Exclusive : प्रियंका चतुर्वेदी के कांग्रेस से पलायन का असल कारण तो ‘सीट’ ही थी!
कांग्रेस के दिग्गज रहे गुरुदास कामत के निधन के बाद से ही उत्तर-पश्चिम मुंबई लोकसभा सीट से उम्मीदवारी की आस लगाए बैठी थीं। उनका आवास भी इसी क्षेत्र में है।
मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। प्रियंका चतुर्वेदी ने कांग्रेस छोड़ने का कारण भले ही पार्टी में गुंडों को संरक्षण मिलना बताया हो, लेकिन उनके पार्ट छोड़ने का मूल कारण ‘लोकसभा की सीट’ ही है, जिसकी उम्मीद वह लंबे समय से लगाए बैठी थीं। कांग्रेस सूत्रों की मानें तो कांग्रेस के दिग्गज रहे गुरुदास कामत के निधन के बाद से ही उत्तर-पश्चिम मुंबई लोकसभा सीट से उम्मीदवारी की आस लगाए बैठी थीं। क्योंकि उनका आवास भी उसी क्षेत्र में है। इस क्षेत्र पर कांग्रेस के कई और वरिष्ठ नेताओं की निगाह थी, जो पार्टी में प्रियंका से काफी वरिष्ठ थे। इन्हीं में एक नाम तब के मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरुपम और पूर्व अध्यक्ष कृपाशंकर सिंह का भी था।
आसान नहीं थी टिकट की राह
निरुपम की भी उम्मीदवारी का विरोध पूरी मुंबई कांग्रेस कर रही थी। यहां से उम्मीदवारी पाने के लिए उन्हें अपना मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा है। यहां से प्रियंका को टिकट मिलना आसान नहीं था। इसे ध्यान में रखते हुए ही कांग्रेस में उनके शुभचिंतकों ने उन्हें मथुरा की सीट देखकर आने को कहा। क्योंकि उनके पिता पुरुषोत्तम चतुर्वेदी मथुरा से ही आकर मुंबई में बस गए थे।
पिता थे संघ से करीबी
बता दें कि मुंबई में आगरा-मथुरा के चतुर्वेदी समाज की बड़ी संख्या है। उनके पिता चार्टर्ड एकाउंटेंट होने के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा के भी नजदीक रहे हैं। वह मुंबई से निकलनेवाली चतुर्वेदी समाज की पत्रिका चतुर्वेदी चंद्रिका के संपादक भी रहे। जिसके कारण सामाजिक क्षेत्र में उनका भी अच्छा परिचय रहा है।
महेश पाठक के समर्थकों ने की अभद्रता
प्रियंका मथुरा गईं तो, लेकिन कहा जाता है कि उस सीट पर पहले से निगाह लगाए महेश पाठक के समर्थकों ने उनके साथ अभद्रता कर दी। प्रियंका की शिकायत पर उन्हें निलंबित तो किया गया। लेकिन कुछ समय बाद ही उन सभी का निलंबन वापस ले लिया गया। बता दें कि मथुरा से कांग्रेस उम्मीदवार महेश पाठक भी रहते मुंबई में ही हैं, और वह भी उत्तर-पश्चिम मुंबई सीट से उम्मीदवारी चाहते थे।
शिवसेना को थी गैरमराठी प्रवक्ताओं की तलाश
पाठक को मथुरा से और संजय निरुपम को उत्तर-पश्चिम से टिकट मिल जाने के कारण प्रियंका की सभी उम्मीदें जाती रहीं। चूंकि 2014 के बाद से ही टेलीविजन की बहसों में अक्सर उनका मुकाबला शिवसेना के राज्यसभा सांसद एवं प्रवक्ता संजय राऊत से होता रहा था। इस मुकाबले में ही राऊत से उनकी मित्रता हो गई। शिवसेना में गैरमराठीभाषी प्रवक्ताओं की कमी हमेशा महसूस की जाती रही है। खासतौर से अंग्रेजी बोलनेवालों की। बताया जाता है कि उनके इसी गुण को देखते हुए राऊत की सिफारिश पर आज शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे की उपस्थिति में उन्हें शिवसेना में शामिल कर लिया गया। भविष्य के किसी चुनाव में वह शिवसेना की ओर से हिंदीभाषी चेहरे के रूप में सामने आएं तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए।
प्रियंका का परिचय
करीब 39 वर्षीय प्रियंका चतुर्वेदी के परिवार की जड़ें, भले मथुरा में हों, लेकिन उनका जन्म और पालन-पोषण मुंबई में हुआ। प्रारंभिक पढ़ाई सेंट जोसेफ हाईस्कूल जुहू में और स्नातक की पढ़ाई विले पार्ले के नरसी मोनजी कॉलेज से हुई। पढ़ने-लिखने की शौकान प्रियंका चतुर्वेदी बच्चों और महिलाओं के लिए काम करनेवाले दो-तीन ट्रस्टों से भी जुड़ी रहीं।
पिता के सामाजिक सक्रियता का मिला लाभ
सामाजिक क्षेत्र में पिता की सक्रियता का लाभ भी उन्हें मिलता रहा है। 2010 के आसपास गुरुदास कामत के मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष रहते उनका संपर्क कामत से हुआ। सोशल मीडिया पर प्रियंका की सक्रियता का लाभ कांग्रेस को दिलवाने के उद्देश्य से कामत ने उनका परिचय दिल्ली के नेताओं से करवाया। इस परिचय के बाद 2014 से कुछ पहले ही वह टेलीविजन पर कांग्रेस का पक्ष रखनेवाले पैनलिस्टों में शामिल होकर कांग्रेस का जाना-पहचाना चेहरा बन गईं। प्रियंका विवाहित एवं दो बच्चों की मां हैं।