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Lok Sabha Election 2019: बिखरे विपक्ष से कम हुई जयंत सिन्हा की बाधाएं

Lok Sabha Election 2019. नागरिक उड्डयन मंत्री जयंत सिन्हा लगातार दूसरी बार झारखंड के हजारीबाग से उड़ान भरने को तैयार हैं। इस बार बाधाएं पहले से कम हैं। कारण है बिखरा हुआ विपक्ष।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Thu, 02 May 2019 02:27 PM (IST)Updated: Thu, 02 May 2019 07:58 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019: बिखरे विपक्ष से कम हुई जयंत सिन्हा की बाधाएं
Lok Sabha Election 2019: बिखरे विपक्ष से कम हुई जयंत सिन्हा की बाधाएं

रांची, [आशीष झा]। Lok Sabha Election 2019- नागरिक उड्डयन मंत्री जयंत सिन्हा लगातार दूसरी बार झारखंड के हजारीबाग से उड़ान भरने को तैयार हैं। इस बार बाधाएं पहले से कम हैं। कारण है बिखरा हुआ विपक्ष। यहां भाजपा को दो बार हरा चुकी सीपीआइ को इस बार कांग्रेस का साथ नहीं मिला है। दोनों दल पूरी ताकत से लड़ रहे हैं।

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सीपीआइ की चर्चा इसलिए कि यहां से दो बार सीपीआइ उम्मीदवार भुवनेश्वर प्रसाद मेहता भाजपा को परास्त कर चुके हैं। पिछले चुनाव में विपक्ष का साथ नहीं मिलने पर भुवनेश्वर प्रसाद मेहता को महज 30326 मतों से संतोष करना पड़ा था। इस बार भी उन्हें किसी का साथ नहीं मिल रहा है। कांग्रेस का इतिहास भी इतना मजबूत नहीं रहा है।

कांग्रेस के लिए यह सीट कभी आसान नहीं रही है और चार दशकों में सिर्फ एक बार इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई थी। इस क्षेत्र का नेतृत्व कर चुके पिछले दस सांसदों में दो सीपीआइ और एक-एक कांग्रेस और जनता पार्टी के रहे हैं। बाकी छह बार यह सीट भाजपा के खाते में रही है। जयंत सिन्हा के लिए पिछली बार इस सीट से जीत बहुत आसान रही।

पिता यशवंत सिन्हा ने सांसद के रूप में तीन टर्म पूरा करने के बाद यह सीट बेटे जयंत को सौंप दी थी। बाद में यशवंत भाजपा की कोर टीम का विरोध करने लगे। लेकिन जब 2019 के लोकसभा चुनाव का आगाज हुआ और उनके पुत्र को टिकट मिला तो वह चुप्पी साधे हुए हैं। लगातार दूसरी पारी के लिए जयंत के सामने बिखरा हुआ विपक्ष है तो गिनाने के लिए कई काम।

क्षेत्र में शिक्षा, चिकित्सा और परिवहन के क्षेत्र में बड़े काम हुए हैं। पहली बार ट्रेन चली, मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, महिला इंजीनियरिंग कॉलेज, कृषि अनुसंधान केंद्र आदि खुलने से लोगों के सामने दर्जनों उदाहरण हैं। इससे बदलाव को महसूस किया जा सकता है, विकास को समझा जा सकता है। भाजपा यहां विकास के बूते लड़ रही है।

हालांकि, इस क्षेत्र से उड़ान भरने का लोगों का सपना पूरा नहीं हो सका है। हवाई अड्डे के लिए शिलान्यास के बावजूद जमीन का अधिग्रहण भी नहीं हो सका है। दो बार के सांसद और अनुभवी नेता भुवनेश्वर प्रसाद मेहता को इस चुनाव में विपक्षी पार्टियों खासकर कांग्रेस, राजद, झामुमो और झाविमो का साथ नहीं मिल रहा है। ये पार्टियां आपस में महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ रही हैं। इसमें वामपंथी दलों को जगह नहीं दी गई।

ऐसे में मेहता की हालत पतली है और उनसे बेहतर स्थिति में कांग्रेस दिख रही है। कांग्रेस के उम्मीदवार गोपाल प्रसाद साहू के लिए यह क्षेत्र नया है और महज 15-20 दिनों की तैयारियों के साथ उन्हें अपनी ताकत का एहसास कराना है। इसके लिए वह मेहनत भी कर रहे हैं और लगातार क्षेत्र का भ्रमण कर रहे हैं। जातिगत समीकरण साहू के पक्ष में दिख रहा है।

इनके लिए पूर्व विधायक योगेंद्र साव की टीम पूरे दमखम से मेहनत कर रही है। बड़कागांव विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस को बढ़त दिलाने की कोशिश है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां सर्वाधिक परिवार विस्थापित हुए हैं। लगातार आंदोलनों व पुलिस फायरिंग में लोगों की मौत के बाद स्थानीय सरकार से एक वर्ग की नाराजगी है और यह वर्ग कांग्रेस के पक्ष में जाता दिख रहा है।

पूरे क्षेत्र में साव और साहू बिरादरी के लोग अब कांग्रेस उम्मीदवार को जानने लगे हैं लेकिन इस समुदाय में भाजपा की बड़ी पैठ है और कैडर वोट भी। इसलिए जातिगत आधार पर वोट कितना किसके पक्ष में जाएगा, कहना मुश्किल है। डेढ़ से दो लाख के बीच अल्पसंख्यकों का वोट है और ये बड़े स्तर पर कांग्रेस के साथ खड़े दिख रहे हैं।

क्षेत्र में मॉब लिंचिंग की घटना और इसमें नामजद लोगों को जमानत मिलने के बाद मंत्री जयंत सिन्हा द्वारा माला पहनाकर स्वागत किया जाना इस समुदाय को नहीं भा रहा है। पिछले चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार को 2.47 लाख वोट मिले थे और जयंत से 1.59 लाख वोट से उनकी हार हुई थी।

क्षेत्र में जातिगत समीकरण के साथ धन का व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल होना तय माना जा रहा है। कांग्रेस के कैंप कार्यालय से 22 लाख रुपये की बरामदगी पार्टी और उम्मीदवार के लिए एक बड़ा झटका है। होटल के जिस कमरे से पैसे बरामद हुए, वे कांग्रेस प्रत्याशी के नाम पर बुक थे। हालांकि इस प्रकरण में कोई पकड़ा नहीं गया है।

कौन-कौन कब-कब सांसद

2014 : जयंत सिन्हा (भाजपा)

2009 : यशवंत सिन्हा (भाजपा)

2004 : भुवनेश्वर प्रसाद मेहता (सीपीआइ)

1999 : यशवंत सिन्हा (भाजपा)

1998 : यशवंत सिन्हा (भाजपा)

1996 : महावीर लाल विश्वकर्मा (भाजपा)

1991 : भुवनेश्वर मेहता (सीपीआइ)

1989 : यदुनाथ पांडेय (भाजपा)

1984 : दामोदर पांडेय (कांग्रेस)

1980 : कुंवर बसंत नारायण सिंह (जेएनपी)


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