सुषमा स्वराज ने किया प्रतिनिधित्व
2009 के संसदीय चुनाव में भाजपा ने यहां की दिग्गज नेता सुषमा स्वराज को मैदान में उतारा। इस चुनाव में करीब 3.50 लाख से ज्यादा मतों से विजयी रहीं। हालांकि, इस चुनाव में देश में भाजपा की करारी हार हुई थी। ऐसे में विदिशा की जीत ने पार्टी में एक नया जोश पैदा किया था। विदिशा का प्रतिनिधित्व करने वाली सुषमा 2009 में लोकसभा में विपक्ष की नेता बनीं। 2014 के आम चुनाव में मोदी लहर के दौरान भाजपा ने विदिशा सीट से सुषमा स्वराज को उतारने का फैसला लिया। इस बार वह चार लाख मतों से विजयी रहीं। कांग्रेस के लक्ष्मण सिंह की करारी हार हुई।
विदिशा लोकसभा सीट में आठ विधानसभा
विदिशा लोकसभा सीट के अंतर्गत विधानसभा की आठ सीटें हैं। इसमें भोजपुर, विदिशा, इच्छावर, सांची, बासौदा, खाटेगांव, सिलवनी, बुधनी विधानसभा सीटें हैं। आठ सीटों में छह पर भाजपा का कब्जा है। दो विधानसभा पर कांग्रेस के खाते में है।
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