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Jharkhand Lok Sabha Election 2019: दिशोम गुरु को हराना मुश्किल है पर नामुमकिन नही; हाल-ए-दुमका

Jharkhand Lok Sabha Election 2019. झारखंड से कड़िया मुंडा और शिबू सोरेन को आठ बार लोकसभा पहुंचने का श्रेय प्राप्‍त है। इस बार शि‍बू सोरेन जीतें या हारें रिकॉर्ड बनना तय है।

By Alok ShahiEdited By: Published: Thu, 16 May 2019 09:58 AM (IST)Updated: Fri, 17 May 2019 05:33 AM (IST)
Jharkhand Lok Sabha Election 2019: दिशोम गुरु को हराना मुश्किल है पर नामुमकिन नही; हाल-ए-दुमका
Jharkhand Lok Sabha Election 2019: दिशोम गुरु को हराना मुश्किल है पर नामुमकिन नही; हाल-ए-दुमका

दुमका, [आशीष झा]। Jharkhand Lok Sabha Election 2019 - झारखंड में शासन किसी का भी रहा हो, उपराजधानी दुमका में दिशोम गुरु शिबू सोरेन का ही कब्जा रहा है। अलग राज्य झारखंड बनने की घोषणा के वक्तवर्ष 2000 से 20 वर्ष पहले और अब इसके लगभग 20 वर्ष बाद दुमका में शिबू सोरेन का ही कब्जा जा रहा है। 1980 से लेकर 2019 तक शिबू सोरेन 8 बार इस क्षेत्र से लोकसभा पहुंच चुके हैं। दो बार उन्हें पराजय का भी सामना करना पड़ा है।

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शिबू सोरेन की दो हार के पीछे वे भावनात्मक लहरें रहीं जिनके कारण पूरे देश में माहौल बदला। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब जनमानस कांग्रेस के पक्ष में उमड़ पड़ा तो शिबू सोरेन अपना दूसरा चुनाव लड़ रहे थे और उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। वहीं, जब 13 महीने की वाजपेयी सरकार गिरी तो लोगों की भावनाएं अटल जी के लिए उमड़ीं और एक बार फिर शिबू सोरेन चुनाव हार गए।

इन दो घटनाओं से सीख ले चुके और सांसद के रूप में लगभग चार दशक बिता चुके शिबू सोरेन अपने अनुभवों से मोदी लहर में खुद को बचाने में सफल रहे। लेकिन अब इस चुनाव में उनके सामने बड़ी चुनौती है। मैदान में उनके सामने एक बार फिर पुराने शिष्य सुनील सोरेन हैं, जिन्हें दो चुनाव की हार के बावजूद पार्टी ने मैदान में उतारा है। सुनील गुरुजी को कड़ी टक्कर भी दे रहे हैं।

गुरु के राजनीतिक स्टंट और उनकी टीम के रग-रग से वाकिफ सुनील हर उस जगह पर जा रहे हैं, जहां थोड़ी सी भी संभावना है। दोनों की उम्र का अंतर इस बात से समझ सकते हैं कि सुनील की जितनी उम्र है (40 वर्ष) उतने ही दिनों से शिबू सांसद हैं। गुरुजी अब बूढ़े हो गए हैं और उनका चुनाव प्रबंधन उनके बेटे हेमंत सोरेन के अलावा पार्टी के लोग कर रहे हैं।

शिबू सोरेन पहले जितना सक्रिय तो नहीं रहते हैं अलबत्ता कई क्षेत्रों में लोगों को उनके दर्शन हो जा रहे हैं। दिशोम गुरु का नाम उन्हें संथाल परगना के लाखों लोगों ने दिया है और इनमें से हजारों अभी भी सोरेन की एक आवाज पर सड़क पर उतर जाते हैं। शिबू सोरेन की ताकत यही संथाल आदिवासी हैं और इन्हीं की बदौलत वे और उनके चेले (बगल की सीट राजमहल से) लोकसभा तक पहुंचते रहे हैं।

इस चुनाव में गुरुजी को कांग्रेस और झारखंड विकास मोर्चा का पूरा साथ मिल रहा है। पुराने प्रतिद्वंद्वी बाबूलाल मरांडी शिबू सोरेन के पक्ष में कई सभाएं कर चुके हैं। शिबू के साम्राज्य में दखल का श्रेय निश्चित रूप से बाबूलाल मरांडी को जाता है जिन्होंने एक बार शिबू सोरेन और दूसरी बार उनकी पत्नी रूपी सोरेन को चुनाव में हराया था। शिबू सोरेन 2002 में 2.56 लाख वोट पाकर जीते तो 2004 में 3.39 लाख। 2009 में वह 2.08 लाख वोट पाकर जीते और 2014 में 3.35 लाख।

इस बार चुनौती बड़ी है क्योंकि सुनील सोरेन के साथ मोदी का नाम और काम जुड़ गया है। भाजपा नेता अजय बताते हैं कि पिछले आम चुनाव में सुदूर जंगलों तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इतने लोकप्रिय नहीं हो सके थे क्योंकि यहां संचार व्यवस्था ध्वस्त थी।इस बार भाजपा कार्यकर्ताओं ने मेहनत की है और मुख्यमंत्री स्वयं क्षेत्र के कोने-कोने में घूमरहे हैं। झामुमो की तैयारी भी कम नहीं है। पार्टी के नेता और कार्यकर्ता गांव-गांव, जंगल-जंगल घूम रहे हैं और लोगों तक शिबू सोरेन का संदेश पहुंचा रहे हैं।

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