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Lok sabha Election 2024: बदल गया दौर, अब दीवारों पर पोस्टर नहीं, कंपनी के हाथों में आई चुनाव प्रबंधन की कमान

Lok sabha Election 2024 अब शादी-विवाह से लेकर चुनाव तक में पूरा प्रबंधन काम करता है। चुनाव को ही लें अब दौर बदल गया है। पहले दीवारों पर पोस्टर लगाए जाते थे नारों से दीवार रंगी जाती थी। अब बदले दौर में पेशेवरी कंपनी के हाथों में चुनाव की कमान आ गई है। जानिए किस तरह चुनाव प्रबंधन का काम हो रहा है।

By Jagran News Edited By: Deepak Vyas Published: Sun, 05 May 2024 05:30 AM (IST)Updated: Sun, 05 May 2024 07:40 AM (IST)
Lok sabha Election 2024: अब शादी-विवाह से लेकर चुनाव तक में पूरा प्रबंधन काम करता है।

Lok sabha Election 2024: आम चुनाव-2024 अब मतदान के तीसरे चरण में प्रवेश कर रहा है। प्रचार से लेकर मतदान तक, मतदाताओं को बांधे रखने के लिए कैसे किया जाता है चुनाव का प्रबंधन, इसकी पड़ताल की मनोज त्यागी ने...। एक समय था जब शादी-विवाह से जुड़ी व्यवस्था घर के लोग ही संभाल लेते थे और कुछ कच्चा-कुछ पक्का होते हुए सब संपन्न हो जाता था। कोई अव्यवस्था हुई भी तो आपस में देख-समझकर उसको दूर करने के लिए प्रयास होते थे, या फिर ताउम्र रह जाती थी वह खटास जो इसी अव्यवस्था के साथ सात फेरों से जुड़ जाती थी। यही हाल चुनाव के दिनों में भी होता था। कहीं प्रचार हो पाया, कहीं अधूरी रह गई कोशिश। मगर अब शादी-विवाह से लेकर चुनाव तक में पूरा प्रबंधन काम करता है।

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दीवारों पर पोस्टर लगाने से चुनाव प्रबंधन तक

चुनाव प्रबंधन से राजनीतिक दलों को भरपूर लाभ भी मिला। पहले के चुनाव की बात करें तो दीवारों को पार्टी के रंगों से रंग दिया जाता था, रंग-बिरंगे पोस्टर लगाकर दीवारों की सूरत ही बदल दी जाती थी। समय के साथ चुनाव प्रचार का तरीका भी बदल गया। इंटरनेट मीडिया के इस युग में कुछ लोगों ने बहुत ही साइलेंट तरीके से कंपनी का गठन किया और चुनावों का प्रबंधन कैसे किया जाए इस पर बाकायदा शोध किया गया। भारत में इस तरह से चुनाव प्रबंधन का पहली बार प्रयोग भाजपा अध्यक्ष रहते हुए नितिन गडकरी ने 2012 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में किया। इसके बाद पेशेवर चुनाव प्रबंधन का प्रयोग दूसरे दलों ने भी किया।

मतदाता तक लगातार दस्तक

आज कई चुनाव प्रबंधन कंपनियां यह काम कर रही हैं। आईवी ब्लू रिसर्च के निदेशक अमरीश त्यागी बताते हैं, ‘चुनाव प्रबंधन में जुटी कंपनियां बूथ डेटा इकट्ठा करती हैं। रिसर्च होती है कि इंटरनेट मीडिया पर कौन से स्थानीय मुद्दों पर चर्चा हो रही है। किन मुद्दों को लेकर लोगों में आक्रोश है। जिस पार्टी के लिए कंपनी क्षेत्रवार काम करती है, उससे जुड़े ही मुद्दों को इकट्ठा किया जाता है। यह नहीं है कि बंगाल के मुद्दों पर उत्तर प्रदेश के किसी एक संसदीय क्षेत्र में प्रयोग करें।

जनता से मुद्दों पर की जाती है बात

कंपनी से जुड़े लोग महिलाओं, बुजुर्ग, युवा, किसान आदि से बात करते हैं, उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष राय ली जाती है। शासन से मिलने वाली योजनाओं पर लाभार्थियों से बात होती है। घर, वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन, किसानों को मिलने वाली सहायता राशि आदि की क्या स्थिति है, कंपनी इसको समझती है। योजनाओं की जानकारी भी जनमानस तक पहुंचाने का काम चुनाव प्रबंधन से जुड़ी कंपनी करती हैं।

इसके लिए कंपनी से जुड़े लोग नागरिकों से सीधे जुड़ते हैं। उनसे जानकारी करते हैं कि योजना का लाभ उन्हें मिल रहा है या नहीं। ये सभी जानकारी जुटा कर पार्टी तक पहुंचाने का काम कंपनी करती है। इंटरनेट मीडिया के जरिए भी लोगों तक पार्टी की रीति-नीति के बारे में जानकारी पहुंचाई जाती है। मतदाता को समय-समय पर यह भी याद दिलाना होता है कि उसको योजना का लाभ मिल रहा है या नहीं और वह योजना किस सरकार या पार्टी द्वारा संचालित है।’

भारतीय चुनाव व्यवस्था की दुनिया कायल

अमरीश बताते हैं, ‘भारत की चुनाव व्यवस्था के सभी देश कायल हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने लोगों की राय जानने और उन्हें पक्ष में प्रेरित करने के लिए मुझे बुलाया था। उस समय ट्रंप लगातार बीजिंग और बेंगलुरु को टारगेट कर रहे थे। बेंगलुरु को टारगेट करने से भारतीय समुदाय आहत हो रहा था। लोगों से बात की गई तो उन्होंने यह जानकारी दी। तभी बेंगलुरु को ट्रंप के भाषण से निकाल दिया गया था।'

तकनीक के दौर में बढ़ जाती है राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी

अमरीश मानते हैं कि इस तकनीक के दौर में हमारी और राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। इसी सप्ताह तेलंगाना से जैसा मुद्दा सामने आया, एआई के जरिए जिस तरह से छेड़छाड़ की जा रही है, वह बहुत ही घातक है। फेक और रियल में बहुत बारीक अंतर है जिसे सामान्य व्यक्ति नहीं समझ सकता है। आज यह भी जरूरी है कि विश्वविद्यालयों में चुनाव प्रबंधन पर नए कोर्स चलाए जाएं। इससे युवाओं को रोजगार के साथ देश को पढ़े-लिखे नेता मिलेंगे। साफ-सुथरे लोग आएंगे, तो देश तरक्की करेगा। लोकतंत्र का मतलब ही उम्मीद है!’


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