लालू कोई शख्स या विचार नहीं एक विज्ञान है, फिर से कर दिया साबित, जानिए
लोकसभा चुनाव के लिए रणबांकुरों के युद्ध में उतरने पर अंतिम मुहर लगनी बाकी है। राजद सुप्रीमो लालू यादव भले ही रिम्स में इलाजरत हैं लेकिन वे महागठबंधन की अहम धुरी बने हुए हैं।
पटना [काजल]। राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव वैसे तो अभी चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता हैं और अपने राज्य से दूर, घर से दूर बीमारी की वजह से रांची स्थित रिम्स अस्पताल में इलाजरत हैं। लेकिन, सजायाफ्ता और इलाजरत होते हुए भी लालू इस बार के भी लोकसभा चुनाव के लिए बिछी चुनावी बिसात पर बड़े ही उम्दा तरीके से अपनी चाल चल रहे हैं।
राजनीति के केंद्र में रहे हैं लालू, आज भी हैं खास
बिहार की राजनीति जो केंद्र की राजनीति को हर चुनाव में प्रभावित करती रही है, उस राजनीति में लालू का वो स्थान है कि आप उन्हें नकार नहीं सकते। यही वजह है कि विरोधी भी उनके राजनीति के कायल हैं और जानते हैं कि लालू की बिछाई बिसात पर जीत दर्ज करना इतना आसान नहीं है। आज भी लालू लोकसभा चुनाव की अहम धुरी बने हुए हैं और रिम्स से ही अपने चुनावी पत्ते खेल रहे हैं।
राजद को अपने अध्यक्ष पर है पूरा भरोसा
वहीं, राजद ने एक बार फिर से अपने बीमार योद्धा पर ही भरोसा किया है और पार्टी केन्द्रीय संसदीय बोर्ड की बैठक में यह तय किया कि लोकसभा चुनाव से जुड़े सारे फैसले आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ही करेंगे। यानि महागठबंधन में सीटों के बंटवारे से लेकर राजद के उम्मीदवारों के चयन में अंतिम मुहर लालू प्रसाद यादव की लगेगी।
महागठबंधन की सीट शेयरिंग पेंच को सुलझाया
लोकसभा चुनाव को लेकर दोनों गठबंधनों में सीटों और उम्मीदवारों को लेकर फंसे पेंच का समाधान लालू ने ही निकाला और तय किया कि महागठबंधन में कौन पार्टी कितने सीटों पर लड़ेगी। इससे पहले महागठबंधन के लगभग सभी दल के नेताओं ने रिम्स का चक्कर लगाया था और लालू से सलाह ली थी।
अस्पताल से ही क्षत्रपों को दी है हिदायत
लालू ने अपने क्षत्रपों को पहले ही हिदायत दे रखी है कि जीत के लिए जनता के सामने कैसे पेश होना है? रांची से ही लालू यादव ने महागठबंधन में अपनी पार्टी का वर्चस्व बनाए रखने के लिए पार्टी की कमान संभाल रखी है, हालांकि वो तेजस्वी के फैसले को भी तवज्जो दे रहे हैं। तभी तो महागठबंधन में अनंत सिंह,पप्पू यादव सरीखे बाहुबलियों की इंट्री नहीं हो सकी है।
कांग्रेस की भी नहीं चलने दी
वहीं, लालू ने कांग्रेस नेताओं की अनर्गल बयानबाजी और बड़ा भाई बताने वाले बयानों पर लगाम लगाने की हिदायत देते हुए सीट शेयरिंग में देरी होने पर कड़ी फटकार लगाई थी और कहा कि हवा में मत उड़िए, जल्द-से-जल्द सीटों को फाइनल कीजिए। लालू की इसी फटकार के बाद ही सीटों पर तालमेल बना और महागठबंधन की मीटिंग के बाद बात बन सकी है।
अपने उम्मीदवारों पर लालू को है पूरा भरोसा
सीटों के तालमेल की बात होते ही लालू ने रांची रिम्स से ही अपने उम्मीदवारों तक ये संदेश पहुंचवा दिया है कि वे फिलहाल शोर-शराबा ना करें और जबतक उम्मीदवारों के नाम की औपचारिक तौर पर घोषित नहीं हो जाती तबतक अपने क्षेत्र में जनता के बीच जाएं और बात करें।
जानकारी के मुताबिक लालू की सहमति मिलने के बाद संभावित उम्मीदवारों ने अपने पार्टी प्रमुख पर भरोसा जताते हुए अपने -अपने संसदीय इलाकों में लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरु कर दी है।
लालू बिहार की नब्ज पहचानते हैं
जिस तरह से एक समय में विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद लालू बिल्कुल शांत हो गए थे और फिर से अपनी जमीन तलाशनी शुरू कर अपने और अपनी पार्टी को मजबूत किया और सबसे बड़े दल के रूप में एक बार फिर से बिहार में उभरे, उससे साबित होता है कि लालू बिहार की जनता की नब्ज अच्छी तरह पहचानते हैं।
राजनीति विज्ञान के छात्र रहे लालू जनता के मन का विज्ञान भी पढ़ना जानते हैं। यही वजह है कि उनकी राजनीति को समझना हर किसी के लिए संभव नहीं रहा। यही कारण है कि जोकीहाट उपचुनाव में मिली जीत के बाद लालू के बेटे तेजस्वी यादव ने कहा कि लालू विचार नहीं विज्ञान हैं।
लालू को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता
लालू... जिन्हें कोई भारतीय राजनीति का मसखरा कहता है, तो कोई गरीबों का नेता, तो कोई उनको बिहार की बर्बादी का जिम्मेदार भी मानता है। जो भी हो, लालू की चाहत का आलम ये है कि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी भी उन्हें अच्छी तरह जानती है। वो चाहे जैसी सियासत करें, आप उन्हें चाहे पसंद करें या नापसंद उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते।
ट्विटर हैंडल से ही विरोधियों को सुनाते हैं खरी-खरी
लालू भले ही अस्पताल या जेल में रहें, उनका ट्विटर एकाउंट एक्टिव रहता है और ट्विटर हैंडल से ट्वीट वाले बयानों के तीर से वो विरोधियों को बेंधते रहते हैं। इसीलिए चुनाव आयोग उनके ट्विटर हैंडल की भी निगरानी करेगा।