आडवाणी, जोशी, उमा... अब संसद में नहीं होगा विवादित ढांचा ध्वंस से जुड़ा कोई चेहरा
पिछली लोकसभा में लालकृष्ण आडवाणी उमा भारती और मुरली मनोहर जोशी तीनों लोकसभा के सदस्य थे लेकिन इस बार तीनों में कोई भी चुनाव मैदान में नहीं है।
नीलू रंजन, नई दिल्ली। लगभग 37 साल बाद ऐसा पहली बार होगा, जब राम मंदिर आंदोलन से जुड़ा कोई भी नेता, जिस पर अयोध्या में विवादित ढांचा गिराने की साजिश का आरोप लगा हो, लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ रहा है। इसे अयोध्या विवाद के एक ऐतिहासिक मोड़ पर पहुंचने के रूप में देखा जा रहा है। वहीं, यह इस आंदोलन से जुड़े भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती के भारतीय राजनीति में एक लंबेयुग का अंत भी है। नई दिल्ली से नीलू रंजन की रिपोर्ट।
एक तरफ जहां सुप्रीम कोर्ट अयोध्या विवाद का हल बातचीत से निकालने की कोशिश में जुटा है, वहीं राम मंदिर का मुद्दा अपेक्षाकृत ठंडा भी है, और संभावना भी है कि शायद अब कोई रास्ता निकल आएगा। वहीं 1992 के बाद पहली बार ऐसी स्थिति बनने जा रही है जब विवादित ढांचा गिराने का कोई आरोपी लोकसभा में नहीं होगा। पिछली लोकसभा में लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती और मुरली मनोहर जोशी, तीनों लोकसभा के सदस्य थे, लेकिन इस बार तीनों में कोई भी चुनाव मैदान में नहीं है। जाहिर है उनके लोकसभा में आने की संभावना पर विराम लग गया है। राज्यसभा में भी ऐसे कोई सदस्य नहीं हैं, जिनका नाम विवादित ढांचे के ध्वंस से जुड़ा हो।
1980 में भाजपा की स्थापना से ही राम जन्म भूमि भाजपा के लिए अहम चुनावी मुद्दा रहा है और माना जा रहा है कि इस बार भी चुनावी घोषणापत्र में यह शामिल होगा। विवादित ढांचा गिराने की साजिश में घिरने और अदालती कार्रवाई का सामना करने के बाद भी लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी लगातार लोकसभा के सदस्य रहे हैं। वहीं, उमा भारती और विनय कटियार भी कई बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं।
मामला भले ही सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है और कोर्ट बातचीत के रास्ते समस्या के समाधान की कोशिश में जुटा है, लेकिन अयोध्या में राम मंदिर बनाने को लेकर विरोध की आवाज खत्म हो गई है। पिछले अक्टूबर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने को लेकर देश में एकमत होने का हवाला देते हुए संसद में कानून बनाकर इसके लिए रास्ता साफ करने की मांग की थी। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कर दिया था कि अदालत में लंबित रहने तक इस मामले में सरकार कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी। वैसे हकीकत यह भी इस मामले में अभी तक किसी को अदालत द्वारा दोषी करार नहीं दिया गया है। दो साल पहले रायबरेली की विशेष अदालत ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और विनय कटियार समेत छह लोगों के खिलाफ आरोप तय किए थे और उनके खिलाफ सुनवाई अब भी जारी है।
दरअसल 1992 में विवादित ढांचा गिराने की साजिश रचने के आरोप में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, आचार्य गिरिराज किशोर, अशोक सिंघल, विष्णु हरी डालमिया और साध्वी रितंभरा के खिलाफ एफआइआर दर्ज की गई थी। बाद में सीबीआइ ने अपनी जांच में इन्हें साजिश का आरोपी पाया और उनके खिलाफ आरोपपत्र भी दाखिल कर दिया। वैसे बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में शिवसेना प्रमुख बालासाहब ठाकरे और तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह समेत 13 अन्य को भी आरोपी बनाने का आदेश जारी किया था। लेकिन हालात यह है कि अलग-अलग स्तर पर कानूनी पेंचीदगियों में फंसा यह केस आज तक आगे नहीं बढ़ पाया। इस मामले के तीन आरोपितों अशोक सिंघल, आचार्य गिरिराज किशोर और विष्णु हरि डालमिया का निधन हो चुका है।
लालकृष्ण आडवाणी
आठ नवंबर 1927 को कराची में जन्मे लाल कृष्ण आडवाणी 11 बार सांसद रहे हैं। वह 1970, 1976, 1982 और 1988 में राज्यसभा के लिए चुने गए तो 1989, 1991, 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में लोकसभा के लिए। 1970-72 में भारतीय जनसंघ दिल्ली के अध्यक्ष रहे। वह तीन बार भाजपा के अध्यक्ष भी रहे हैं। पहली बार 1986-91, दूसरी बार 1993-98 में और तीसरी बार 2004-06 में। 1999 से 2004 तक अटल सरकार में वह उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री थे। जब भाजपा विपक्ष में थी, वह लोस में नेता प्रतिपक्ष भी रहे।
विवादित ढांचा गिराने में भूमिका
सीबीआइ के मूल आरोपपत्र के मुताबिक आडवाणी विवादित ढांचा गिराने की साजिश के मुख्य सूत्रधार थे। आडवाणी ने छह दिसंबर 1992 को कहा था, ‘आज कारसेवा का आखिरी दिन है। कारसेवक आज आखिरी बार कारसेवा करेंगे।’ उन्होंने सितंबर 1990 में राम मंदिर आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए सोमनाथ से अयोध्या तक 10 हजार किलोमीटर लंबी रथयात्रा की थी। बिहार में तत्कालीन लालू यादव सरकार ने आडवाणी को गिरफ्तार कर उनकी रथयात्रा पर लगाम लगा दी थी।
उमा भारती
छह बार लोकसभा के लिए चुनी गईं उमा भारती वर्तमान में मोदी सरकार में केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री हैं। वह अटल सरकार भी में केंद्रीय मंत्री रह चुकी हैं। आठ दिसंबर 2003 से 22 अगस्त 2004 तक मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री भी रहीं। तब कर्नाटक के हुबली दंगों में नाम आने पर गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया था। नवंबर 2004 में अनुशासनहीनता के आरोप में उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया गया। हालांकि जल्द निलंबन रद हो गया। मप्र में शिवराज सिंह चौहान को सीएम बना दिया गया। दरअसल वह चाहती थीं कि उन्हें सीएम बनाया जाए। अंत में पार्टी को उन्हें निष्कासित करना पड़ा। उन्होंने भारतीय जनशक्ति पार्टी का गठन किया। आखिरकार सात जून 2011 को उमा की भाजपा में वापसी हुई।
विवादित ढांचा गिराने में भूमिका
राम जन्मभूमि आंदोलन में अहम भूमिका से उमा भारती का सियासी कद बढ़ गया था। उमा के आक्रामक भाषणों से आंदोलन को गति मिली और महिलाएं बड़ी संख्या में कारसेवा के लिए अयोध्या जा पहुंचीं। सीबीआइ की चार्जशीट के मुताबिक छह दिसंबर को विवादित ढांचा गिराए जाने के वक्त वह भाजपा व विहिप नेताओं के साथ मौके पर मौजूद थीं। विवादित ढांचा गिराए जाने की जांच के लिए बने लिब्रहान आयोग ने भी उनकी भूमिका दोषपूर्ण पाई थी। भारती पर भीड़ को उकसाने का आरोप लगा।
मुरली मनोहर जोशी
एक दौर था जब भाजपा में अटल और आडवाणी के बाद कोई नेता नजर आता था तो वह थे मुरली मनोहर जोशी। वह 1991- 93 तक भाजपा के अध्यक्ष भी रहे। दो बार राज्यसभा और छह बार लोकसभा के लिए चुने गए। वह 1998-99 और 1999- 2004 की अटल सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री थे। 2017 में पद्मविभूषण से सम्मानित जोशी वर्तमान में कानपुर से लोकसभा सदस्य हैं। अटल की 13 दिन की केंद्र सरकार में वह गृहमंत्री भी थे। तीन बार इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से सांसद चुने गए जोशी 2004 में उन केंद्रीय मंत्रियों में शामिल थे, जो अपना चुनाव हार गए थे। उन्हें सपा के रेवती रमण सिंह ने इलाहाबाद में 28 हजार वोटों से हराया था। 2009 में जोशी ने बनारस से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीते। लेकिन 2014 में यह सीट भाजपा ने पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को दी।
विवादित ढांचा गिराने में भूमिका
छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने के वक्त जोशी भी मौके पर मौजूद थे। सीबीआइ चार्जशीट के मुताबिक, ढांचा गिरने पर उमा भारती आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी से गले मिली थीं। जोशी समेत कई भाजपा नेताओं पर आरोप लगा कि 28 नवंबर 1992 को सुप्रीम कोर्ट से प्रतीकात्मक कारसेवा का फैसला हो जाने के बाद भी इन लोगों ने पूरे उत्तर प्रदेश में भड़काऊ भाषण दिए।
आडवाणी ने जिन्ना को बता दिया था धर्मनिरपेक्ष
जून 2005 में लालकृष्ण आडवाणी पाकिस्तान की यात्रा पर गए थे। इस दौरान वह कराची में मुहम्मद अली जिन्ना की मजार पर भी गए। उन्होंने मीडिया से बातचीत के दौरान जिन्ना की तारीफ की और सेकुलर बताया। आडवाणी के इस बयान को लेकर उनकी ही पार्टी और देश में काफी विवाद हुआ था। इस बयान पर संघ और विहिप ने भी खासी नाराजगी जताई थी।
जब आडवाणी से भिड़ गईं उमा भारती
10 नवंबर 2004 को भाजपा मुख्यालय पर अनुशासन के मुद्दों पर विचार करने के लिए बैठक बुलाई गई थी। बैठक में आडवाणी ने कहा कि पार्टी के कुछ पदाधिकारी पार्टी के बारे में जो कुछ बयानबाजी कर रहे हैं उसे बंद किया जाना चाहिए। इस पर उमा भारती ने कहा कि पार्टी के जो नेता मीडिया से ‘ऑफ द रिकार्ड’ बात करते हैं, उसके बारे में भी कार्रवाई करनी चाहिए। उमा के इस व्यवहार से नाराज आडवाणी ने कहा कि सारा मामला खत्म माना जाना चाहिए, तो उमा भारती ने कहा कि यदि उन्हें नहीं बोलने दिया जाएगा तो वह बैठक में नहीं रहेंगी। इसके बाद वह उठकर चली गई।
श्रीनगर के लाल चौक पर फहराया तिरंगा
भाजपा ने कन्याकुमारी से एकता यात्रा शुरू करते हुए 26 जनवरी 1992 को श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराया। आतंकी और अलगाववादियों ने खुलेआम एलान किया था कि तिरंगा नहीं फहराने दिया जाएगा। तब भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी के साथ नरेंद्र मोदी ने लाल चौक पर तिरंगा फहराया था। मोदी उस वक्त जोशी की टीम के सदस्य थे, जो घनघोर आतंकवाद के उस दौर में लाल चौक पर तिरंगा फहराने पहुंची थी।