सियासी दलों तक नहीं पहुंचता 'शोर'
न प्रेशर हार्न हटे और न ही चीखते लाउडस्पीकर। दिन तो दिन रात भी शोर की गिरफ्त में।
लखनऊ, (रूमा सिन्हा)। वाहनों में लगे प्रेशर हार्न से होने वाला कानफोड़ू शोर भले ही राजधानीवासियों को बहरा कर रहा हो लेकिन यह शोर राजनीतिक पार्टियों के कानों तक नहीं पहुंचता। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रदेश के प्रमुख शहरों में बीते वर्ष शोर की जो रिपोर्ट जारी की है उससे साफ है कि शोर पर नकेल कसने के लिए शासन-प्रशासन द्वारा किए गए सभी प्रयास विफल रहे हैं। खास बात यह है कि दिन तो दिन, रात भी शोर की गिरफ्त में हैं। एक तरफ तो आवासीय इलाकों में बढ़ती कमर्शियल एक्टिविटी शोरगुल का सबब बन रही है। वहीं शांत क्षेत्र तो मानों बस कहने के लिए ही शांत रह गए हैं।
वाहनों के चीखते हार्न से होने वाले शोर ने इन इलाकों को पूरी तरह से अशांत कर दिया है और शोर ने यहां सभी मानक तोड़ दिए हैं। लखनऊ की बात करें तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आइआइटीआर) द्वारा समय-समय पर की गई मॉनीट¨रग रिपोर्ट दर्शाती है कि दिन तो दिन, रात में भी तकरीबन हर जगह शोर सीमा के मुकाबले कहीं अधिक पाया गया है। इंदिरा नगर, चारबाग, आलमबाग व चौक में तो रात में भी शोर चिंताजनक स्थिति में दर्ज किया गया है। गोमती नगर, अलीगंज, विकास नगर इलाकों में दिन-रात शोर का स्तर मानकों से अधिक पाया गया है। यही नहीं, शांत श्रेणी में आने वाले हाईकोर्ट, अस्पताल व स्कूल-कॉलेज जिनके चारों तरफ एक्ट के मुताबिक सौ मीटर के दायरे में शोर पर प्रतिबंध है लेकिन यहां भी शोर का स्तर खतरे की सीमा को लांघ चुका है।
यह हैं कारण - शहर में शोर का मुख्य कारण वाहन जनित शोर है। इसके अलावा धर्म स्थलों पर लगे लाउड स्पीकर भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। - शोर पर नियंत्रण के लिए न तो अदालती आदेश का अनुपालन हुआ और न ही जिलाधिकारी व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को सौंपी गई जिम्मेदारी ही काम आई। - शहर में शोर की गतिविधियां बेरोकटोक जारी हैं, जबकि इसे रोकने का जिम्मा जिला प्रशासन का है। रात में 10 बजे के बाद शोर की गतिविधियों पर रोक है, लेकिन इस आदेश को ठेंगा दिखा दिया जाता है। - प्रेशर हार्न पर प्रतिबंध होने के बावजूद सरकारी वाहनों में सबसे ज्यादा इसका इस्तेमाल किया जाता है। बढ़ते शोर में गुम हो गए आदेश दर आदेश पहला आदेश : केंद्र सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय ने 26 सितंबर 1989 को पर्यावरण संरक्षण एक्ट के तीसरे संशोधित नियम के तहत शोर की रोकथाम के लिए पहली मर्तबा प्रावधान कर अधिसूचना जारी की। दिन व रात के लिए अलग-अलग मानक तय किए गए।
शांत क्षेत्रों (न्यायालय, अस्पताल, स्कूल-कॉलेज) के इर्द-गिर्द सौ मीटर के दायरे में वाहनों के हार्न, लाउडस्पीकर आदि के प्रयोग पर पाबंदी लगाई गई। - वर्ष 2000 मे ध्वनि प्रदूषण रेगूलेशन एवं कंट्रोल एक्ट बनाया गया, जिसमें जिला प्रशासन को शोर पर नियंत्रण का जिम्मा सौंपा गया। - सितंबर 2000 में उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने जनहित याचिका पर निर्देश दिया कि रात 10 से सुबह 6 बजे तक शोर की गतिविधियों पर प्रतिबंध रहेगा। - 17 फरवरी 2001 को ध्वनि प्रदूषण को रोकने की जिम्मेदारी सीधे डीएम व एसएसपी को सौंपी गई। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बिना ध्वनि निरोधक के लाउडस्पीकर न चलाए जाने के निर्देश दिए गए। मल्टीटोन हार्न, सायरन, हूटर के इस्तेमाल पर बंदिश लगाई गई। पटाखों के लिए भी नियम बनाए गए। इसलिए शोर है चिंताजनक डॉक्टरों के अनुसार शहरों में रहने वाले जो लोग कान की बीमारियों, उच्च रक्तचाप, तनाव व चिड़चिड़ेपन के शिकार हैं, उनमें 15 फीसद रोगों का कारण शोर है।