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Lok Sabha Elections 2019: विकास की डोर के सहारे आगे बढ़ना चाहता है लद्दाख

Ladakh Lok Sabha constituency. लद्दाख लोकसभा सीट पर कांग्रेस भाजपा प्रत्याशियों समेत दो निर्दलीय मैदान में दम दिखा रहे हैं।

By Sachin MishraEdited By: Published: Sun, 05 May 2019 01:15 PM (IST)Updated: Sun, 05 May 2019 01:31 PM (IST)
Lok Sabha Elections 2019: विकास की डोर के सहारे आगे बढ़ना चाहता है लद्दाख
Lok Sabha Elections 2019: विकास की डोर के सहारे आगे बढ़ना चाहता है लद्दाख

अनिल गक्खड़, लेह। क्षेत्रफल के अनुसार देश के सबसे बड़े लोकसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार थम चुका है। सियासी दलों ने हर मतदाता तक पहुंचने के लिए प्रचार में खूब पसीना बहाया। सोमवार को 1.74 लाख मतदाता अपना फैसला सुनाएंगे। पर अभी भी यहां स्थिति साफ नहीं है। इस सीट पर कांग्रेस, भाजपा प्रत्याशियों समेत दो निर्दलीय मैदान में दम दिखा रहे हैं। अंतिम दौर में दोनों प्रमुख दलों के प्रत्याशियों ने दम लगा हालात अपने पक्ष में करने का प्रयास किया पर स्थिति अभी साफ नहीं हो पाई है। पर एक बात साफ है कि मतदाता विकास की डोर के सहारे ही लद्दाख को आगे बढ़ना देखना चाहता है।

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चुनाव के केंद्र में विकास, बदहाल शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था और देश से कनेक्टिविटी प्रमुख मसला है। केंद्रशासित प्रदेश के दर्जे का मसला भी अहम है पर कांग्रेस और भाजपा इस पर ठोस वादा करने से बचते दिख रहे हैं। इन सबकेे बीच एक बार फिर लड़ाई कारगिल बनाम लेह के बीच बनाने में सभी जुटे हैं लेकिन युवा मतदाता इस लड़ाई से आगे बढ़ना चाहता है। यही वजह है कि इस बार तस्वीर साफ नहीं हो रही। भाजपा को विकास योजनाओं के नाम पर आस है ताे कांग्रेस उनके पिछले चुनाव के घोषणापत्र को मुद्दा बना रही है। दोनों निर्दलीय कारगिल के प्रतिनिधित्व के मसले को हवा देने में जुटे हैं।

लेह जिला बौद्ध बहुल क्षेत्र है तो कारगिल शिया मुस्लिम बहुल है। केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा भी अहम है पर आम वोटर यह मान चुका है कि इसकी राह फिलहाल आसान नहीं है। सियासी दल और प्रत्याशी धार्मिक कार्ड और क्षेत्र का मुद्दा उठाने से नहीं चूक रहे पर आम मतदाता अभी भी विकास को मुद्दा मानता है। शिक्षा भी बड़ा मसला है और लद्दाख से करीब 20 हजार युवा देश में दिल्ली और चंडीगढ़ समेत अन्य शहरों में शिक्षा के लिए जाते हैं। यूनिवर्सिटी का मसला लंबे समय से लटका था। भाजपा डीम्ड यूनिवर्सिटी और मेडिकल और इंजीनियरिंग कालेज की घोषणा के नाम पर वोट मांग रही है। कांग्रेस आरोप लगा रही है कि भाजपा केवल वादे कर रही है। पांच साल में घोषणाओं से अधिक कुछ नहीं हुआ।

टूरिज्म व्यावसायी दोरजे नामग्याल कहते हैं कि युवाओं के लिए शिक्षण संस्थान नहीं है। ऐसे में युवाओं को देश के अन्य शहरों में अपनी पढ़ाई जारी करने के लिए जाना पड़ता है। पर्यटन से लद्दाख जितना कमा रहा है, उससे कहीं अधिक शिक्षा पर खर्च करना पड़ रहा है। यूटी के दर्जे के सवाल पर वह कहते हैं कि जल्द यह तोहफा मिलना चाहिए। लेह व कारगिल के मुद्दे पर वह कहते हैं कि सियासी दल इस राजनीति को बढ़ा रहे हैं।

वहीं 84 वर्षीय सोनम दोरजे कहते हैं कि छह माह से अधिक समय तक लेह देश से कटा रहता है। 70 साल से व्यवस्था नहीं है। हवाई सेवाएं इतनी महंगी हैं कि इतने पैसे में यूरोप तक पहुंच सकते हैं। 30 हजार रुपये एक तरफ किराया पड़ता है। चिकित्सा सुविधाएं न के बराबर हैं। इलाज करवाने के लिए फिर दिल्ली या चंडीगढ़ जाएं। हालांकि वह थोड़े संतुष्ट दिखते हैं कि पांच साल में कुछ काम हुए हैं। लेकिन अभी काफी कुछ अभी किया जाना है।

वहीं 55 वर्षीय इनायद भी विकास को ही मुद्दा मानते हैं। वह विकास की गति तेज करने की अपेक्षा करते हैं। हालांकि वह वर्तमान सरकार से संतुष्ट नजर नहीं आते। कहते हैं कि पांच साल भाजपा ने केवल बड़ी बातें की। बातों से अधिक काफी कुछ किया जाना चाहिए।

पर्यटन से जुड़े इमरान कहते हैं कि यहां पर्यटन उद्योग के लिए काफी कुछ किए जाने की आवश्यकता है। यही हर नागरिक का प्रमुख मुद्दा है। इतनी महंगी हवाई टिकट लेकर कोई लद्दाख नहीं आना चाहता। धरातल पर और भी बेहतर सुविधाएं दिए जाने की आवश्यकता है।

कारगिल में विकास के मसले पर भाजपा वोट लेना चाह रही है। जोजिला टनल, हवाई अड्डा का मसला उसके लिए अहम है। एक प्रत्याशी सज्जाद कारगिली को एनसीपी, पीडीपी का समथZन है और दूसरे असगर करबलई कांग्रेस के बागी हैं। यहां कांग्रेस का कैडर उनके साथ खड़ा दिख रहा है। इसी मसले को भाजपा लेह में हवा दे रही है। कारगिल के युवा आसिफ कहते हैं कि भाजपा ध्रुवीकरण को बढ़ा रही है। कारगिल की अनदेखी न हो हम इसके लिए वोट करेंगे। जंस्कार क्षेत्र के कुछ घटनाक्रम ने वहां की सियासत का रुख कुछ बदला है।

सियासी मामलों के जानकार शबीर काचो कहते हैं कि इस बार विकास का मसला अहम है। सियासी दलों ने इसे लेह बनाम कारगिल करने का प्रयास किया लेकिन लोग इस मसले पर भावनाओं में बहते नहीं दिखे। यह पहली बार है कि वोटर चुप है और उसने तय कर लिया है कि वह वोट अपने मुद्दों पर डालेगा। कोई साफ तस्वीर अभी तक उभरती नहीं दिख रही। सियासी दलों के दावों के बीच यह तो वोटर तय करेगा कि किसका पलड़ा भारी है।  

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