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Lok sabha election 2019: नमो लहर के आगे नहीं चला प्रियंका गांधी का जादू, जानिए क्या रहीं वजह

Lok sabha election 2019 राहुल गांधी के साथ उनकी बहन प्रियंका गांधी के राजनीतिक भविष्य पर भी बड़ा प्रश्नचिह्न लग गया है

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 23 May 2019 03:57 PM (IST)Updated: Fri, 24 May 2019 10:46 AM (IST)
Lok sabha election 2019: नमो लहर के आगे नहीं चला प्रियंका गांधी का जादू, जानिए क्या रहीं वजह
Lok sabha election 2019: नमो लहर के आगे नहीं चला प्रियंका गांधी का जादू, जानिए क्या रहीं वजह

नई दिल्ली, जेएनएन। Lok sabha election 2019 के चुनावी नतीजें कांग्रेस पार्टी और खासकर उसके अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी बड़ी बहन एवं पार्टी की पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा के लिए बुरे सपने से कम नहीं हैं। चुनाव से पहले बड़ी उम्मीदों के साथ प्रियंका गांधी को जिस पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया, वहां पार्टी का खाता नहीं खुल सका है। यही नहीं, राजनीतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का प्रदर्शन पिछले चुनाव के मुकाबले भी खराब रहने वाला है। पार्टी सिर्फ रायबरेली की सीट जीत सकी है, जहां से सोनिया गांधी उम्मीदवार हैं। अमेठी की परंपरागत सीट से राहुल गांधी को हार का सामना करना पड़ा है।

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जब तक प्रियंका गांधी ने पार्टी में कोई पद नहीं संभाला था और सिर्फ अपनी मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी की रायबरेली और अमेठी सीटों पर प्रचार तक खुद को सीमित रखा था, तब तक तो यह उम्मीद थी कि वे सक्रिय राजनीति में आईं तो पार्टी को दोबारा पटरी पर खड़ा करने में कामयाबी हासिल करेंगी, क्योंकि उनकी तुलना अक्सर उनकी दादी इंदिरा गांधी से की जाती रही है। इस लोकसभा चुनाव के दौरान प्रचार में उन्होंने इसकी झलक भी दिखाई लेकिन यह किसी काम नहीं आई।

सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? इसके लिए कहीं न कहीं, कांग्रेस और राहुल गांधी जिम्मेदार हैं। इसमें खुद प्रियंका की भी कम भूमिका नहीं है। अव्वल तो प्रियंका गांधी ने वाराणसी सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने की इच्छा जताकर अपने कदम वापस खींच लिए। इसका बहुत गलत संदेश गया। अगर वह पीएम के खिलाफ चुनाव लड़तीं तो पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के उत्साह में इजाफा होता। भले ही वे चुनाव हार जाती लेकिन इससे पार्टी का मनोबल जरूर बढ़ता। प्रियंका ने दूसरी गलती कि वोटकटवा वाला बयान देकर। बता दें कि प्रियंका ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि उनकी पार्टी के उम्मीदवार भले ही न जीतें लेकिन वे भाजपा का वोट जरूर काटेंगे।

कांग्रेस, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की उत्तर प्रदेश में जो बुरी गत हुई है, वह पार्टी के भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है। इसके लिए राहुल गांधी भी कम दोषी नहीं हैं। उन्होंने पीएम मोदी के पिछले पांच साल के कार्यकाल को मुद्दा बनाने के बजाय उन्होंने उनका चरित्र हनन शुरू कर दिया। पीएम मोदी किसी वोटर के खाते में पंद्रह-पंद्रह लाख रुपये जमा नहीं करवा पाए। इसके अलावा भाजपा सरकार के और भी कई वादे हैं जो पूरे नहीं हुए लेकिन यह कोई मानने को तैयार नहीं है कि पीएम मोदी चोर हैं। यह राहुल गांधी की सबसे बड़ी रणनीतिक भूल साबित हुई।

लोकसभा चुनाव के जो रुझान सामने आ रहे हैं, अगर नतीजे भी उसी तरह के हुए तो यह तय हो जाएगा कि अब देश का मिजाज वंशवादी राजनीति के खिलाफ है। सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, वंशवाद की राह पर चल रही समाजवादी पार्टी का भी यही हश्र होता नजर आ रहा है। ऐसे में देखा जाए तो यह चुनाव भले ही कांग्रेस और उसके जैसी दूसरी वंशवादी पार्टियों के लिए बुरे दौर की ओर इशारा कर रहे हैं, लेकिन यह देश के लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत है। जाहिर है, अगर कांग्रेस को अपनी खोई जमीन वापस पानी है तो उसे वंशवाद का सहारा छोड़कर प्रतिस्पर्धी राजनीति का दामन थामना पड़ेगा।

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