कुमाऊं की राजनीति में अच्छी खासी दखल रखने वाले इस राजवंश की जानिए कहानी
सियासी दलों में टिकट वितरण के पैमाने में प्रत्याशी की राजनीतिक सामाजिक पृष्ठभूमि के साथ ही पारिवारिक विरासत का भी फीडबैक अहम माना जाता है।
नैनीताल, जेएनएन : सियासी दलों में टिकट वितरण के पैमाने में प्रत्याशी की राजनीतिक, सामाजिक पृष्ठभूमि के साथ ही पारिवारिक विरासत का भी फीडबैक अहम माना जाता है। भारतीय राजनीति में राजघरानों व रियासतों का खासा प्रभाव रहा है, यही वजह है कि राजनीतिक दल पुरानी रियासतों के वंशजों पर दांव लगाने को प्राथमिकता देते रहे हैं।
उत्तराखंड में टिहरी नरेश के साथ कुमाऊं में चंद राजाओं के वंशज केसी सिंह बाबा तथा अस्कोट में कत्यूरी राजा के पाल वंशजों में डॉ. महेंद्र पाल संसद का सफर तय कर चुके हैं। बाबा व पाल दोनों दो-दो बार नैनीताल सीट से सांसद रह चुके हैं। इस बार फिर से नैनीताल सीट पर कांग्रेस अस्कोट के पाल वंशज डॉ महेंद्र पाल पर दांव लगाने की तैयारी में है। जबकि चंद वंशीय केसी सिंह बाबा ने खुद की दावेदारी के बजाय डॉ. महेंद्र का नाम ही आगे बढ़ाया है।
सदियों पुराना है कत्यूरों का इतिहास
कुमाऊं में कत्यूर राजाओं का इतिहास शताब्दियों पुराना है। कत्यूरी सूर्यवंशी थे। इनकी राजभाषा संस्कृत थी जबकि बोलचाल की भाषा पाली। कत्यूरों की राज्यसीमा एक समुद्र से दूसरे समुद्र तक थी। इसका उल्लेख तामपत्रों में भी है। इतिहासकारों के अनुसार कुमाऊं के राजा पुरू का भी सिकंदर से मुकाबला हुआ था। कुमाऊं के राजा ने दिल्ली के राजा से जंग जीती थी। कत्यूर राजाओं ने एक बार काबुल में राज्य की पताका फहराई थी। छठी शताब्दी में चीनी यात्री ह्वïेनसांग के समय इनका साम्राज्य उत्तर में तिब्बत, पश्चिम में सतलुज नदी, पूर्व में गंडक नदी तक था। कत्यूरी राजवंश की एक शाखा पाली पछाऊं है। इसमें असंति देव, बसंति देव, गौरांग देव, श्याममल देव, फेण राई, केशव राइ, गजब राई थे। गजब राइ के दो बेटे थे सुजान देव व प्रीतम देव। प्रीतम देव के बेटे धामदेव ने दक्षिणी गढ़वाल में भी राज किया।
नेपाल के डोटी तक थी कत्यूरी राजा की खानदान
इनकी सत्ता कुमाऊं में चंद राजा के समय आई। कत्यूर राजा की वंशावली में उल्लेख है कि नेपाल के डोटी में कत्यूरी राजा की खानदान थी। कत्यूर राजा कुश द्वारा जोशीमठ गढ़वाल में तपस्या की। यहीं से राज्य का संचालन भी किया। धामदेव व ब्रह्मïदेव के समय धामपुर व बिजनौर इसी राज्य में थे। कत्यूरों के अंतिम राजा ब्रह्मïदेव विरी देव थे। कत्यूरों में ही वर्ष 1279 में पाल वंश के अभय पाल अस्कोट (पिथौरागढ़) आकर बस गए। अभय और त्रिलोक ब्रह्मïदेव के बेटे थे। त्रिलोक पाल के वंशज यानि निरंजनमल की पीढ़ी मल्ल कहलाई। वर्तमान में अस्कोट में भानू पाल पाल वंश के राजा है।
स्वतंत्रता सेनानी रहे पूर्व सांसद के पिता
नैनीताल के पूर्व सांसद डॉ. महेंद्र सिंह पाल के पिता शमशेर बहादुर सिंह पाल द्वितीय विश्व युद्ध के सेनानी रहे हैं। इनके कुलदेव मल्लिकार्जुन है। डॉ पाल के पांच भाई बहन हैं।
अर्जुन सिंह, कर्ण सिंह से है रिश्तेदारी
पूर्व सांसद डॉ. महेंद्र पाल के भाई जंग बहादुर पाल, अधिवक्ता बहादुर पाल व गजेंद्र पाल हैं। हाल ही में अस्कोट के राजा भानू पाल की बेटी गायत्री की शदी जोधपुर के राजा महाराज गज सिंह के बेटे शिवराज सिंह के साथ हुई। डॉ. पाल के बड़े भाई गजराज सिंह की धर्मपत्नी किरन सिंह कश्मीर के राजा कर्ण सिंह की बहन हैं। जबकि गजराज सिंह के ही डॉक्टर बेटे की धर्मपत्नी कामिनी मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की भांजी हैं। डॉ पाल की धर्मपत्नी मीनू का लखीमपुर खीरी में संघाई स्टेट से ताल्लुक है। चंदवंश के राजा पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा व डॉ. पाल के बीच रिश्तेदारी है।
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