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Lok Sabha Election 2019: सरगर्म हैं सियासी फिजाएं, आदिवासी नहीं खोल रहे पत्ते

साहिबगंज जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर बांझी बाजार पार करने एवं कई गांवों से गुजरने के बाद मिलती है बोरियो हाट। यहां चुनावी मिजाज परखने हम पहुंचे हैं।

By Edited By: Published: Mon, 06 May 2019 05:55 AM (IST)Updated: Mon, 06 May 2019 04:46 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019:  सरगर्म हैं सियासी फिजाएं, आदिवासी नहीं खोल रहे पत्ते
Lok Sabha Election 2019: सरगर्म हैं सियासी फिजाएं, आदिवासी नहीं खोल रहे पत्ते
साहिबगंज, धनंजय मिश्र।साहिबगंज से 35 किमी दूर बांझी बाजार पार करने के बाद कई गांवों से गुजरकर हम बोरियो हाट आए हैं। बोरियो हाट है। शाम के 5.30 बजे हैं। हाट में भीड़ है। हाट के एक किनारे आदिवासी कला एवं सांस्कृतिक केंद्र भवन है, जिसके ताले पर जमी धूल बता रही कि लंबे समय से यह खुला ही नहीं है। ग्राम पंचायत भवन एवं बोरियो डाक बंगला दूसरी ओर है। हाट परिसर में ही बोरियो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है। यहां कई वाहन लगे हैं।
हाट में पोचई शराब पीने वालों की भी भीड़ है। चुनाव का नशा अभी तक चढ़ा नहीं है। यहां घर की जरूरत का सामान खरीदने बोआरीजोर से लेकर तीनपहाड़ इलाके तक से आदिवासी पहुंचे हैं। राजमहल लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी माहौल भी गर्म है। बावजूद आदिवासी समाज अभी चुप्पी साधे है। कुछ आदिवासी एक जगह बैठे हैं। हम भी उनकी मजलिस में जा पहुंचे। बातचीत के क्रम में पूछा किसका जोर है। एकबारगी सभी चौंके। पूछने लगे क्या आप पार्टी वाले हैं। जब परिचय दिया तो बोले अभी मंथन कर रहे हैं। जल्द तय कर लेंगे। यहीं बैठे हैं होपना हेम्ब्रम। महुआ से बनी पोचई शराब बेचते हैं। पास ही बिटी सोरेन भी बैठी हैं। जो पोचई शराब ही बेचती हैं। दोनों बोले, साहब हम तो गरीब हैं क्या करेंगे। धंधा गलीज है पर यही पेट पाल रहा है। पोचई नहीं बेचेंगे तो पेट कैसे भरेगा। चुनाव में उसका ही साथ देंगे जो हमारे दुख दर्द में साथ होगा। हालात देख ही रहे हैं हम आदिवासियों का दर्द तो कोई नहीं समझता। इसी बीच हाट में खरीदारी को आए रानीडीह गांव के अजय राय मरांगटांड गांव के बगराई सोरेन, विशनपुर गांव के जॉन हेम्ब्रम एवं कारीकांदर गांव के विजय हेम्ब्रम भी एक जगह बैठे दिखे। सभी आपस में दुख दर्द बांट रहे हैं।
चुनाव की बात चली तो बोले, अभी तो सोचा ही नहीं कि किसे चुनेंगे। प्रत्याशियों को कसौटी पर परखेंगे तभी निर्णय करेंगे। हाट में ठेले पर युवक मंसूर अंसारी अंगूर, सेब, नारंगी, केला बेच रहा है। बातचीत के बीच में वह भी आ टपका। बोला पास ही घर है, ठेले पर फल बेचना ही किस्मत में लिखा है। वोट को लेकर अभी तो कुछ फाइनल नहीं किया है। हाट में दुकानदार आवाज लगाकर भी सामग्री भेज रहे हैं। हम भी आगे बढ़ गए। एक सब्जी की दुकान पर रुके। यहां कुछ आदिवासी सब्जी खरीद रहे हैं। चुनाव की बात चली तो सभी ने चुप्पी साध ली। यह जरूर कहा कि पिछली बार लोकसभा चुनाव में विजय हांसदा पसंद बने थे। इस बार कुछ तय नहीं किया है।
बोरियो हाट में ही डॉ. प्रकाश सोरेन मिल गए। वे बताने लगे कि विजय के चाहने वालों की संख्या यहां ठीक रही है। बावजूद इस बार आदिवासी अभी पत्ते नहीं खोल रहे हैं। हाट में ही ताला हांसदा मिल गए। ये कुछ ज्यादा ही मुखर हैं। बोले जल, जंगल व जमीन की लड़ाई आदिवासी अस्मिता से जुड़ी है। हमारी लड़ाई लड़ने वाला ही हमारा समर्थन पाएगा। तब तक वहां मोर्शाद अली व जॉन मरांडी आ गए। बोल उठे कि सिदो-कान्हू ने अंग्रेजों के खिलाफ जमीन की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी थी। सोचिए उनके आदर्श पर कौन पार्टी चल रही है। उसे ही मदद की सोच रहे हैं। हाट के कुछ दुकानदार हाट में ऐसे भी हैं जो मोदी से प्रभावित हैं। मोदी को करिश्माई नेता मानते हैं। बोले काम तो ठीक ही कर रहा है। एक मौका और देने में क्या हर्ज है। फिर भी अभी तय करना बाकी है। हाट में मीट की दुकान, मछली बाजार व रोजमर्रा की खरीदारी की दुकानें लगी हैं। शाम हो चली है। हम भी वापस साहिबगंज चल पड़ते हैं।

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