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नए चेहरों के लिए जूझ रहीं पार्टियां, एक ही नाव पर सवार हैं कांग्रेस व शिअद-भाजपा

पंजाब में सभी राजनीतिक दल लोकसभा चुनाव के लिए नए चेहरे नहीं मिल रहे हैं। इस मामले में कांग्रेस और शिअद-भाजपा गठबंधन एक ही नाव में सवार दिख रहे हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Mon, 04 Mar 2019 11:01 AM (IST)Updated: Mon, 04 Mar 2019 04:28 PM (IST)
नए चेहरों के लिए जूझ रहीं पार्टियां, एक ही नाव पर सवार हैं कांग्रेस व शिअद-भाजपा
नए चेहरों के लिए जूझ रहीं पार्टियां, एक ही नाव पर सवार हैं कांग्रेस व शिअद-भाजपा

चंडीगढ़, [कैलाश नाथ]। लोकसभा चुनाव के लिए राजनीतिक पार्टियों ने प्रत्याशियों की चयन प्रक्रिया शुरू कर दी है। कांग्रेस ने जहां आवेदन मांग लिए हैं, वहीं हमेशा ही चुनाव से काफी समय पहले उम्मीदवार घोषित करने वाला शिरोमणि अकाली दल (बादल) इस बार प्रत्याशियों के चयन को लेकर धर्म संकट में फंसा है। भाजपा की स्थिति भी कमोवेश वही है। महत्वपूर्ण यह है कि 2014 से 2019 के बीच सभी पार्टियों की वास्तविक स्थिति में बहुत बदलाव आ चुका है।

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कांग्र्रेस को जहां करीब सात सीटों पर नए प्रत्याशी का चयन करना है, वहीं अकाली दल को भी करीब छह सीटों पर नए चेहरों पर दांव खेलना है। भाजपा की स्थिति भी ऐसी ही है। कांग्रेस को फिरोजपुर, श्री आनंदपुर साहिब, फरीदकोट, खडूर साहिब, बठिंडा, संगरूर, फतेहगढ़ साहिब सीटों पर नया चेहरा लाना है। शिरोमणि अकाली दल को खडूर साहिब, फिरोजपुर, जालंधर, फतेहगढ़ साहिब जैसी सीटों पर नया चेहरा लाना होगा। भाजपा को भी अमृतसर व गुरदासपुर में नए प्रत्याशी पर दांव खेलना होगा।

कांग्रेस व शिअद के बीच सबसे रोमांचक लड़ाई फिरोजपुर, खडूर साहिब और फतेहगढ़ साहिब सीट पर देखने को मिल रही है। फिरोजपुर सीट से 2014 में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ चुनाव लड़े थे, लेकिन शिरोमणि अकाली दल के शेर सिंह घुबाया से हार गए थे। बाद में जाखड़ गुरदासपुर सीट पर हुए उपचुनाव में जीत कर लोकसभा पहुंचे। इस बार शिरोमणि अकाली दल ने घुबाया के लिए अपनी दरवाजे बंद कर दिए हैं।

खडूर साहिब सीट से अकाली सांसद रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा शिअद को छोड़कर अपनी पार्टी अकाली दल टकसाली बना चुके हैं और चुनाव मैदान में डटने वाले हैं। कांग्रेस ने पिछली बार इस सीट से हरमिंदर सिंह गिल को मैदान में उतारा था। वह अब पट्टी से कांग्रेस के विधायक हैं। फतेहगढ़ साहिब सीट से कांग्रेस ने साधू सिंह धर्मसोत और शिरोमणि अकाली दल ने कुलवंत सिंह को उतारा था।

कुलवंत सिंह अब मोहाली के मेयर हैं तो धर्मसोत कैप्टन सरकार में कैबिनेट मंत्री। अत: इन तीनों ही सीटों पर कांग्र्रेस और अकाली दल को नए चेहरे उतारने होंगे। इसी प्रकार कांग्र्रेस को बठिंडा, संगरूर में भी नए चेहरे पर दांव खेलना होगा। क्योंकि बठिंडा से पिछला चुनाव लड़ने वाले मनप्रीत बादल और संगरूर के विजय इंद्र सिंगला दोनों ही कैबिनेट मंत्री हैं।

भाजपा के लिए अमृतसर व गुरदासपुर सीट चुनौती
भाजपा के लिए अमृतसर और गुरदासपुर की सीट सबसे बड़ी चुनौती है। इन दोनों सीटों पर कांग्रेस के हाथों मुंह की खा चुकी भाजपा को नए चेहरे पर दांव खेलना होगा। यह दोनों ही वह सीटें हैं जहां पर न सिर्फ भाजपा 2014 का चुनाव हारी, बल्कि दोनों ही सीटों पर उप चुनाव भी हार गई थी। माना जा रहा है कि इन दोनों सीटों पर भाजपा बड़ी सेलिब्रिटी को उतारने की तैयारी में है।

दिग्गजों को पुन: जोड़ने में जुटे सुखबीर
बेअदबी कांड के कारण लगातार बिखरे आधार को देखते हुए शिअद प्रधान सुखबीर बादल पुराने दिग्गजों को जोडऩे की कोशिश में जुटे हैं। रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा के टूटने और उससे पहले सुखदेव सिंह ढींडसा द्वारा पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा देने के कारण सुखबीर अपनी ही पार्टी में निशाने पर आ गए थे। लोकसभा चुनाव में सुखबीर ने सीनियर नेताओं को पुन: तरजीह देना शुरू कर दिया है।

इसी क्रम में विधानसभा के पूर्व स्पीकर चरणजीत सिंह अटवाल को अकाली दल ने जालंधर सीट से लड़वाने का फैसला किया है। पिछली बार इस सीट से पवन टीनू चुनाव लड़े थे और हार गए थे। लोकसभा में पूर्व डिप्टी स्पीकर रहे डॉ. अटवाल को इसलिए भी चुनाव मैदान में उतारा जा रहा है, ताकि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का विश्वास जीता जा सके।


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