Move to Jagran APP

चुनावों में शब्दों और धुनों की कारीगरी, हर भाषा में बन रहे चुनावी गीत; सोशल मीडिया भी गुलजार

चुनाव प्रचार में जब जोश सर चढ़कर बोलता है तो गीत-संगीत के तराने भी गूंज उठते हैं। कई टीवी चैनल्स पर चुनावी कव्वाली और गीत शुरू हो गए हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 08 Apr 2019 04:08 PM (IST)Updated: Mon, 08 Apr 2019 04:08 PM (IST)
चुनावों में शब्दों और धुनों की कारीगरी, हर भाषा में बन रहे चुनावी गीत; सोशल मीडिया भी गुलजार
चुनावों में शब्दों और धुनों की कारीगरी, हर भाषा में बन रहे चुनावी गीत; सोशल मीडिया भी गुलजार

नई दिल्ली, [यशा माथुर]। 'सौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नहीं मिटने दूंगा, मैं देश नहीं झुकने दूंगा ...' प्रधानमंत्री ने अपनी रैलियों में जब-जब मशहूर गीतकार प्रसून जोशी के लिखे गीत की पंक्तियां पढ़ीं तो उनका प्रभाव अद्भुत था। चुनाव प्रचार में जब जोश सर चढ़कर बोलता है तो गीत-संगीत के तराने भी गूंज उठते हैं। कई टीवी चैनल्स पर चुनावी कव्वाली और गीत शुरू हो गए हैं। हर भाषा में बन रहे हैं चुनावी गीत। सोशल मीडिया भी गुलजार है इनसे। इन गीतों के रचने वालों को चुनावों के मौसम में नए असाइनमेंट मिले हैं और वे लुत्फ ले रहे हैं अपने शब्दों और धुनों की कारीगरी का...

loksabha election banner

अहमद फराज के शेर 'इन बारिशों से दोस्ती अच्छी नहीं 'फराज', कच्चा तेरा मकान है कुछ तो खयाल कर ...', से गठबंधन की पॉलिटिक्स पर तंज कसा जा रहा है। अल्लामा इकबाल के मशहूर शेर 'एक ही सफ में खड़े हो गये महमूद व अयाज, न कोई बंदा रहा और न कोई बन्दानवाज ...', से राजनीति को बयां किया जा रहा है। चुनावों के इस मौके पर शायरी की सोहबत और गीतों से दोस्ती में कुछ खुलकर बोलने की जरूरत ही नहीं है। चुनावी धुन बजने लगी है और इस धुन पर मतदाता थिरकने लगे हैं। शेरो-शायरी, गीत-कव्वाली, कविता- व्यंग्य के रूप में शब्दों के बाणों से चुनावी समर गीत-संगीतमय हो गया है।

ठगबंधन की टोली आई ...

पूर्वांचल के लोकगीतों में चुनावी रंग गहरे तक घुल गया है। अगर आप भोजपुरी पट्टी यानी यूपी-बिहार के हाइवे पर से गुजरते हैं या गांवों-कस्बों की सैर करते हैं तो आपके कानों में गूंजेगी फुल वाल्यूम झंकार 'नून रोटी खाएंगे 'फलां' को जिताएंगे...', और आपको सहज ही एहसास हो जाएगा कि यह इलाका एकदम चुनावी मूड में आ गया है। इसका खुमार दलों की तैयारियों से आगे बढ़ते हुए मतदाताओं के दिलों पर छा गया है। दरअसल, भोजपुरी फिल्म स्टार व लोकगायक खेसारी लाल के सुरों से सजे सुपरहिट गीत 'नून रोटी खाएंगे संगही जिनगी बिताएंगे...ठीक है...' में चुनावी तड़का लगाते हुए अलग-अलग कलाकारों की ओर से विभिन्न दलों के शीर्ष नेताओं के नाम जोड़ रीमिक्स तैयार कर दिए गए हैं। इन्हें घर-बाहर, नुक्कड़-चौराहे, दुकानों-वाहनों में सुना और गुनगुनाया भी जा रहा है। इसी अंदाज में अन्य लोकप्रिय गीतों को भी थोड़े फेरबदल के साथ चुनावी टोन दिया जा रहा है, जिन्हें पसंद भी किया जा रहा है। चुनाव की बात हो तो भला बनारसी अंदाज कैसे पीछे छूट जाए। यह बनारस के गीतकार कन्हैया दुबे केडी के गीतों में नजर आता है। दो दशक से रचना-कर्म में जुटे केडी का मानना है कि गीत मन के भावों की अभिव्यक्ति हैं। यह जब सुनने वाले के करीब होता है तो खुद सुपर-डुपर हिट हो जाता है। ऐसे में डिमांड बनाने के लिहाज से भी इसका निष्पक्ष होना जरूरी है। इसके जरिए कही गई बात जल्द समझ में आती है, दिलों में उतर जाती है। केडी के लिखे गीतों में ऋतु-पर्व, तीज-त्योहार बनारसी मिजाज-अंदाज के साथ ही 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ', स्वच्छता समेत सामाजिक संदेशों की अभिव्यक्ति भी नजर आती है। डॉ. अमलेश शुक्ल अमन के सुरों में 'मोदीजी के अलगे भौकाल रे...', 'माया-ममता बहिन मोदी जी से कहिन...', ठगबंधन की टोली आई ...' समेत गीत आडियो-वीडियो एलबम के साथ ही चैनलों पर भी छाए हुए हैं।

हमारे हिस्से टैक्स, महंगाई, नेता हिस्से मेवा ही मेवा

चंडीगढ़ के मुरारी लाल अरोड़ा ने जब खरड़ पंजाब के पास लगे एक होर्डिंग पर हाथ जोड़कर खड़े एक नेता की फोटो के साथ लिखे शब्दों 'राज नहीं सेवा' को देखा तो अपनी कविता रच डाली। राजनीति में नीति नहीं, सिर्फ राज होता है, भारी पलड़े में रहते नेता, हल्के में गरीब सोता है। पहले हाथ जोड़कर लोगों से, वोट मांगने आते हैं, जाति-धर्म निरपेक्ष बनकर, सबको गले लगाते हैं। एक बार जब जीत जाते, तो ढ़ोल नगाड़े बजते हैं, गांधी टोपी पहन कर नेता, जा कुर्सी से चिपकते हैं। राजाओं की तरह राज करते, कालेज गये, न स्कूल गये, कुर्सी, दौलत के नशे में, अपनी जनता को भूल गये। कितना खूबसूरत यह नारा देते 'राज नही सेवा', हमारे हिस्से टैक्स और महंगाई, ख़ुद के हिस्से मेवा ही मेवा।  करीब 400 कविताएं व गीत लिख चुके एम.एल. अरोड़ा बैंक ऑफ बड़ौदा से बतौर चीफ मैनेजर सेवानिवृत हुए हैं। अरोड़ा कहते हैं, 'अक्सर चुनावी माहौल रचनाकारों को व्यंग्य लिखने के लिए खूब मसाला देता है। सभी जानते हैं कि पांच साल बाद इन्हें गरीबों की याद आती है और सत्ता मिलते ही वे मेवा बटोरने में लग जाते हैं।'

फिल्मी गाने और चुनावी पैरोडी

जब एक तरफ से कव्वाली गूंजती है 'देश को लूट लिया मिल के पंजे वालों ने, काले धन वालों ने, 2जी स्कैम वालों ने ..., तो दूसरी तरफ से जवाब मिलता है ... 'हमें तो लूट लिया मिल के कमल वालों ने, चाय बेचने वालों ने, जुमले बोलने वालों ने ...'। कुछ इस तरह से म्यूजिकल बहस चल रही हैं इन दिनों गली, नुक्कड़ों और टीवी चैनलों पर। बॉलीवुड के फिल्मी गीतों की पैरोडी बनाना आसान है और चुनाव में खूब शान से यह गूंजती हैं। कहते हैं कि 'उतरे हैं चुनाव में तो कुछ कर के रहेंगे, जैसे जीते हैं पहले भी, वैसे अब भी जीतेंगे।' एक पार्टी के प्रवक्ता कहते हैं कि हमारी पार्टी का मोटो है, 'किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द ले सके तो ले उधार, किसी के दिल में हो तेरे लिए प्यार, जीना इसी का नाम है ...' तो दूसरे कहते हैं, 'राज की बात कह दूं तो जाने महफिल में फिर क्या हो? इशारों को अगर समझो तो राज को राज ही रहने दो...'। फिर हर चुनावी जंग में धुन के साथ ये शब्द कानों में पडऩे तो लाजिमी हैं कि 'पब्लिक है ये सब जानती है, पब्लिक है, अंदर क्या है, बाहर क्या है, ये सब पहचानती है, पब्लिक है, ये सब जानती है ...।'

लोकतंत्र के मंच पर लगी नुमाइश एक ...

'साथ मिलकर कंटकों के चल सके वो बागबां, भूख, भ्रष्टाचार, भय को जो मिटा दे कारवां, जागिए, उठिए, चुनिए उस सही इंसान को, बन सके जो संतरी औ हो हमारा पासबां' चुनावी माहौल पर कविताएं लिखने वाली, गोरखपुर की कवयित्री, डॉ. वाटिका कंवल कहती हैं, 'जब भी चुनाव आते हैं मैं कविता लिखती हूं। पहले लाउड स्पीकर से प्रचार होते थे। बिल्ला लगाकर घूमने में बड़ा मजा आता था। आज भी चुनावी चौका लिख रही हूं। एक-एक शब्द के प्रयोग को काफी तौलना पड़ता है, कड़ी मेहनत है। फिर भी चुनावी चर्चा का आनंद ही कुछ अलग है। मेरा जनता से निवेदन है कि वे मतदान में शत-प्रतिशत भागीदारी करें। इसे उत्सव की तरह मनाएं।' डॉ. वाटिका कंवल 25 वर्षों से लिख रही हैं। आकाशवाणी लखनऊ के घर-आंगन कार्यक्रम में वार्ता प्रस्तुत करने वालीं वाटिका के बचपन से ही घर में संगीत का माहौल था। मां आशा श्रीवास्तव रेडियो, टीवी सिंगर थीं। उन्हीं के साथ मंचों पर जाती थीं और गीत-संगीत का सिलसिला शुरू हो गया। उनके रचित शब्दों की एक तस्वीर देखिए। 'लोकतंत्र के मंच पर लगी नुमाइश एक, खड़ा मदारी कह रहा देख तमाशा देख। देख तमाशा देख कोबरा बीन बजावे, उल्लू गावें शबद औ तोते शेर सुनावें। लीडर चिपकें पब्लिक से ज्यों पानी में जोंक, सत्ता ही इहलोक में सत्ता ही परलोक'।

घोषणा पत्र का प्रतिबिंब मिलता है गीतों में

रांची के दीपक श्रेष्ठ पिछले 27-28 साल से नागपुरी, खोरठा सहित हिंदी में भी चुनावी गीत गा रहे हैं। दीपक कहते हैं, दीपक की इन चुनावों में गाने की पूरी तैयारी है। पिछले चुनाव में भी उन्होंने गीत गाया था। इसके बाद विधानसभा का चुनाव हुआ था। नगर निगम चुनाव में पार्षदों के लिए गाया था। रांची के ही गायक जीतेंद्र भी कहते हैं, 'चुनाव में गीतों का बोलबाला तो रहता ही है। गीतों के शब्द ऐसे होते हैं जिससे प्रत्याशी का पूरा घोषणा पत्र प्रतिबिंबित हो। वह अपनी पूरी बात, जो अपने मतदाताओं से कहना चाहता है, गीतों के जरिए कह देता है। ऐसे गाने को लेकर उत्साह तो रहता ही है। मजा भी आता है।'

तंदूरी मुर्गा छके हैं नेता, देश क्लेश में

पंजाब के मोहाली निवासी आनंद के.टी. चुनाव में नेताओं का दोगलापन देखकर व्यंग्य कविताएं लिखने के लिए प्रेरित होते हैं। करीब 20 साल से कविताएं लिखने का शौक रखने वाले आनंद एक बैंक में जॉब करते हैं। उनके अनुसार हर बार चुनाव में कोई न कोई मुद्दा लिया जाता है जिस पर नेताओं के भाषण कुछ कहते हैं तो जमीनी वास्तविकता कुछ और ही होती है। लोगों के बीच विचरे बिना नेताओं के हवाई वायदे मन में कई तरह के विचार पैदा करते हैं, जिन्हें कविता के रूप में कलमबद्ध करता हूं। आनंद कुमार तिवारी की कविता की एक बानगी देखिए। एक तरफ सरकार चलाएं, एक तरफ दें धरना। राजनीति के खेल निराले, सबको है चित करना।। चाहे हो जाए कितना भी, बवाल देश में। ममता, माया, मोह, दंभ है, नेता के भेष में।।

पुण्य-पावन लोकतंत्र के, खेल अजूबे देखे। कोई आग लगाए कोई, रोटी अपनी सेंके।। तंदूरी मुर्गा छके हैं नेता, देश क्लेश में, ममता, माया, मोह, दंभ है, नेता के भेष में।।

जिलाधिकारी दीपक रावत ने गाया गीत

चुनावी बेला में हरिद्वार के जिलाधिकारी दीपक रावत का एक गीत मतदान की अलख जगा रहा है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे गीत 'अपने अधिकारों का सम्मान करें, चलो मतदान करें' वोटरों में अधिक से अधिक मतदान के लिए जोश भर रहा है। दीपक रावत कहते हैं कि इस गीत का आइडिया उन्हें सर्व शिक्षा अभियान के 'चलो स्कूल चलें' से आया। अब तक हजारों लोग इस गीत को लाइक और शेयर कर चुके हैं। जिलाधिकारी दीपक रावत का मानना है कि गीत या कविता की पहुंच अन्य माध्यमों से कहीं ज्यादा होती है। यह लोगों के दिमाग तक असर करती है। सोशल मीडिया की घर-घर तक पहुंच होने के कारण गीत के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का आइडिया आया। दीपक कॉलेज के दिनों से ही गुनगुनाते रहे हैं। कभी-कभी तो ऑफिस में बैठकर ही गुनगुनाने लगते हैं। पर गीत के माध्यम से लोगों को मतदान के लिए प्रेरित करने के इस अनुभव को बहुत अच्छा बताते हैं।

चलते हैं रीजनल व सीजनल गीत

दस हजार से अधिक गीतों को आकार दे चुके प्यारेलाल यादव 'कवि' का मानना है कि गीतों के लिए कलम तो पब्लिक डिमांड पर ही चलती है। वर्ष 1980 से लोक से जुड़े गीतों को रच रहे हैं गाजीपुर के तड़वा गांव निवासी प्यारेलाल। इसके जरिए वह जहां लोगों को जागरूक कर रहे हैं, वहीं अच्छे इंसान को चुनने का संदेश भी भर रहे हैं। गीत-संगीत के माहौल में पले-बढ़े प्यारेलाल के गीतों को उनके भाई भोजपुरी फिल्म स्टार व गायक दिनेशलाल यादव निरहुआ, लोक गायक विजय लाल यादव के साथ ही छपरा के खेसारीलाल और आजमगढ़ की शिष्या उजाला भी सुरों में पिरो कर लोगों के बीच ले जा रही हैं। फिलहाल मुंबई में जा बसे प्यारेलाल दो टूक कहते हैं कि गीत तो रीजनल व सीजनल ही चले हैं। इन्हें ऋतु-पर्व के हिसाब से ही लिखा-गाया जाता है और यह सीजन तो चुनाव का ही है। इन गीतों के जरिए हर वह बात कही-समझाई जा सकती है जो शायद सीधे शब्दों में न समझ आए। नजीर के तौर पर 'असो होलिया क रंग...' में अच्छे इंसान को चुनने और मतदान हर हाल में करने की सलाह दी गई है।

प्रचार के सशक्त माध्यम हैं गीत

गीत उम्मीदवार समर्थकों में जोश भरता है और प्रचार में भी सहूलियत होती है। प्रचार का यह सशक्त माध्यम भी है। इसलिए लोग गवाते हैं। कार्यकर्ता भी उत्साहित हो जाते हैं गीत सुनकर। चूंकि यहां कई भाषाएं हैं। इसलिए रांची छोड़ आस-पास गांवों के लिए स्थानीय बोलियां जरूरी होती हैं। उनकी बोली में गीत उन्हें टच करते हैं।

दीपक श्रेष्ठ

सिंगर, रांची

इस बार तुम मुझे जिताओ

आ गये दिन इलेक्शन के

मेरे 'प्रिय नेता' घर आए हैं

गांधी-टोपी, खादी का कुर्ता

चमचों की भीड़ भी लाए हैं ।

कोई दे रहा 'कमल का फ़ूल'

कोई मुझसे 'हाथ' मिला रहा

एक छोड़ गया 'साइकल' अपनी

एक आंगन में 'झाड़ू लगा रहा ।

मगर इन बातों से भैया

पेट कहाँ पर भरता है

इस बार इलेक्शन लडऩे का

मेरा भी मन करता है ।

जो वायदे किये थे तुम सबने

वही वायदे मैं भी करता हूँ

सुनी तुम्हारी 'मन की बात'

अब अपने मन की करता हूँ ।

तुम सबने 'माया' खूब कमाई

आपस में इल्जाम लगाया है

न मिटी गरीबी देश से

न काला धन ही आया है ।

आए हो तो एक कप चाय

गरीब के हाथ की पीकर जाओ

देकर अपना कीमती वोट

इस बार तुम मुझे जिताओ ।

एमएल अरोड़ा 'आजाद'

इनपुट: वाराणसी से प्रमोद यादव, जालंधर से वंदना वालिया बाली, रांची से संजय कृष्ण, देहरादून से हिमांशु जोशी, लखनऊ से कुसुम भारती


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.