LokSabha Election 2019 : अन्नपूर्णा की एंट्री से कोडरमा में थमी गुरु-चेले की सियासी जंग
बाबूलाल एवं रवींद्र की दोस्ती किसी जमाने में सुर्खियों में थी। बाद में यह दोस्ती राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में बदल गयी। बाबूलाल ने लेटर बम से रवींद्र पर बड़ा हमला बोला था।
गिरिडीह, जेएनएन। झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी एवं कोडरमा के सांसद व भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रवींद्र कुमार राय झारखंड की राजनीति के दो बड़े नेता हैं। दोनों कोडरमा लोकसभा क्षेत्र के ही रहने वाले हैं। दोनों ने ही कोडरमा लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी किया है। बाबूलाल जहां कोडरमा से तीन बार लड़े और तीनों बार विजयी हुए हैं वहीं रवींद्र एक बार लड़े हैं और विजयी हुए हैं।
बाबूलाल एवं रवींद्र की दोस्ती किसी जमाने में सुर्खियों में थी। बाद में यह दोस्ती राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में बदल गयी। बाबूलाल ने लेटर बम से रवींद्र पर बड़ा हमला बोला था। इस हमले के बाद दोनों ही ओर से इस लोकसभा चुनाव में कोडरमा में टकराने की पूरी तैयारी की गई थी। लगातार दो बार दोनों पुराने दोस्तों के बीच आमने-सामने की सियासी जंग की परिस्थिति बनी लेकिन जंग नहीं हो सकी। पहली बार 2014 के लोकसभा चुनाव में बाबूलाल के चुनाव क्षेत्र बदलने के कारण टकराव टल गयी। तब बाबूलाल कोडरमा के सीटिंग सांसद होते हुए भी चुनाव लडऩे कोडरमा छोड़ दुमका चले गए थे। इस बार जब बाबूलाल लौटकर कोडरमा लडऩे आए तो भाजपा ने रवींद्र का ही पत्ता साफ कर दिया। रवींद्र को ड्राॅप कर भाजपा ने राजद की पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अन्नपूर्णा देवी को मैदान में उतारने का फैसला लिया है। इस कारण दो दोस्तों की एक रोचक जंग देखने का सपना पाले लोगों को निराशा हाथ लगी है।
राय का टिकट कटने से मरांडी खेमा मस्त, माले में मायूसी : भाजपा से डॉ. रवींद्र कुमार राय का टिकट कटने से बाबूलाल मरांडी का खेमा जहां मस्त है वहीं माले के खेमे में थोड़ी मायूसी है। बाबूलाल के खेमे का तर्क है कि राय का टिकट कटने से उनके समर्थकों का एक बड़ा वर्ग है, जो भाजपा के बजाय बाबूलाल से जुडऩा ज्यादा पसंद करेगा। इस खतरे से माले भी अनजान नहीं है। यही कारण है कि माले पहले से ही झाविमो को भाजपा की बी टीम बताकर हमला करती रही है। इधर माले की राज्य कमेटी के सदस्य राजेश यादव ने बताया कि रवींद्र चुनाव लड़ें या न लड़ें, इससे माले की सेहत पर कोई असर नहीं पडऩे वाला है। माले की लड़ाई यहां सीधे भाजपा से है। जो भी भाजपा को हराना चाहता है, उसे माले को समर्थन करना होगा। वहीं भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष व शहर के डिप्टी मेयर प्रकाश सेठ का कहना है कि नरेंद्र मोदी की पूर्ण बहुमत की सरकार फिर से बनाने के लिए भाजपा के कार्यकर्ता व समर्थक एकजुट हैं।
बाबूलाल सरकार में चलता था रवींद्र का सिक्का : झारखंड अलग राज्य बनने के बाद पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी बने थे। उस वक्त रवींद्र कुमार राय राजधनवार के विधायक थे। दोनों भाजपा के कद्दावर नेता थे।बाबूलाल की सरकार में वे खान व भूतत्व मंत्री बने थे। बाबूलाल एवं रवींद्र तब गहरे दोस्त थे। बाबूलाल की सरकार में रवींद्र की खूब चलती थी। बाबूलाल के बाद जब अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने तो उस सरकार में रवींद्र उद्योग व श्रम मंत्री बने। बाबूलाल ने जब भाजपा से इस्तीफा दिया तो उनके समर्थन में रवींद्र ने भी भाजपा से इस्तीफा दे दिया था। दोनों की दोस्ती लंबे समय तक चली। बाद में बाबूलाल का साथ छोड़कर रवींद्र भाजपा में वापस हो गए। रवींद्र को प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बना दिया गया। 2014 के चुनाव में पार्टी ने बाबूलाल के खिलाफ रवींद्र को ही कोडरमा में उतारने का फैसला लिया। अंतिम समय में बाबूलाल कोडरमा छोड़कर दुमका चले गए। इधर रवींद्र कोडरमा से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंच गए।
बाबूलाल के लेटर बम से घायल हुए थे रवींद्र : बाबूलाल ने कुछ माह पूर्व अपने पुराने मित्र रवींद्र राय को लेटर बम से हमला किया था। रवींद्र लेटर बम से इस तरह आहत हुए थे कि उन्होंने इसकी शिकायत थाने में भी दर्ज कराई थी। बाबूलाल ने एक पत्र राज्यपाल को सौंपा था। बाबूलाल का दावा था कि वह पत्र रवींद्र राय ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को लिखा था। पत्र में झाविमो के आधा दर्जन विधायकों को तोड़कर भाजपा में शामिल कराने के एवज में 11 करोड़ रुपये देने की बात कही थी। बाबूलाल का दावा था कि पत्र में रवींद्र राय के हस्ताक्षर थे। राय उस वक्त भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे। बाबूलाल का दावा था कि यह पत्र 19 जनवरी 2015 को भेजा गया था। बाबूलाल के इस लेटर बम का जवाब देते हुए रवींद्र ने इसे फर्जी करार दिया था। दावा किया था कि यह पत्र खुद बाबूलाल ने ही भाजपा एवं उन्हें बदनाम करने के लिए लिखे थे। उन्होंने बाबूलाल से सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने की मांग की थी। बाबूलाल अपने स्टैंड पर कायम रहे थे। मामला थाना तक पहुंच गया था। इस लेटर बम के बाद दोनों नेताओं की तल्खी और बढ़ गई थी। दोनों यदि मैदान में होते तो इस बार दोनों मित्रों के बीच वार-पलटवार जमकर होता।