Lok Sabha Election 2019 : चुनावी बुखार की चपेट में आ गया है आभासी संसार भी
साइबर संसार का विस्तार तेजी से विस्तार हो रहा है। लोकसभा चुनाव में भी सोशल मीडिया की अहम भूमिका नजर आ रही है। डिजिटल युग में चुनाव प्रचार का तरीका बदल गया है।
ताराचंद गुप्ता, प्रयागराज : 'कितने लाइक, कितने कमेंट, कितना इंगेजमेंट पाया है...।' 'इसी से दिन शुरू और इसी में रात बिताया है...।'
आभासी संसार की उछलकूद को लेकर किसी कवि की यह पंक्तियां मौजूदा लोकसभा चुनाव में सटीक बैठती हैं। सोशल मीडिया ब्रांडिंग का अहम जरिया बन रहा है। प्रत्याशी और उनके समर्थक अपने विरोधियों को निरुत्तर करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्म का जमकर उपयोग कर रहे हैं। दरअसल आज ज्यादातर हाथों में स्मार्ट फोन है। लोग फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप या अन्य किसी सोशल नेटवर्किंग साइट से जुड़े है। लोकतंत्र के इस महापर्व में उन तक अपनी बात पहुंचाने का यह ऐसा माध्यम है, जहां त्वरित फीडबैक भी मिल रहा है।
वोटर गूगल गुरु से उम्मीदवारों का पूछ रहे हाल
इस बार लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया भी जीत हार में खास भूमिका निभाएगा। फेसबुक जहां प्रत्याशियों के बारे में यूजरों को बता रहा है, वहीं तमाम वोटर गूगल गुरु से उम्मीदवारों का हाल पूछ रहे हैं। मतदान से पहले जागरूक मतदाता इस बात की जानकारी जुटा रहे हैं कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए कौन पार्टी का कौन प्रत्याशी सशक्त होगा। सोशल मीडिया की बढ़ती दखल ने चुनाव प्रचार का तरीके भी बदल दिया है। डिजिटल युग में पोस्टर, बैनर और होर्डिंग लगभग नहीं के बराबर हैं। प्रत्याशियों की पहली पसंद सोशल मीडिया ही है। वजह यह है कि इसके जरिए चंद क्षणों में ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचाई जा सकती है। लगभग पार्टियों के सोशल मीडिया सेल एक्टिव हैं। दलों के नेता तो पल-पल की बात अपडेट कर ही रहे हैं।
कमजोरी, आलोचना का बड़ा हथियार
राजीतिक दलों की कमजोरी उजागर करना, आलोचना और बढ़ाई करने के लिए भी सोशल मीडिया कारगर हथियार है। इसलिए विभिन्न दलों के नेता, प्रत्याशी और समर्थक जमकर इसका उपयोग कर रहे हैं। कह सकते हैं कि मतदाताओं को लुभाने के लिए सोशल मीडिया मजबूत धरातल के रूप में उभरा है। हाईकोर्ट के अधिवक्ता प्रमेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं कि अब टेंपो, रिक्शा से लाउडस्पीकर की आवाज नहीं सुनाई देती बल्कि सोशल मीडिया पर वीडियो व फोटो देखने को मिलती है।
गेम चेंजर भी हो सकता है सोशल मीडिया
इलाहाबाद और फूलपुर संसदीय क्षेत्र में लगभग 46 लाख मतदाता हैं। इसमें करीब नौ लाख से ज्यादा वोटर युवा हैं, जिनकी उम्र 29 साल से कम है। इसके अलावा 10 लाख से ज्यादा वोटर ऐसे हैं, जिनकी उम्र 30 से 39 साल के बीच है। यह ऐसा वर्ग है, जो स्मार्ट फोन रखता है। हर दूसरा अथवा तीसरा व्यक्ति स्मार्ट फोन के जरिए राजनीतिक बहस में हिस्सा भी ले रहा है। सोशल मीडिया गेम चेंजर की भूमिका में है। इसलिए प्रत्याशियों को डिजिटल सलाहकार तक रखने पड़ रहे हैं। फेसबुक तथा गूगल गुरु के विभिन्न एप प्रत्याशियों का चिट्ठा खोल दे रहे हैं। यदि आपको फूलपुर अथवा इलाहाबाद या फिर प्रतापगढ़ के प्रत्याशियों के जीवन को जानना हो तो सब कुछ गूगल गुरु अथवा फेसबुक पर मिल जाएगा। अच्छा या खराब।
आयोग से लेकर पुलिस तक की नजर
सोशल मीडिया इस चुनाव में इतनी अहम भूमिका में है कि चुनाव आयोग से लेकर पुलिस तक की इस पर नजर है। आयोग ने इस माध्यम पर प्रचार को चुनाव खर्च में शामिल किया है, जबकि आपत्तिजनक संदेश और अफवाह रोकना भी पुलिस के लिए बड़ी चुनौती है। प्रयागराज और प्रतापगढ़ में पुलिस की साइबर व सोशल मीडिया सेल लगातार निगाह रख रही है। चुनाव सेल के अधिकारी व कर्मचारी शिकायतों का निस्तारण भी कर रहे हैं।
सिविल लाइंस और शिवकुटी में मुकदमा
सोशल मीडिया का यदि सकारात्मक पक्ष है तो नकारात्मक असर भी नजर आता है। तमाम लोग ऐसे हैं, जो इसके जरिए अफवाह फैलाने से लेकर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाडऩे की कोशिश भी कर रहे हैं। व्यक्ति विशेष और पार्टी के बारे में आपत्तिजक संदेश, वीडियो और फोटो वायरल करने पर प्रयागराज में दो मुकदमे भी दर्ज किए जा चुके हैं। सिविल लाइंस थाने में शेखर गौड़ और शिवकुटी थाने में एक अधिवक्ता की तहरीर पर रिपोर्ट हुई है।
होर्डिंग, बैनर का धंधा हुआ मंदा
आमतौर पर विधानसभा और लोक सभा चुनाव में होर्डिंग, बैनर, झंडा मकान और गाड़ी से लेकर सड़क तक नजर आते थे, लेकिन इस बार माहौल अलग है। शहर से लेकर गांवों की तमाम गली-मुहल्ले ऐसे हैं, जहां चुनाव जैसा कुछ नहीं दिख रहा। प्रयाग व्यापार मंडल के अध्यक्ष विजय अरोरा मानते हैं कि सोशल मीडिया के कारण होर्डिंग, बैनर का धंधा मंदा हुआ है। कई दुकानदार भी उनसे पूरी तरह सहमत हैं।
सभी पार्टी के प्रत्याशी लगातार सक्रिय
फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप, इंस्ट्राग्राम, यू-ट्यूब, वी चैट पर नजर डालें तो चुनाव मैदान में उतरे सभी पार्टी के प्रत्याशी सोशल मीडिया पर लगातार सक्रिय हैं। छठवें चरण में 12 मई को होने वाले मतदान से पहले भाजपा, सपा-बसपा गठबंधन, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी प्रत्याशी के अलावा कई निर्दलीय उम्मीदवार भी सोशल मीडिया के विविध प्लेटफार्म का सहारा ले रहे हैं। जनसंपर्क का विवरण डाला जा रहा है। साथ ही यह बताया जा रहा है कि कहां कैसा रिस्पांस मिला। इस पर आने वाले कमेंट को फीडबैक समझकर तद्नुरूप रणनीति बनाई जा रही है।
बोले एडीजी जोन
एडीजी जोन एसएन साबत कहते हैं कि मतदाताओं को जागरूक करने से लेकर अफवाह फैलाने तक में सोशल मीडिया का किरदार सामने आ रहा है। चुनाव में आपत्तिजनक संदेश, वीडियो व फोटो पर नजर रखने के लिए साइबर सेल बनाया गया है। शिकायतों का निस्तारण करते हुए आवश्यक कार्रवाई की जा रही है।
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