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Lok Sabha Election 2019: लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में जानें क्यों अहम है चुनाव आयोग की भूमिका

पिछले 69 सालों में भारतीय निर्वाचन आयोग ने लोकसभा के लिए 16 चुनाव तथा राज्य विधान सभाओं के लिए 360 से ज्यादा चुनाव कराए है। सारे चुनाव समय सीमा से चूके बिना कराए गए हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 15 Apr 2019 09:51 AM (IST)Updated: Mon, 15 Apr 2019 09:56 AM (IST)
Lok Sabha Election 2019: लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में जानें क्यों अहम है चुनाव आयोग की भूमिका
Lok Sabha Election 2019: लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में जानें क्यों अहम है चुनाव आयोग की भूमिका

रवि प्रकाश त्रिपाठी, नई दिल्ली। देश में 17वें लोकसभा चुनाव का पहला चरण संपन्न हो चुका है। दूसरा चरण तीन दिन बाद है। चुनाव आते ही सभी दल, वोट, चुनाव चिह्न, प्रत्याशी, उम्मीदवार और देश की बड़ी बड़ी राजनीतिक पार्टियों की बात करते हैं। लेकिन इस शोर के बीच हम उनकी भूमिका भूल जाते हैं, जिसका सबसे बड़ा रोल होता है। यह है भारतीय निर्वाचन आयोग। यानी लोकतंत्र के प्रहरी। पिछले 69 सालों में भारतीय निर्वाचन आयोग ने लोकसभा के लिए 16 चुनाव तथा राज्य विधान सभाओं के लिए 360 से ज्यादा चुनाव कराए है। सारे चुनाव समय सीमा से चूके बिना कराए गए हैं।

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अब बैलेट की जगह इलेक्ट्रनिक वोटिंग मशीन आ गई है। प्रत्याशियों का रिकार्ड एक क्लिक पर मौजूद है। वोटरों और चुनाव पदाधिकारियों की राह आसान करने को कई मोबाइल एप्लीकेशन हैं। कई चुनावी दस्तावेजों का डिजिटलकरण हो चुका है। पहले जहां बैलेट से मतदान होता था और ढेर सारा कागज समेटना पड़ता था, इससे निजात मिल गई है। भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी के शब्दों में-‘भारत में सत्ता का शांतिपूर्ण, सुव्यवस्थित व लोकतांत्रिक हस्तांतरण संपूर्ण लोकतांत्रिक विश्व के लिए स्पर्धा का विषय रहा है। पदमुक्त हो रहे प्रधानमंत्री (अथवा मुख्यमंत्री) द्वारा पद धारण करने वाले को नम्रतापूर्वक एवं करबद्ध रूप से सत्ता का हस्तांतरण करना स्वयं में एक दुर्लभ उदाहरण है। इसे अनेक गणतांत्रिक देश अभी भी अपनी परंपरा का हिस्सा नहीं बना सके हैं।’

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निर्वाचन आयोग और पहला आम चुनाव
आज हम अपनी चुनाव प्रणाली और लोकतंत्र की चाहे जितनी खामियां निकालें, लेकिन जब अतीत में लौटकर विचार करते हैं तो इसे अविश्वसनीय उपलब्धि के रूप में पाते हैं। हम अपनी सरकार खुद चुन सकते हैं, यह भाव तब रोमांच पैदा करने वाला रहा होगा। वास्तव में आजादी के बाद हमारा पहला आम चुनाव इसी रोमांचकता के सामूहिक मनोविज्ञान मे संपन्न हुआ था। उस समय के समाचारों, नेताओं के भाषणों आदि को देखें तो इस मनोविज्ञान का अहसास हो जाएगा।

जब पूरा विश्व पड़ गया था आश्चर्य में
नवस्वतंत्र देश का लोकतंत्रीकरण यानी किसी उत्सव के कम नहीं। खुदमुख्तारी के गुमान में डूबा पूरा भारतीय समाज मानो अंग्रेजों को झुठलाने तथा दुनिया को लोकतंत्र के लिए अपनी काबिलियत साबित कर रहा था। वह देश जिसके बारे में अंग्रेजों कहा था- यह लोकतंत्र को न पचा पाएगा, न इसे संभालकर आगे बढ़ा पाएगा। पहले आम चुनाव में लोकसभा की 497 तथा राज्य विधानसभाओं की 3283 सीटों के लिए भारत के 17,32,12,343 वोटरों का रजिस्ट्रेशन हुआ। इनमें से 10,59,49,083 लोगों ने, जिनमें करीब 85 फीसद निरक्षर थे, अपने जनप्रतिनिधियों का चुनाव कर पूरी दुनिया को हैरत में डाल दिया था और यह संदेश दे दिया था कि हम ही दुनिया को लोकतंत्र की राह दिखाएंगे। 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 तक चले पहले आम चुनाव की प्रक्रिया ने भारत को एक नया मुकाम दे दिया था। उस समय यह अंग्रेजों द्वारा लूटा-पीटा, अनपढ़ व कंगाल देश जरूर था, लेकिन इसके बावजूद इसने स्वयं को विश्व के घोषित लोकतांत्रिक देशों की कतार में खड़ा कर दिया। इनमें अग्रणी भूमिका निभाई भारत निर्वाचन आयोग ने।

गणतंत्र दिवस के एक दिन पहले ही हुआ था गठन
देश के निर्वाचन आयोग का गठन 25 जनवरी को 1950 को किया गया था। यानी भारत के गणतंत्र बनने से ठीक एक दिन पहले। पहले आम चुनाव के लिए घर-घर जाकर वोटरों का रजिस्ट्रेशन अपने आप में एक इतिहास बनाने जैसा था। हर पार्टी के लिए अलग-मतपेटी थी, जिन पर उनके चुनाव चिन्ह अंकित थे। इन मतपेटियों और मतपत्रों को संबंधित पोलिंग बूथ तक पहुंचाना किसी चुनौती से कम नहीं था। पहाड़ों, जंगलों, मैदानी इलाकों में नदी-नालों को पार करते हुए, पगडंडियों से गुजरते हुए नियत स्थान तक पहुंचने के लिए अधिकारियों-कर्मचारियों को कितना पसीना बहाना पड़ा होगा, इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है। इस सबके दौरान कई लोग बीमार पड़ गए, कुछ की मृत्यु भी हो गई, कुछ लूट के शिकार हुए। अलग-अलग क्षेत्रों में अलग तरीके अपनाए गए। देश में पहला आम चुनाव कराना अपने आप में दुरुह कार्य था।

चुनाव की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें


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