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शिबू के दबाव पर कांग्रेस ने किया सीटिंग सीटों पर समझौता, दोनों बार मिली हार

अपने मजबूत जनाधार के बल पर शिबू कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी के साथ भी अपनी शर्तों पर चुनावी समझौते करते रहे हैं। 2004 में राजमहल व कोडरमा सीट इसका बड़ा उदाहरण है।

By Deepak PandeyEdited By: Published: Mon, 18 Mar 2019 10:25 AM (IST)Updated: Mon, 18 Mar 2019 10:25 AM (IST)
शिबू के दबाव पर कांग्रेस ने किया सीटिंग सीटों पर समझौता, दोनों बार मिली हार
शिबू के दबाव पर कांग्रेस ने किया सीटिंग सीटों पर समझौता, दोनों बार मिली हार

दिलीप सिन्हा, गिरिडीह: राजनीतिक दांव-पेच में झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन का भी कोई जवाब नहीं है। अपने मजबूत जनाधार एवं दांव-पेच के बल पर शिबू कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी के साथ भी अपनी शर्तों पर चुनावी समझौते करते रहे हैं। 2004 लोकसभा चुनाव में कोडरमा एवं राजमहल सीट पर चुनावी तालमेल न होना इसका बड़ा उदाहरण है।

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सीटिंग सीट होने के बावजूद कांग्रेस को इन दोनों सीटों पर झामुमो के साथ दोस्ताना संघर्ष करना पड़ा था। कोडरमा से तिलकधारी प्रसाद सिंह एवं राजमहल से थामस हांसदा कांग्रेस के सांसद थे। इस दोस्ताना संघर्ष की कीमत कांग्रेस को अपनी दोनों सीटों को भाजपा के हाथों गंवाकर अदा करनी पड़ी थी।

तीसरी बार मैदान में थे तिलकधारी प्रसाद सिंह: भाजपा के दिग्गज नेता रीतलाल प्रसाद वर्मा को हराकर तिलकधारी प्रसाद सिंह 1999 में कोडरमा से दूसरी बार सांसद चुने गए थे। 2004 के चुनाव में तीसरी बार सांसद बनने के लिए वे मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे थे। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए कांग्रेसी काफी उत्साहित थे। हवा कांग्रेस के पक्ष में बह रही थी। कांग्रेस, झामुमो-राजद एवं वामदलों का गठजोड़ बनाने की पहल हुई। दिल्ली में आरके धवन के आवास पर तिलकधारी सिंह एवं थॉमस हांसदा को भी बुलाया गया था। शिबू सोरेन दिवंगत रीतलाल प्रसाद वर्मा की पत्नी चंपा वर्मा के लिए कोडरमा एवं हेमलाल मुर्मू के लिए राजमहल सीट की मांग पर अड़े रहे। कांग्रेस के वोट कहीं बिदक कर भाजपा में नहीं चले जाए, इसलिए शिबू ने दोस्ताना संघर्ष का प्रस्ताव रखा। सीटिंग सीट पर दोस्ताना संघर्ष से दोनों सांसदों की नाराजगी का भी भय पार्टी को सता रहा था।

बोलने की बारी तिलकधारी सिंह की आयी। तिलकधारी ने कहा कि कोडरमा में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को भाजपा ने उतारा है। इस कारण लड़ाई मजबूत है। तिलकधारी ने कहा कि उनके दो उद्देश्य हैं। पहला सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनें और दूसरा वे खुद सांसद बनें। सोनिया को प्रधानमंत्री बनाने के लिए पार्टी उनकी सीट पर जो भी निर्णय लेगी, वह तहे दिल से स्वीकार करेंगे। तिलकधारी की इस घोषणा के साथ ही कोडरमा में दोस्ताना संघर्ष के फैसले पर मुहर लग गयी।

भाजपा से बाबूलाल मरांडी, झामुमो से चंपा वर्मा, कांग्रेस से तिलकधारी प्रसाद सिंह एवं भाकपा माले से राजकुमार यादव मैदान में उतरे। इस चतुष्कोणीय लड़ाई में भारी अंतर से बाबूलाल ने बाजी मार ली। इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस एवं झामुमो के बीच यहां दोस्ताना संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में भी बाजी बाबूलाल ने ही मारी। इस चुनाव में बाबूलाल ने बाजी अपनी पार्टी झाविमो से मारी थी। भाजपा इस लड़ाई में तीसरे नंबर पर चली गई थी।

हमेशा विरोधियों को मिलता रहा फायदा: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व सांसद तिलकधारी प्रसाद सिंह ने दैनिक जागरण को बताया कि झारखंड बनने के बाद जितने भी चुनाव यहां हुए, उसमें कांग्रेस एवं झामुमो के बीच दोस्ताना संघर्ष हुआ। इसका फायदा विरोधियों को मिला और वे जीते। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि यदि 2004 के चुनाव में दोस्ताना संघर्ष नहीं हुआ होता तो आज इस इलाके में भाजपा इतनी मजबूत नहीं होती। भाजपा को हराने के लिए वे पूर्ण समझौता के पक्षधर है। इसी कारण इस बार के चुनाव में कांग्रेस ने बाबूलाल के लिए कोडरमा सीट छोड़ दी है। 


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