Lok Sabha Election 2019: मध्य प्रदेश की पांच सीटों पर कांग्रेस को चुनौती देता 'सपा बसपा' गठबंधन
29 लोकसभा सीटों वाले मध्यप्रदेश में सपा तीन सीटों पर और बसपा 26 सीटों पर प्रत्याशी उतार रही है। मध्यप्रदेश की बालाघाट टीकमगढ़ और खुजराहो सीट से सपा के प्रत्याशी मैदान में हैं।
भोपाल, ऋषि पाण्डे। उत्तर प्रदेश के दो प्रमुख क्षेत्रीय दल सपा और बसपा इस बार के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय पार्टियों का खेल बिगाड़ सकते हैं। सपा और बसपा ने उत्तर प्रदेश में गठबंधन के साथ ही मध्य प्रदेश में भी दोनों दलों ने गठबंधन किया है। सपा की पकड़ यादव वोट बैंक में है, तो बसपा की पकड़ अनुसूचित जातियों में है।उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के राजनीतिक सीन में बुनियादी फर्क यह है कि वहां बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी का गठबंधन भाजपा के प्रतिकूल है, जबकि मध्य प्रदेश में यह गठबंधन एकदम अनुकूल है। भले ही गठबंधन लगभग आधा दर्जन लोकसभा सीटों पर ही कारगर हैं, लेकिन फौरी तौर पर तो यह कांग्रेस की पेशानियों पर चिंता की सिलवटें खींचता हुआ दिखाई दे रहा है।
जी हां, मध्य प्रदेश की 29 में से पांच लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां सपा-बसपा गठजोड़ कांग्रेस की संभावनाओं को पलीता लगा सकता है। ये सीटें हैं- मुरैना, ग्वालियर, बालाघाट, सतना और रीवा। इनमें बालाघाट को छोड़ बचे हुए चारों लोकसभा क्षेत्र उत्तर प्रदेश से सटे हुए हैं। इन सीटों के राजनीतिक गुणा-भाग उत्तर प्रदेश के सियासी मिजाज से प्रभावित होते हैं। सपा-बसपा गठबंधन का असर खजुराहो, टीकमगढ़ सीट पर भी देखने को मिल सकता है, लेकिन उतना नहीं जो कांग्रेस की हार-जीत के आंकड़ों में फर्क डालने का माद्दा रख पाए।
विधानसभा चुनाव के समय भी सपा-बसपा और कांग्रेस के बीच सीटों के बंटवारे पर लंबे समय तक बातचीत चली, लेकिन आखिर में बेनतीजा इसलिए रही कि कांग्रेस दोनों दलों को राज्य में उनके कद के अनुरूप सीट देना चाहती थी। जबकि बसपा-सपा की हसरतें ज्यादा बड़ी थीं। हालांकि मौजूदा कांग्रेस सरकार को ये दोनों ही दल बाहर से समर्थन दे रहे हैं।
गौरतलब है कि मप्र विधानसभा में बसपा के दो और सपा का एक विधायक है। विधानसभा चुनाव के वक्त अपने-अपने दम पर चुनाव लड़ने वाले ये दोनों दल इस बार एकजुट होकर चुनाव लड़ रहे हैं तो जाहिर तौर पर वोटों का विभाजन रुकेगा।
अब उन सीटों की चर्चा जहां बसपा-सपा गठबंधन कांग्रेस को मुश्किल में डाल सकता है
रीवा: पिछले लोकसभा चुनाव में यहां से भाजपा के जनार्दन मिश्रा ने कामयाबी पाई थी। उन्होंने कांग्रेस के स्व. सुंदरलाल तिवारी को एक लाख 68 हजार मतों के अंतर से पराजित किया था। उस चुनाव में बसपा के देवराज सिंह पटेल ने एक लाख 75 हजार वोट पाए थे। तब सपा मैदान में नहीं थी। रीवा वह क्षेत्र है, जहां से बसपा के सांसद भी चुने जा चुके हैं। इस बार बसपा और सपा के वोट इकट्ठे डलेंगे। जाहिर है कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। यहां यह भी ध्यान देने वाली बात है कि पिछले विधानसभा चुनाव में रीवा जिले में भाजपा ने बढ़त हासिल की थी।
सतना: 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार अजय सिंह भाजपा के गणेश सिंह से मामूली आठ हजार मतों के अंतर से परास्त हुए थे। तब बसपा के धर्मेंद्र सिंह तिवारी एक लाख 33 हजार मत पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे। सोचा जा सकता है कि बसपा की ताकत ऐसी ही रही तो कांग्रेस के सामने कितनी मुश्किलें खड़ी हो सकती है। वह भी तब भाजपा के हौसले विंध्य अंचल में बुलंद हैं।
ग्वालियर: ग्वालियर लोकसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच वोटों का फासला पिछले दो चुनावों से 30 हजार के आसपास टिका हुआ है। 2009 में भाजपा की यशोधरा राजे सिंधिया कांग्रेस के अशोक सिंह से 26 हजार मतों से जीती थीं तो 2014 में भाजपा के नरेंद्र सिंह तोमर ने मोदी लहर के बावजूद उन्हीं अशोक सिंह के मुकाबले 29 हजार ज्यादा वोट पाकर जीत दर्ज की थी। यहां बसपा का वोट भी फिक्स है। 2009 में बसपा उम्मीदवार को यहां से 76 हजार वोट मिले तो 2014 में 67 हजार। पिछले दो चुनावों में सपा ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे, इसलिए उसका वोट कांग्रेस के खाते में गया होगा। इस बार ऐसा नहीं हो पाएगा।
मुरैना: मुरैना संसदीय सीट पर पिछले चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा और बसपा के बीच था। कांग्रेस तो यहां तीसरे नंबर पर खिसक गई थी। भाजपा के अनूप मिश्रा ने बसपा के वृंदावन सिकरवार को 1.32 लाख वोटों से हराया, जबकि कांग्रेस के डॉ. गोविंद सिंह 1.78 लाख वोट ही जुटा पाए थे। समझा जा सकता है कि यहां बसपा कितनी ताकतवर है।
बालाघाट: यहां कांग्रेस जितने मत से हारी, उससे ज्यादा वोट सपा को मिले थे। पिछले चुनाव में भाजपा के बोधसिंह भगत ने कांग्रेस की हिना कांवरे को 96 हजार से हराया था। जबकि सपा की अनुभा मुंजारे को 99 हजार वोट मिले थे।