Move to Jagran APP

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तेजी से दौड़ते रहे हैं सपा और बसपा के सियासी घोड़े

सपा और बसपा के सियासी घोड़े हमेशा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तेज दौड़े हैं। यही कारण है कि दोनों पार्टियों की राजनीति का केंद्र भी पश्चिम का ही किला रहा है।

By Narendra KumarEdited By: Published: Sat, 16 Mar 2019 02:07 PM (IST)Updated: Sat, 16 Mar 2019 06:17 PM (IST)
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तेजी से दौड़ते रहे हैं सपा और बसपा के सियासी घोड़े
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तेजी से दौड़ते रहे हैं सपा और बसपा के सियासी घोड़े

मुरादाबाद (प्रांजुल श्रीवास्तव)। सपा और बसपा के सियासी घोड़े हमेशा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तेज दौड़े हैं। यही कारण है कि दोनों पार्टियों की राजनीति का केंद्र भी पश्चिम का ही किला रहा है। इसके पीछे यहां के जातीय समीकरण हैं, जिन पर दोनों पार्टियों के सियासी पंडितों ने आंख मूंद कर भरोसा किया है। यहां पर उम्मीदवारों को उतारने से लेकर बिसात बिछाने तक का काम जातीय समीकरणों से ही तय होता है। अब जब दोनों पार्टियों का गठबंधन है तो यहां के जातीय समीकरणों पर एक बार फिर दोनों पार्टियों ने दांव खेलना शुरू कर दिया है।

loksabha election banner

दोनों पार्टियों ने सियासी समीकरणों को समझा

पिछले लोकसभा चुनावों को छोड़ दिया जाए तो पश्चिमी उत्तरप्रदेश के किले को भेदने के लिए यहां के समीकरणों को दोनों पार्टियों ने बखूबी समझा है। मुस्लिम और दलित आबादी बाहुल्य होने के कारण इस क्षेत्र में हमेशा दोनों पार्टियों ने मुस्लिम चेहरे पर ही दांव लगाया है। जनता ने भी इन्हीं उम्मीदवारों अपने मतों से नवाजा, इस वजह से मुरादाबाद में ही पिछले दस लोकसभा चुनावों में तीन बार सपा का परचम लहराया है और नौ बार मुस्लिम प्रत्याशी को ही जीत मिली है। इसी तरह सहारनपुर, रामपुर, मेरठ और मुजफ्फरनगर की सीट पर भी दस लोकसभा में छह से ज्यादा बार मुस्लिम प्रत्याशियों ने ही जीत तय की है।

मुस्लिम, दलित और जाट फैक्टर ने किया काम

पश्चिमी उत्तरप्रदेश में सपा और बसपा की मजबूती की वजह मुस्लिम, दलित और जाट फैक्टर भी है। 2014 में मोदी मैजिक को छोड़ दिया जाए तो वेस्ट यूपी की नौ सीटों पर बीएसपी और 13 सीटों पर सपा दूसरे स्थान पर रही थी। वहीं 2009 के चुनावों में भी मुरादाबाद से कांग्रेस, रामपुर से सपा, संभल से बसपा, अमरोहा और बिजनौर से रालोद, जबकि नगीना से सपा के उम्मीदवार संसद में जगह बनाने में कामयाब हुए थे।

कैराना उपचुनावों ने एक बार फिर बदला समीकरण

2014 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश से एक भी मुस्लिम प्रत्याशी लोकसभा नहीं पहुंचा था। सियासी पंडितों का कहना है कि इसके पीछे मोदी का जादू था। जिसने जातीय समीकरणों को भेदते हुए मतदाताओं के रुख को एकतरफा कर दिया था। हालांकि कैराना में हुए उपचुनावों में एक बार फिर पश्चिम की सियासत को जातीय समीकरणों पर केंद्रित कर दिया है। यहां पर गठबंधन प्रत्याशी तबस्सुम बेगम ने संसद का सफर तय किया, इसके बाद से यहां एक बार फिर समीकरणों पर गुणा भाग तेज हो गया है। पश्चिम उत्तरप्रदेश के समीकरणों में ज्यादातर मुस्लिम प्रत्याशियों को जीत मिली है। इसकी वजह मुस्लिम मतदाताओं का एकजुट होना और सियासी समीकरण के तहत मुस्लिम प्रत्याशी को उतारना भी रहा। जातिगत समीकरणों के चलते ही हमेशा यहां मुस्लिम प्रत्याशी ही जितते रहे हैं।

गठबंधन में जाट वोट को साधेगा रालोद

पश्चिम उप्र की राजनीति में हमेशा जाट वोट सबके लिए सरदर्द रहे हैं। इसके लिए कई पार्टियों ने रालोद से गठबंधन किया है। रालोद ने भी सत्ता के मद में पार्टियों का बखूबी स्वागत किया है। कई सीटों पर जाट वोटरों की अधिकता को देखते हुए इस बार सपा -बसपा गठबंधन ने अजीत सिंह की पार्टी रालोद से समझौता किया है। यह भी जाट वोटरों को साधने की कोशिश की है।  


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.