Lok Sabha Election 2019: नागपुर से नितिन गडकरी के विकास पुरुष वाली छवि सब पर भारी
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे नितिन गडकरी मोदी सरकार में केंद्रीय परिवहन मंत्री हैं। नितिन गडकरी के मंत्री रहते देश में परिवहन के क्षेत्र में भरपूर विकास हुआ है।
नागपुर, ओमप्रकाश तिवारी। देशभर में मीठे संतरों के लिए मशहूर और कांग्रेस का गढ़ समझे जाने वाले नागपुर को केंद्र सरकार के वरिष्ठ मंत्री नितिन गडकरी ने अब संतरों के ही रंग में रंग दिया है। 2014 में भाजपा के टिकट पर नागपुर से चुनाव जीतने वाले वह पहले गैर कांग्रेसी व्यक्ति थे, तो इस बार सही अर्थों में उनकी विकास पुरुष वाली छवि की तूती बोलती दिख रही है।
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके केंद्रीय परिवहन, जहाजरानी व सिंचाई मंत्री नितिन गडकरी अपनी विकास दृष्टि का लोहा तो 1995 से 1999 के बीच महाराष्ट्र के पीडब्ल्यूडी मंत्री रहते हुए ही मनवा चुके थे। मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे, बांद्रा-वर्ली सी लिंक व अत्यंत कम अवधि में मुंबई जैसे व्यस्त महानगर में बने 55 फ्लाईओवर उन्हीं का करिश्मा थे।
अब केंद्रीय मंत्री के रूप में देश के कोने कोने में चल रहे बड़े विकास कार्यों पर निगाह जाते ही गडकरी की छवि सामने आ जाती है। इस बात का गर्व उनके शहर नागपुर के लोगों को भी होता है क्योंकि नागपुर में हाल ही में शुरू हुए मेट्रो का काम हो, सीमेंट से बनी सड़कें हों, या दूसरी विकास परियोजनाएं, पिछले पांच वर्ष में हुए काम सबकी निगाह के सामने हुए हैं। आम नागपुरवासी न सिर्फ इसे महसूस कर रहे हैं, बल्कि उन्हें यह भरोसा भी है कि गडकरी रहे तो विकास की यह धारा लगातार बहती रहेगी।
लेकिन गडकरी को चुनौती दे रहे कांग्रेसी उम्मीदवार नाना पटोले गडकरी द्वारा किए जा रहे इन्हीं विकास कार्यों में भ्रष्टाचार की गंध भी खोज निकालते हैं। चाहे सीमेंटेड सड़कें हों, चाहे बायो फ्यूल से चलने वाली बसें, चाहे मेट्रो। उनमें भ्रष्टाचार होने का दावा वह नागपुरवासियों के बीच जाकर कर रहे हैं। संपत्ति कर बढ़ाने व म्यूनिसिपल दुकानों के किराए में वृद्धि जैसे स्थानीय मुद्दे भी गडकरी की कमियों में जोड़कर बताने से नहीं चूकते।
नागपुर में हुई कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सभा ने उनका उत्साह भी बढ़ाया है। लेकिन गडकरी के सामने उनकी चुनौती बौनी साबित हो रही है। क्योंकि आम मतदाता जिस विकास की उम्मीद में अपना जनप्रतिनिधि चुनता है, वह उसे होता दिखाई दे रहा है। वैसे भी नागपुरवासियों के लिए नाना पटोले बाहरी उम्मीदवार हैं। पिछला लोकसभा चुनाव उन्होंने विदर्भ की ही गोंदिया-भंडारा सीट से भाजपा के टिकट पर लड़कर जीता था। फिर तीन साल भाजपा के सांसद रहने के बाद असंतुष्ट होकर न सिर्फ संसद की सदस्यता, बल्कि भाजपा से भी त्यागपत्र दे दिया था।
अपने राजनीतिक जीवन के शुरुआती दिनों में दो बार कांग्रेस के विधायक रहे पटोले फिर से कांग्रेस में ही लौट गए और उन्हें इस बार नागपुर से गडकरी को चुनौती देने के लिए भेज दिया गया। पिछला चुनाव गडकरी से हार चुके कांग्रेसी दिग्गज विलास मुत्तेमवार इस बार स्वयं मैदान से बाहर रहते हुए पटोले को समर्थन कर रहे हैं। लेकिन उनकी मंसा अब स्वयं चुनावी राजनीति से दूर रहते हुए अपने पुत्र को विधानसभा चुनाव के लिए तैयार करने की है। इसलिए, इस चुनाव में पटोले के बहाने वह बेटे के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय रहा नागपुर सवर्ण व दलित मतदाताओं का गढ़ है। यही कारण है कि इस क्षेत्र में डॉ. भीमराव आंबेडकर के रिपब्लिकन आंदोलन का भी अच्छा असर रहा है और अब तक के लोकसभा चुनावों में कई बार रिपब्लिकन नेता दूसरे स्थान पर रहते आए हैं। 2004 के लोकसभा चुनाव में तो बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार ने भी यहां से अच्छे मत खींचे थे।
लेकिन इस बार बसपा और प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन आघाड़ी का हिस्सा एमआइएम, दोनों ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। इसका सीधा नुकसान जहां कांग्रेस को हो सकता है, वहीं दलित मतदाता भी भ्रमित हो सकते हैं। गडकरी समर्थक मानते हैं कि इसका लाभ भी भाजपा को ही मिलेगा और इस बार गडकरी की जीत का अंतर पहले से ज्यादा होगा।