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Lok Sabha Elections 2019: पश्चिम बंगाल में आसान नहीं शांतिपूर्ण चुनाव की राह

Lok Sabha Elections 2019. पश्चिम बंगाल में शांतिपूर्ण व निष्पक्ष चुनाव कराना आसान नहीं है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Sun, 17 Mar 2019 12:26 PM (IST)Updated: Sun, 17 Mar 2019 12:26 PM (IST)
Lok Sabha Elections 2019: पश्चिम बंगाल में आसान नहीं शांतिपूर्ण चुनाव की राह
Lok Sabha Elections 2019: पश्चिम बंगाल में आसान नहीं शांतिपूर्ण चुनाव की राह

कोलकाता, अनवर हुसैन। पश्चिम बंगाल में शांतिपूर्ण व निष्पक्ष चुनाव कराना आसान नहीं है। अक्सर चुनाव आयोग के साथ सरकार व सत्तारूढ़ दल के टकराव की स्थिति पैदा हो जाती है। चुनाव आयोग जब राज्य में शांतिपूर्ण व निष्पक्ष चुनाव करने का प्रयास करता है तो उसे कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पहले वामपंथी थे तो उस समय और अब तृणमूल है तो अब भी। चुनाव में खूनी खेल का इतिहास पुराना है। शायद ही कोई चुनाव हो जिसमें हत्याएं व हिंसा नहीं होती हो। यही वजह है कि राज्य के नाम चुनावी हिंसा और धांधली का रिकार्ड है।

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इस बार भी सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जिस तरह राज्य में सात चरणों में चुनाव कराने पर तीखा प्रहार किया है, उससे नहीं लगता है कि आयोग की राह आसान होगी। हालांकि, आयोग अन्य राज्यों की तरह पश्चिम बंगाल में भी शांतिपूर्ण व निष्पक्ष चुनाव कराने की दिशा में काम कर रहा है। लेकिन, सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस ने जिस तरह कड़ा रुख अपनाया है उससे चुनाव आयोग के समक्ष चुनौतियां खड़ी हो गई हैं।

चुनाव के समय राज्य में तनावपूर्ण माहौल होना आम बात है। पिछले वर्ष ही पंचायत चुनाव में जमकर हिंसा हुई थी, जिसमें 13 लोग मारे गए थे। आतंक और हिंसा के कारण ग्राम बांग्ला के कुछ भागों में तो ग्रामीणों को घर छोड़ कर अन्यत्र शरण लेनी पड़ी थी। वाममोर्चा के एक उम्मीदवार को जलाकर मार देने की वीभत्स घटना भी घटी थी। हिंसा फैलाने का आरोप सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस पर लगा था। बताया जाता है कि सत्तारूढ़ दल के आतंक से विपक्षी दलों के उम्मीदवार नामांकन तक दाखिल नहीं कर पाए और त्रिस्तरीय पंचायत में 20 हजार से अधिक सीटों पर सत्तारूढ़ दल के उम्मीदवार निर्विरोध जीत गए। मामला कलकत्ता हाईकोर्ट से होकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। भाजपा और माकपा ने तो सुप्रीम कोर्ट में पंचायत चुनाव को रद कराने की अपील की थी।

यह बात दूसरी है कि सुप्रीम कोर्ट ने पंचायत चुनाव रद करने का फैसला नहीं सुनाया लेकिन चुनावी हिंसा और धांधली पर चिंता जताई थी। वाममोर्चा के 34 वर्ष के शासन में भी चुनावी हिंसा का रिकार्ड कम वीभत्स नहीं है। माकपा ने तो चुनावी धांधली का वैज्ञानिक तरीका निकाल लिया था, जिसमें विपक्षी दलों के समर्थकों को वोट करने का मौका भी नहीं मिलता था। वाममोर्चा के शासन में चुनावी हिंसा में खूनी खेल से लेकर एक कांग्रेस कार्यकर्ता के हाथ काट लेने का उदाहरण मौजूद है। वाममोर्चा के शासन में ही सीआरपीएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने चुनावी धांधली रोकने में हस्तक्षेप किया तो माकपा समर्थित महिलाओं ने उस पर दु‌र्व्यवहार और छेड़खानी का आरोप लगा दिया था।

भाजपा ने की है सभी बूथों को संवेदनशील घोषित करने की मांग

केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और भाजपा के प्रदेश प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय समेत अन्य भाजपा नेताओं ने केंद्रीय चुनाव आयुक्त से मुलाकात कर राज्य के सभी बूथों को संवेदनशील घोषित करने की मांग की है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे बंगाल का अपमान बताया और पार्टी की महिला मोर्चा को इसके खिलाफ धरना-प्रदर्शन शुरू करने का निर्देश दे दिया।


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