Lok Sabha Election 2019: धनबाद में भाजपा और कांग्रेस के लिए बराबरी का दांव
जब देश में पहली बार 1951-52 में आम चुनाव हुए थे उस समय धनबाद लोकसभा सीट मानभूम उत्तर में आता था। 1957 में धनबाद लोकसभा सीट अपने अस्तित्व में आ चुकी थी।
By Edited By: Published: Fri, 03 May 2019 10:24 PM (IST)Updated: Sat, 04 May 2019 09:09 AM (IST)
धनबाद, बलवंत कुमार। झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में से धनबाद हाई प्रोफाइल सीट बन गई है। कारण साफ है कांग्रेस की तरफ से राष्ट्रीय फलक के पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी कीर्ति झा आजाद और राजनीति में पार्षद से लेकर संसद भवन तक की सीढि़यां चढ़ने वाले भाजपा के पशुपतिनाथ सिंह आमने-सामने हैं। वर्ष 2014 के चुनाव में पशुपतिनाथ सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी अजय कुमार दुबे को सर्वाधिक 2.92 लाख वोटों से मात दी थी, जो अब तक इस सीट पर जीत का सबसे बड़ा अंतर रहा है।
महत्वपूर्ण सीट : जब देश में पहली बार 1951-52 में आम चुनाव हुए थे उस समय धनबाद लोकसभा सीट मानभूम उत्तर में आता था। 1957 में धनबाद लोकसभा सीट अपने अस्तित्व में आ चुकी थी। धनबाद लोकसभा सीट शुरू से ही काफी महत्व की रही है। देश की कोयला राजधानी होने के कारण भी इसका महत्व बढ़ जाता है। रीता वर्मा ने खोला था भाजपा का खाता : 1989 के आम चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रूप में समरेश सिंह ने चुनाव लड़ा, लेकिन वे हार गए। इसके बाद 1991 में भाजपा ने धनबाद के पूर्व एसपी शहीद रणधीर प्रसाद वर्मा की पत्नी प्रो. रीता वर्मा को खड़ा किया और वे जीत गई। उनकी जीत का यह सिलसिला 1996, 1998 व 1999 तक जारी रहा। 2004 के चुनाव में रीता वर्मा को कांग्रेस के चंद्रशेखर दुबे ने हरा दिया। 2009 के चुनाव में पशुपतिनाथ सिंह ने यहां से चुनाव लड़ा और जीत गए। उनकी जीत का यह क्रम 2014 में भी जारी रहा। यानी 16 बार में छह बार धनबाद सीट से भाजपा के प्रत्याशी सांसद बने।
कांग्रेस ने भी मारा है छक्का : बात कांग्रेस की करें तो आजादी के बाद 1952 में हुए चुनाव में मानभूम उत्तर से कांग्रेस प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी। कांग्रेस की जीत का यह क्रम 1957, 1962, 1971, 1984 व 2004 तक जारी रहा। यानी कांग्रेस ने भी धनबाद लोकसभा सीट से छह बार जीत दर्ज कर चुकी है। तीन बार एके राय रहे सांसद : धनबाद लोकसभा सीट पर वामपंथी का भी कब्जा रहा है। 1977, 1980 और 1989 में एके राय यहां से सांसद हुए। जबकि जेकेडी की रानी ललिता राजलक्ष्मी 1967 में जीती थीं।
छह विस में से पांच पर भाजपा का कब्जा : धनबाद लोकसभा क्षेत्र के विधानसभा सीटों पर गौर करें तो छह में से पांच पर भाजपा का ही कब्जा है। इनमें धनबाद, झरिया, सिंदरी, चंदनकियारी और बोकारो से भाजपा विधायक हैं, जबकि निरसा वामपंथी दल मासस के कब्जे में है। इस बार आन, बान और शान की लड़ाई : 2019 का आम चुनाव कांग्रेस और भाजपा के लिए आन, बान और शान की लड़ाई है। दोनों का दाव सातवीं बार इस सीट पर कब्जा जमाने की है। पीएन सिंह के पास भाजपा के उम्मीदों पर खरा उतरने के साथ रीता वर्मा के रिकार्ड को कायम रखने की चुनौती है तो, वहीं भाजपा छोड़ आए कीर्ति आजाद को पुन: यह सीट कांग्रेस की झोली में डालने की चुनौती। ऐसे में अब यह देखना है कि जनता किसकी झोली में यह सीट डालती है।
महत्वपूर्ण सीट : जब देश में पहली बार 1951-52 में आम चुनाव हुए थे उस समय धनबाद लोकसभा सीट मानभूम उत्तर में आता था। 1957 में धनबाद लोकसभा सीट अपने अस्तित्व में आ चुकी थी। धनबाद लोकसभा सीट शुरू से ही काफी महत्व की रही है। देश की कोयला राजधानी होने के कारण भी इसका महत्व बढ़ जाता है। रीता वर्मा ने खोला था भाजपा का खाता : 1989 के आम चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रूप में समरेश सिंह ने चुनाव लड़ा, लेकिन वे हार गए। इसके बाद 1991 में भाजपा ने धनबाद के पूर्व एसपी शहीद रणधीर प्रसाद वर्मा की पत्नी प्रो. रीता वर्मा को खड़ा किया और वे जीत गई। उनकी जीत का यह सिलसिला 1996, 1998 व 1999 तक जारी रहा। 2004 के चुनाव में रीता वर्मा को कांग्रेस के चंद्रशेखर दुबे ने हरा दिया। 2009 के चुनाव में पशुपतिनाथ सिंह ने यहां से चुनाव लड़ा और जीत गए। उनकी जीत का यह क्रम 2014 में भी जारी रहा। यानी 16 बार में छह बार धनबाद सीट से भाजपा के प्रत्याशी सांसद बने।
कांग्रेस ने भी मारा है छक्का : बात कांग्रेस की करें तो आजादी के बाद 1952 में हुए चुनाव में मानभूम उत्तर से कांग्रेस प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी। कांग्रेस की जीत का यह क्रम 1957, 1962, 1971, 1984 व 2004 तक जारी रहा। यानी कांग्रेस ने भी धनबाद लोकसभा सीट से छह बार जीत दर्ज कर चुकी है। तीन बार एके राय रहे सांसद : धनबाद लोकसभा सीट पर वामपंथी का भी कब्जा रहा है। 1977, 1980 और 1989 में एके राय यहां से सांसद हुए। जबकि जेकेडी की रानी ललिता राजलक्ष्मी 1967 में जीती थीं।
छह विस में से पांच पर भाजपा का कब्जा : धनबाद लोकसभा क्षेत्र के विधानसभा सीटों पर गौर करें तो छह में से पांच पर भाजपा का ही कब्जा है। इनमें धनबाद, झरिया, सिंदरी, चंदनकियारी और बोकारो से भाजपा विधायक हैं, जबकि निरसा वामपंथी दल मासस के कब्जे में है। इस बार आन, बान और शान की लड़ाई : 2019 का आम चुनाव कांग्रेस और भाजपा के लिए आन, बान और शान की लड़ाई है। दोनों का दाव सातवीं बार इस सीट पर कब्जा जमाने की है। पीएन सिंह के पास भाजपा के उम्मीदों पर खरा उतरने के साथ रीता वर्मा के रिकार्ड को कायम रखने की चुनौती है तो, वहीं भाजपा छोड़ आए कीर्ति आजाद को पुन: यह सीट कांग्रेस की झोली में डालने की चुनौती। ऐसे में अब यह देखना है कि जनता किसकी झोली में यह सीट डालती है।
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