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Lok Sabha Election Result 2019: अप्रत्याशित नहीं है पीडीपी की करारी हार, कश्मीर के हालात से बिगड़े सियासी समीकरण

भाजपा के साथ गठजोड़ पर खुद को बैकफुट पर महसूस करतीं महबूबा ने नेशनल कांफ्रेंस पर ही सबसे पहले भाजपा से हाथ मिलाने का आरोप लगाया।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Fri, 24 May 2019 11:44 AM (IST)Updated: Fri, 24 May 2019 11:44 AM (IST)
Lok Sabha Election Result 2019: अप्रत्याशित नहीं है पीडीपी की करारी हार, कश्मीर के हालात से बिगड़े सियासी समीकरण
Lok Sabha Election Result 2019: अप्रत्याशित नहीं है पीडीपी की करारी हार, कश्मीर के हालात से बिगड़े सियासी समीकरण

श्रीनगर, नवीन नवाज। कश्मीर की तीनों लोकसभा सीटों पर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की हार कोई अप्रत्याशित नहीं है। इसका सभी को अनुमान नहीं, यकीन था। यह चुनाव पार्टी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती के लिए पूरी तरह वाटरलू साबित होगा, ऐसा किसी ने सोचा तक नहीं था। यहां भाजपा को भी, जो जीत के बजाय अपने वोट बैंक को बढ़ाने का दावा कर रही थी, हाथ निराशा लगी है। उसके प्रत्याशियों ने कहीं भी पांच हजार का आंकड़ा नहीं छुआ। पीपुल्स कांफ्रेंस जिसे भाजपा का करीबी माना जाता है, भी हार गई है। जिन मुददों पर नेशनल कांफ्रेंस ने तीनों सीटों पर कब्जा किया है, उन्हीं मुददों पर पीडीपी और पीपुल्स कांफ्रेंस ने भी वोट मांगे थे।

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धारा 370 व धारा 35ए, जमात-ए-इस्लामी व जेकेएलएफ पर पाबंदी और भाजपा की कश्मीर में बढ़ती उपस्थिति के साथ साथ वर्ष 2016 में आतंकी बुरहान की मौत से पैदा हालात ने कश्मीर घाटी में पीडीपी, भाजपा व पीपुल्स कांफ्रेंस समेत सभी के सियासी समीकरणों को बिगाड़ दिया, जिसका सीधा फायदा नेशनल कांफ्रेंस को मिला। जून 2018 में पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार के गिरने के साथ ही अपने सियासी जीवन के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहीं पीडीपी अध्यक्ष महबूबा के लिए यह चुनाव अपनी सियासी जमीन और कश्मीर की सियासत में अपनी अहमियत बनाए रखने के लिए बहुत अहम थे। पीडीपी के अधिकांश पुराने नेताओं द्वारा साथ छोड़े जाने के बाद खुद को अकेला महसूस कर रहीं महबूबा ने अपनी पुरानी सियासी रणनीति को अपनाते हुए मुख्यधारा की आड़ में अलगाववाद की सियासत को हवा देना शुरू किया। सुरक्षाबलों की कथित ज्यादतियों का मुददा उठाते हुए भाजपा को कश्मीर व कश्मीरियों का दुश्मन बताने लगीं। राज्य के विशेष दर्जे के संरक्षण पर संकल्पबद्धता जताते हुए उन्होंने धारा 370 और 35ए के संरक्षण की वकालत भी शुरू कर दी।

काम नहीं आई सियासी रणनीति

भाजपा के साथ गठजोड़ पर खुद को बैकफुट पर महसूस करतीं महबूबा ने नेशनल कांफ्रेंस पर ही सबसे पहले भाजपा से हाथ मिलाने का आरोप लगाया। उन्होंने हिंदूू-मुस्लिम की सियासत भी की और जम्मू संभाग में मुस्लिमों की कथित प्रताड़ना का मुद्दा उठाया, लेकिन कहीं काम नहीं आया। पीडीपी की कमजोर स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें कश्मीर के चुनावी दंगल में उतारने के लिए कोई पुराना वरिष्ठ नेता नहीं मिला। श्रीनगर में उन्होंने आगा सैय्यद मोहसिन और बारामुला में चुनाव से पूर्व सरकारी नौकरी छोडऩे वाले कर्मचारी नेता अब्दुल कयूम वानी को उम्मीदवार बनाया। वह दक्षिण कश्मीर से खुद मैदान में उतरी ताकि किसी तरह से पीडीपी की साख बच जाए। वह वर्ष 2004 और 2014 में यह सीट जीत चुकी थी।

पीपुल्स कांफ्रेंस ने भी भाजपा की निंदा की

पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद गनी लोन, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी माना जाता है, ने कश्मीर की तीनों सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे, लेकिन वह कहीं जीत दर्ज नहीं कर पाए। हालांकि, उन्होंने खुद को भाजपा से अलग साबित करने के लिए भाजपा की निंदा का सहारा लिया। राज्य के विशेष दर्जे की वकालत की और नेशनल कांफ्रेंस व पीडीपी को कश्मीरियों का दुश्मन बताते हुए भाजपा के साथ उनकी करीबी को भी उछाला। भाजपा, जिसे कश्मीर में जीत की उम्मीद नहीं थी, लेकिन यह मानकर चल रही थी कि उसका वोट बैंक पहले से बढ़ेगा, उसके प्रत्याशी सम्मानजनक आंकड़े को छूकर बीते पांच सालों से कश्मीर में भाजपा की मेहनत को फलदायक बनाएंगे। भाजपा राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने भी कश्मीर में कई बैठकी कीं, लेकिन वह भी वोट जोडऩे में नाकाम रहे।

नेकां ने पूरा ध्यान कश्मीर पर केंद्रित रखा

अलबत्ता, नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला और उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने अपना पूरा ध्यान कश्मीर पर केंद्रित रखा। उन्होंने धारा 370 और 35ए के संरक्षण का यकीन दिलाते हुए कहा कि अगर इन पर आघात हो रहा है तो उसके लिए पीडीपी व भाजपा जिम्मेदार है। उन्होंने राज्य में जीएसटी को भी मुद्दा बनाया और जमात-ए-इस्लामी व जेकेएलएफ पर प्रतिबंध को भी उछाला। अलगाववादियों के खिलाफ एनआइए की कार्रवाई की निंदा की। इसके अलावा नेकां ने हर जगह अलगाववादी भावनाओं को उछाला।

भाजपा से गठजोड़ भारी पड़ा

कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ अहमद अली फैयाज ने कहा कि कश्मीर का चुनाव परिणाम अप्रत्याशित नहीं था। दक्षिण कश्मीर पीडीपी का मजबूत किला माना जाता रहा है, लेकिन जमात-ए-इस्लामी और जेकेएलएफ पर पाबंदी के अलावा 2016 के बाद जो आतंकी हिंसा में लोग मारे गए, उसका खमियाजा पीडीपी ने भुगता है। पीडीपी को जमात का हमेशा परोक्ष समर्थन रहा है जो इस बार नहीं था। नेकां को जहां भी वोट मिले, वहां लोगों ने खुलकर कहा कि वह राज्य के विशेष दर्जे को रोकने के लिए वोट दे रहे हैं। पीपुल्स कांफ्रेंस की हार का यही कारण है। फैयाज ने कहा कि यह कश्मीर की सियासत की कड़वी सच्चई है कि यहां मुख्यधारा के सियासी दलों की जीत का पैमाना अलगाववादी तत्वों के प्रति उनकी उदार नीतियों का दावा है।

पीडीपी कार्यालय में सन्नाटा

लोकसभा चुनाव में चारों खाने चित रही कांग्रेस पार्टी व पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के जम्मू स्थित कार्यालयों में दिन भर सन्नाटा छाया रहा। गांधीनगर स्थित पीडीपी कार्यालय में सुबह से ही सन्नाटा था। यहां पर कोई पदाधिकारी व कार्यकर्ता दिन भर नजर नहीं आया। उधर, पुराने शहर के रेजीडेंसी रोड स्थित कांग्रेस मुख्यालय में भी दिन भर कोई चहल-पहल नहीं दिखी। सुबह के समय कुछ पदाधिकारी पार्टी मुख्यालय पहुंचे और वहां पर एक साथ बैठकर रुझान देखे लेकिन हर तरफ पार्टी को मिली हार से निराश ये कार्यकर्ता भी कुछ देर बाद यहां से चले गए।

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