लोकसभा चुनाव 2019 : इस सीट पर समाजवादी पार्टी को कभी नहीं मिला मौका
समाजवादी पार्टी को लोकसभा सीट बस्ती से एक बार भी सफलता नहीं मिल सकी है। चार बार के आम चुनाव में इसके प्रत्याशी को दूसरे स्थान से ही संतोष करना पड़ा है।
गोरखपुर, जेएनएन। समाजवादी पार्टी को लोकसभा सीट बस्ती से एक बार भी सफलता नहीं मिल सकी है। चार बार के आम चुनाव में इसके प्रत्याशी को दूसरे स्थान से ही संतोष करना पड़ा है। इसके बावजूद पार्टी प्रत्याशियों ने काफी दमदारी से चुनाव लड़ा तथा विरोधियों के दांत खट्टे करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
वर्ष 1996 के आम चुनाव से ही समाजवादी पार्टी बस्ती सीट पर दमदार उपस्थिति दर्ज कराती आ रही है। 1996 के चुनाव में भाजपा ने श्रीराम चौहान को अपना प्रत्याशी बनाया था तो उस समय के कद्दावर सपा नेता रामकरन आर्य मैदान में सामाजवादी पार्टी की तरफ से ताल ठोंक रहे थे। श्रीराम चौहान को 1 लाख 99 हजार 941 वोट मिले तो रामकरन आर्य ने 1 लाख 50 हजार 103 वोट प्राप्त किए थे। श्रीराम चौहान ने उन्हें 49 हजार से अधिक वोटों से पराजित किया था। 1998 के आम चुनाव में भाजपा ने पुन: श्रीराम चौहान पर दांव आजमाया तो सपा ने कल्पनाथ सोनकर को मैदान में उतारा। श्रीराम चौहान को इस बार 2 लाख 44 हजार 233 वोट मिले तो कल्पनाथ सोनकर को 1 लाख 74 हजार 16 वोट से संतोष करना पड़ा। 1999 में पुन: हुए चुनाव में एक बार फिर श्रीराम चौहान 1 लाख 74 हजार 378 वोट प्राप्त कर बसपा के लालमणि प्रसाद से चुनाव जीत गए। लालमणि को 1 लाख 72 हजार 546 वोट मिले थे। 2004 के चुनाव में लालमणि प्रसाद ने भाजपा के श्रीराम चौहान को चुनाव हरा दिया। इस बार श्रीराम चौहान को 1 लाख 29 हजार 849 वोट से संतोष करना पड़ा।
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2009 के चुनाव में बसपा के अरविंद चौधरी ने 2 लाख 68 हजार 666 वोट प्राप्त कर सपा के राजकिशोर सिंह को चुनाव हरा दिया। राजकिशोर को 1 लाख 63 हजार 456 वोट मिले। 2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने हरीश द्विवेदी को मैदान में उतारा तो सपा ने पूर्व मंत्री राजकिशोर सिंह के भाई बृजकिशोर सिंह को मैदान में उतारा। हरीश द्विवेदी को 3 लाख 57 हजार 680 वोट मिले तो ङ्क्षडपल को 3 लाख 24 हजार 118 वोट मिले। इन चुनावों की खास बात यह रही कि सभी राजनीतिक दलों ने अपने-अपने प्रत्याशी खड़े किए थे। जबकि इस बार परि²ष्य कुछ बदला हुआ है। सपा-बसपा ने जहां इस सीट पर गठबंधन कर लिया है वहीं कांग्रेस ने यहां की सीट अपने सहयोगी दल जन अधिकार पार्टी के लिए छोड़ दी है।
कठिन होगी निर्दल उम्मीदवारों की राह
लोकसभा 2019 के महासमर में अपने बलबूते ताल ठोंकना आसान नहीं है। मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के उम्मीदवारों को ही आयोग की सहूलियत है। चुनावी महासंग्राम में उनकी दावेदारी सरल होगी। निर्दल उम्मीदवारों की राह नामांकन से ही कठिन हो जाएगी। इनके लिए प्रक्रिया लंबी बनाई गई है। प्रारूप भाग-दो पर निर्दलीय उम्मीदवारों का नामांकन होगा। एक सेट में नामांकन करने पर निर्दल प्रत्याशी को दस प्रस्तावक देने होंगे। यह संबंधित लोकसभा क्षेत्र के होने चाहिए। प्रारूप पर सभी प्रस्तावकों का नाम, हस्ताक्षर और उनसे संबंधित वोटरलिस्ट संलग्न करना जरूरी होगा। नामांकन पत्रों की जांच के दौरान इन प्रस्तावकों को रिटर्निंग अफसर के सामने पेश भी करना होगा। प्रत्याशी बनने से पहले ही निर्दलीयों को विश्वसनीय प्रस्तावकों की तलाश करनी होगी। यदि ऐन मौके पर कोई भी मुकरा तो प्रत्याशिता रद्द भी हो सकती है। हालांकि नामांकन के समय सभी प्रस्तावकों को साथ नामांकन कक्ष में ले जाना अनिवार्य नहीं किया गया है। वहीं मान्यता प्राप्त दलों के प्रत्याशी केवल एक प्रस्तावक से ही अपना नामांकन दाखिल कर सकते हैं। यह सहूलियत राजनीतिक दल के प्रत्याशी होने के नाते मिली है।
अधिकृत एजेंट भी कर सकेंगे पर्चा दाखिल
दलीय एवं निर्दलीय प्रत्याशियों का नामांकन पत्र उनके अधिकृत एजेंट भी दाखिल कर सकेंगे। प्रत्याशी को अपना एजेंट नामित कर रिटर्निंग अफसर को इसकी लिखित जानकारी देनी होगी। एजेंट के जरिये नामांकन पत्र का दाखिला मान्य होगा। बशर्ते प्रत्याशी की कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।