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Lok Sabha Election2019: सियासत की तरकश से चले थे जब शब्दबाण

बीते लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा और रालोद ने एक-दूसरे पर साधा था निशाना। इस बार शान में कसीदे गढऩा मतदाताओं के सामने चुनौती।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Mon, 18 Mar 2019 05:50 PM (IST)Updated: Mon, 18 Mar 2019 05:50 PM (IST)
Lok Sabha Election2019: सियासत की तरकश से चले थे जब शब्दबाण
Lok Sabha Election2019: सियासत की तरकश से चले थे जब शब्दबाण

आगरा, विनीत मिश्र। दुश्मनी जमकर करो, लेकिन ये गुंजाइश रहे, जब कभी हम दोस्त हो जाए तो शर्मिंदा न हों। मशहूर शायर बशीर बद्र का ये शेर शायद सियासतदां ने नहीं सुना। जनता के हमदर्द बन दूसरों पर आरोप दागने वाले सियासतदां समय के साथ बदलते रहे। सपा-बसपा और रालोद के साथ भी कुछ ऐसा ही है। भाजपा और सपा के गढ़ आगरा मंडल में अपनी सियासी जमीन मजबूत करने को जिन नेताओं ने एक- दूसरे पर शब्दबाण छोड़े, अब वह उनकी तारीफ में कसीदे गढ़ेंगे। अपने बदले सियासी सुर के निहितार्थ मतदाताओं को समझाना उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।
बात बहुत पुरानी नहीं है। वर्ष 2014 का चुनावी महासमर था। हर दल में दिल्ली के ताज की बेताबी। ये वही ताजनगरी और आगरा मंडल के जिले हैं, जहां पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव, बसपा अध्यक्ष मायावती और फिर फतेहपुर सीकरी और मथुरा के रण में अपनी दमदार उपस्थिति बताने के लिए रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह ने सियासी जुबां से जमकर हमले किए थे। ये बात अलग है कि मैनपुरी और फीरोजाबाद को छोड़ अन्य कहीं से साइकिल नहीं दौड़ सकी। बसपा का खाता शून्य रहा, तो कमल की पंखुडिय़ां जमकर फैलीं। शायद बदले सियासी माहौल का मर्म इन नेताओं ने समझा। पांच साल पहले की सियासी दुश्मनी इस बार दोस्ती में बदली। सपा-बसपा और रालोद ने दोस्ती का नया नारा बुलंद किया और गठबंधन से प्रत्याशी उतारने का फैसला किया है। तीनों नेताओं ने एक ही साथ चुनावी रैलियां भी करने का ऐलान किया है। जाहिर है, बीते चुनावों की जो शब्दबाण छोड़े गए थे, इस बार वह तरकश में होंगे और दोस्ती के नए शब्दबाण मतदाता के सामने। चुनौती मतदाताओं को दोस्ती का नया फलसफां समझाने की है।

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ये चले थे शब्दों के तीर

गुंडा माफिया की सपा सरकार
उत्तर प्रदेश में सपा का नहीं गुंडे और माफिया का राज है। विकास के काम कहीं नहीं हो रहे, प्रदेश पिछड़ता जा रहा है। सपा की सरकार में दंगाई भयमुक्त हो जाते हैं। मुजफ्फरनगर के दंगों ने जनता को कुंठित कर दिया है।
मायावती, बसपा प्रमुख, 18 अप्रैल 2014, कोठी मीना बाजार आगरा।


जब माया और मुलायम सत्ता में आते हैं, तो कोई उद्योगपति उत्तर प्रदेश में पैसा लगाने को तैयार नहीं होता। किसी की जेब से पैसे निकालने में मायावती तो मुलायम की बड़ी बहन हैं।
चौधरी अजित सिंह, राष्ट्रीय अध्यक्ष, रालोद, 4 अप्रैल 2014 अकोला, आगरा।


बसपा सरकार ने सूबे को लूट लिया। अफसर से लेकर मंत्री तक जेल में हैं। वह ऐसी पहली मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने जिंदा में अपनी मूर्ति लगवाई। बाद मेें पता चला कि कुछ मूर्तियां और बनवाकर अलग से रखवाई गई हैं।
अखिलेश यादव, तत्कालीन मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश, वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष सपा। 20 अप्रैल 2014, एत्मादपुर, आगरा।


रालोद-कांग्रेस की दोस्ती न आई रास
बीते 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और रालोद ने गठबंधन किया। फतेहपुर सीकरी की सीट रालोद के खाते में आई, तो आगरा सुरक्षित कांग्रेस के हिस्से में। लेकिन दोनों ही सीटों पर गठबंधन प्रत्याशियों को निराशा हाथ लगी। फतेहपुर सीकरी से रालोद से लड़े अमर सिंह और आगरा में कांग्रेस से लड़े उपेंद्र सिंह चौथे स्थान पर रहे।

साइकिल व हाथ की दोस्ती भी दरकिनार
2017 का विधानसभा चुनाव था। सपा और कांग्रेस ने गठबंधन किया। लेकिन ताजनगरी की नौ विधानसभा सीटों में एक भी सीट गठबंधन प्रत्याशी के खाते में नहीं गई।

सपा-बसपा का साथ भी नकारा
1993 में सूबे में सपा और बसपा ने गठबंधन कर विधानसभा चुनाव लड़ा था, तब भी दोनों की दोस्ती मतदाताओं को रास नहीं आई। यहां से गठबंधन का एक भी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका।  


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