देश की आजादी के बाद उन दिनों चूड़ा-गुड़ साथ लेकर चुनाव प्रचार को निकलते थे प्रत्याशी
आजादी के बाद हुए चुनाव व अब के चुनाव में हुए परिवर्तन के अनुभव को भेलवाघाटी के पूर्व मुखिया सह साहू-वैश्य समाज के अध्यक्ष उमाचरण प्रसाद साहा ने दैनिक जागरण के साथ साझा किया।
By Edited By: Published: Thu, 28 Mar 2019 11:41 PM (IST)Updated: Fri, 29 Mar 2019 01:49 PM (IST)
जागरण संवाददाता, गिरिडीह: अपने होश में पहली बार 1960 ई. के चुनाव में मतदाताओं के लिए पर्ची लिखने का काम मिला था। तब सातवीं कक्षा में पढ़ता था। पर्ची लिखने के लिए बांस का पेन व दवात में स्याही मिलती थी। उत्साह से ओतप्रोत रहने के कारण बगैर खर्चे की मांग किए उसी बांस की कलम से सादे कागज में मतदाता का नाम समेत अन्य जानकारी लिखकर घर-घर पहुंचाते थे।
1965 ई. का चुनाव काफी यादगार रहा, जिसे आज भी भुलाए नहीं भूला जाता है। तब के चुनाव व अब के चुनाव में हुए परिवर्तन के अनुभव को भेलवाघाटी के पूर्व मुखिया सह साहू-वैश्य समाज के अध्यक्ष उमाचरण प्रसाद साहा दैनिक जागरण से साझा कर रहे थे। बताया कि तब प्रत्याशी समेत कार्यकर्ता साइकिल से घूम-घूमकर प्रचार करते थे और साथ में चूड़ा व गुड़ भी लेकर चलते थे। जहां भूख लग जाती थी वहीं बैठकर चूड़ा-गुड़ खाकर बगैर आराम किए प्रचार को निकल जाते थे। 1967 ई. की घटना को याद कर चुनाव को लेकर आज भी जोश आ जाता है। प्रत्याशी तानेश्वर आजाद के चुनाव प्रचार के लिए (अब कोडरमा जिले में) सतगांवां जा रहे थे। तभी मरचो नदी के बालू में प्रचार जीप फंस गई। रातभर सब मिलकर जीप को ठेलते रहे, लेकिन वह स्टार्ट नहीं हुई तो थक हारकर वहीं सो गए। सुबह पैदल मरचो गांव निवासी कांग्रेसी कार्यकर्ता द्वारिका प्रसाद ¨सह के घर पहुंचे। उन्होंने चुड़ा व गुड़ का जलपान कराया। उसके बाद एक मिस्त्री को साथ में भेजा तो जीप स्टार्ट हुई। इसके बाद प्रचार करते हुए राजधनवार गए।
इस चुनाव में तानेश्वर आजाद की जीत हुई थी। उस वक्त चुनाव में सहयोग के लिए घर-घर से एक मुट्ठी चावल व एक रुपया संग्रहित करते थे। पहले के चुनाव और अब के चुनाव में आसमान जमीन का अंतर हो गया है। पहले लोग अपने खर्च से प्रत्याशी के लिए प्रचार प्रसार करते थे लेकिन अब वैसा नहीं रहा। अब हर व्यक्ति प्रत्याशी से पैसे लेने की फिराक में रहते हैं। अब निस्वार्थ भाव से काम करने में कमी आई है।
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1965 ई. का चुनाव काफी यादगार रहा, जिसे आज भी भुलाए नहीं भूला जाता है। तब के चुनाव व अब के चुनाव में हुए परिवर्तन के अनुभव को भेलवाघाटी के पूर्व मुखिया सह साहू-वैश्य समाज के अध्यक्ष उमाचरण प्रसाद साहा दैनिक जागरण से साझा कर रहे थे। बताया कि तब प्रत्याशी समेत कार्यकर्ता साइकिल से घूम-घूमकर प्रचार करते थे और साथ में चूड़ा व गुड़ भी लेकर चलते थे। जहां भूख लग जाती थी वहीं बैठकर चूड़ा-गुड़ खाकर बगैर आराम किए प्रचार को निकल जाते थे। 1967 ई. की घटना को याद कर चुनाव को लेकर आज भी जोश आ जाता है। प्रत्याशी तानेश्वर आजाद के चुनाव प्रचार के लिए (अब कोडरमा जिले में) सतगांवां जा रहे थे। तभी मरचो नदी के बालू में प्रचार जीप फंस गई। रातभर सब मिलकर जीप को ठेलते रहे, लेकिन वह स्टार्ट नहीं हुई तो थक हारकर वहीं सो गए। सुबह पैदल मरचो गांव निवासी कांग्रेसी कार्यकर्ता द्वारिका प्रसाद ¨सह के घर पहुंचे। उन्होंने चुड़ा व गुड़ का जलपान कराया। उसके बाद एक मिस्त्री को साथ में भेजा तो जीप स्टार्ट हुई। इसके बाद प्रचार करते हुए राजधनवार गए।
इस चुनाव में तानेश्वर आजाद की जीत हुई थी। उस वक्त चुनाव में सहयोग के लिए घर-घर से एक मुट्ठी चावल व एक रुपया संग्रहित करते थे। पहले के चुनाव और अब के चुनाव में आसमान जमीन का अंतर हो गया है। पहले लोग अपने खर्च से प्रत्याशी के लिए प्रचार प्रसार करते थे लेकिन अब वैसा नहीं रहा। अब हर व्यक्ति प्रत्याशी से पैसे लेने की फिराक में रहते हैं। अब निस्वार्थ भाव से काम करने में कमी आई है।
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