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Giridih, Lok Sabha Election 2019: गिरिडीह का लाल इलाका किसके साथ, आसान नहीं चंद्रप्रकाश की राह

Lok Sabha Election 2019. गिरिडीह में भाजपा-आजसू गठबंधन की अग्निपरीक्षा होगी। सीधी लड़ाई में यह सीट फंसी है। प्रचार युद्ध में एनडीए आगे है। महागठबंधन ने भी जोर लगाया है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Fri, 10 May 2019 11:26 AM (IST)Updated: Sat, 11 May 2019 05:11 PM (IST)
Giridih, Lok Sabha Election 2019: गिरिडीह का लाल इलाका किसके साथ, आसान नहीं चंद्रप्रकाश की राह
Giridih, Lok Sabha Election 2019: गिरिडीह का लाल इलाका किसके साथ, आसान नहीं चंद्रप्रकाश की राह

रांची, [प्रदीप सिंह]। Lok Sabha Election 2019 - तोपचांची से आगे धूल उड़ाती जीटी रोड और उसके किनारे सजा पारंपरिक हथियारों का बाजार बरबस ही अपनी ओर ध्यान खींचता है। लाठी, तलवार, भाला से लेकर फरसा, खुखरी और रामपुरी चाकू तक। इसे बनाना और बेचना, यह पारंपरिक काम है आसपास के कई गांवों के लोगों का। हाइवे पर खरीदार मिलते हैं।

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जो नहीं खरीदते, वे एक दफा हथियारों को निहारने का लोभ नहीं छोड़ पाते, क्योंकि हथियार, युद्ध और उसका रोमांच हम भारतीयों को खूब भाता है। कोलकाता से आ रहे विश्वास भी हथियार निहार रहे हैं। कहते हैं - इसे देखकर मन प्रसन्न हो गया दादा। ऐसा लग रहा है कि हम जुद्ध (युद्ध) के मैदान में हैं। देखा ना, कैसे मोदीजी सर्जिकल स्ट्राइक किया पाकिस्तान में। बहुत अच्छा किया।

हमारे बंगाल में बहुत अच्छा माहौल बना है। सब साफ हो जाएगा। विश्वास की बातें सुनकर दुकानदार प्रमोद मुस्कराते हुए बोल उठते हैं- यहां भी बहुत अच्छा माहौल है। चारों तरफ मोदी-मोदी है। तभी बगल से झारखंड मुक्ति मोर्चा के सैकड़ोंं कार्यकर्ता बाइक से गुजरते हैं। पता चला, समीप में हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी सभा करने आ रहे हैं और रैली में जाने के लिए सभी बाइक सवार पंप पर पेट्रोल भराने आए हैं।

गिरिडीह संसदीय क्षेत्र के इस सुदूर इलाके का भाग तकनीकी तौर पर धनबाद जिले के तहत आता है। वैसे भी यह जटिल इलाका है। दायरा बोकारो के पेटरवार तक। राजगंज बाजार में बुधनी सब्जी बेचने आई है। खीरा, टमाटर, लौकी से लेकर गाजर तक उपजता है इनके खेत में। हाइवे पर खरीदार भी मिलते हैं। चुनाव के बारे में पूछने पर पहले सकुचाती है, फिर कहती हैं- हम क्या बोलेंगे दादा।

जहां घर का लोग देगा, वहीं हम भी डाल देंगे अपना वोट। लेकिन मोदीजी का हवा है इधर। गांव में घर, शौचालय से लेकर रसोई गैस तक मिला है सबको। बहुत काम किए हैं हमलोगों का। अपनी बातें बताने के बाद फिर मतलब पर भी आती है बुधनी। कहती है, लौकी-खीरा तौल दें दादा। ले जाइए न, बीसे (20) रुपये किलो दे देंगे आपको।

भाजपाई भी बहा रहे पसीना

गिरिडीह संसदीय क्षेत्र में घुसते के साथ ही चुनावी बयार का झुकाव नजर आने लगता है। यहां फूल का साथ फल को मिला है। यानी भाजपा ने केला चुनाव चिह्न वाली आजसू पार्टी के लिए यह सीट छोड़ी है। झारखंड में एनडीए के विस्तार के प्रति भाजपा की रुचि इसी से साबित होती है कि उसने अपने कब्जे वाली सीट सहयोगी दल को देने का जोखिम उठाया है।

भाजपाई यहां पसीना भी खूब बहा रहे हैं ताकि एनडीए में शामिल दलों के रिश्ते में हरियाली बनी रहे। हरियाली आजसू पार्टी के एजेंडे में प्राथमिकता सूची में है। अगर यहां से सफलता मिली तो क्षेत्रीय दल को पहली दफा लोकसभा में पहुंचने का मौका मिलेगा। राज्य सरकार में मंत्री चंद्रप्रकाश चौधरी के बैनर-पोस्टर से पूरा इलाका पटा हुआ है।

झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी जगरनाथ महतो भी मुकाबले में मजबूती से हैं। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों का उन्हें समर्थन है। जगरनाथ डुमरी से विधायक हैं। उन्होंने 2014 में भी यहां से जोर-आजमाइश की थी लेकिन सफल नहीं हो पाए।

दावेदारी को लेकर भी विवाद

भाजपा ने जब गिरिडीह संसदीय सीट से रवींद्र पांडेय को टिकट नहीं दिया तो उन्होंने शुरुआत में कड़े तेवर दिखाए। बाद में उनके तेवर नरम पड़ गए। पांडेय एनडीए की सभाओं में दिख रहे हैं। उधर झारखंड मुक्ति मोर्चा के मांडू से विधायक जयप्रकाश भाई पटेल ने भी इस सीट से दावेदारी ठोकी थी।

पार्टी ने जब उनकी बात नहीं मानी तो वे बागी हो गए। वे अब एनडीए की सभाओं में नजर आते हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने उन्हें दल से निकाल बाहर किया है। जाहिर है उनकी नाराजगी का फायदा एनडीए उठा ले जाएगी।

नक्सलवाद का भी असर

गिरिडीह संसदीय क्षेत्र में नक्सलियों का प्रभाव है। हालांकि हालिया सफल अभियानों के बाद इनके तेवर ठंडे पड़े हैं लेकिन यह कहना जल्दबाजी होगा कि उनके पांव पूरी तरह उखड़ चुके हैं। पीरटांड क्षेत्र की रपटीली घाटी से गुजरते हुए इसका अहसास होता है कि हम नक्सली प्रभाव वाले क्षेत्र से गुजर रहे हैं। इलाके में पुलिस के पिकेट हैं। इस इलाके में लगातार गश्त होती है। नक्सलियों की मंशा चुनाव को प्रभावित करने की है। लेकिन पुलिस ने उन्हें अभी पीछे धकेल रखा है।

जीत के पांच मंत्र

1. बंटवारा रोकना- मुख्य मुकाबले के दोनों उम्मीदवार एक ही जातीय समुदाय के। इस जातीय समुदाय की कई इलाकों में है बहुलता। वोटों का ज्यादा झुकाव प्रभावित करेगा चुनाव परिणाम को।

2. भावनात्मक जुड़ाव- मुख्य मुकाबले के दोनों दल भावनात्मक मुद्दों को उछालकर लोगों को अपने पक्ष में करने में जुटे हैं। इसमें जिसे कामयाबी मिलेगी, वह बाजी मारने में सफल होगा।

3. वोट में सेंधमारी- आजसू को भाजपा कैडरों के वोट अपने पक्ष में कराने होंगे तो झामुमो को कांग्रेस, झाविमो समेत अन्य विपक्षी दलों के। इसमें सेंधमारी करने में जो सफल होगा, जीत उसी की होगी।

4. प्रचार तंत्र- गिरिडीह में अन्य संसदीय क्षेत्रों की अपेक्षा चुनाव प्रचार ज्यादा। इसमें ज्यादा गंभीरता और आक्रामक तरीके से चुनाव प्रचार का भी पड़ेगा पूरा असर।

5. बेहतर बूथ प्रबंधन- आजसू-झामुमो को बूथ स्तर पर करना होगा बेहतर प्रबंधन। अपने समर्थकों को विभिन्न क्षेत्रों में बूथों तक पहुंचाने का भी टास्क। बेहतर बूथ प्रबंधन होगा सफलता का पैमाना।

2014 में हुआ था करीबी मुकाबला

दल      प्रत्याशी      कुल वोट      प्रतिशत

भाजपा -   रविंद्र पांडेय -    3,91,913 -   25 प्रतिशत

झामुमो -   जगरनाथ महतो-   3,51,600 -   23 प्रतिशत

झाविमो -   सबा अहमद -   57,380 -   03 प्रतिशत

फैक्ट फाइल

महिला मतदाता - 700052

पुरुष मतदाता -811587

कुल मतदाता - 15,11,644

छह विधानसभा में चार पर एनडीए काबिज

गिरिडीह संसदीय क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र गिरिडीह, बेरमो, टुंडी, गोमिया, बाघमारा और डुमरी विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इसमें गिरिडीह, बेरमो, बाघमारा पर भाजपा का कब्जा है। जबकि गोमिया और डुमरी झारखंड मुक्ति मोर्चा और टुंडी आजसू पार्टी के कब्जे में।

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