Lok Sabha Election 2019: बदल गए प्रचार के तौर-तरीके, अब डोर टू डोर के साथ सोशल मीडिया पर जोर
अब के नेता मंच से ही कार्यक्रम की फोटो फेसबुक वाट्सएप या अन्य सोशल मीडिया में पोस्ट कर देते हैं। समर्थक उस पोस्ट को वायरल कर देते हैं और देखते ही देखते चर्चा का विषय बन जाता है।
पाकुड़, गणेश पांडेय।1952 से लेकर अबतक विधान व लोकसभा के कई चुनाव हुए। सभी चुनावों में कुछ न कुछ बदलाव देखने को मिले। सबसे अधिक बदलाव प्रचार करने का तौर-तरीके में आया है। पहले और अभी के चुनाव में प्रचार करने का तरीका बिल्कुल बदल गया है। नेता के साथ-साथ कार्यकर्ताओं ने भी तौर तरीके बदल लिए हैं। 70-80 के दशक में चुनाव प्रचार के समय कार्यकर्ता सत्तू, भूजा से काम चला लेते थे। लेकिन अब स्थिति बदली है। कार्यकर्ता अब प्रचार से ज्यादा खान-पान पर ध्यान देने लगे हैं। हालांकि इस बार के लोकसभा चुनाव में अभी तक जिले के तीन विधानसभा क्षेत्र क्रमश: पाकुड़, लिट्टीपाड़ा और महेशपुर में प्रचार-प्रसार जोर नहीं पकड़ा है।
बता दें कि चुनाव के समय नेता, कार्यकर्ता पदयात्रा या रैली के माध्यम से जनता के बीच पहुंचते थे। डोर टू डोर पहुंचकर अपने पक्ष में वोट मांगते थे। लेकिन व्यवस्था बदली तो जनता से जुडऩे का तरीका भी बदल गया। अभी के समय में नेता मंच से ही कार्यक्रम की फोटो फेसबुक, वाट्सएप या अन्य सोशल मीडिया में पोस्ट कर देते हैं। समर्थक उस पोस्ट को वायरल कर देते हैं और देखते ही देखते चर्चा का विषय बन जाता है। इतना ही नहीं ट्विटर पर भी नेताजी काफी सक्रिय रहते हैं, ताकि उनकी पब्लिसिटी बनी रहे। वयोवृद्ध मधुसूदन रविदास बताते हैं कि पहले के दौर में नेता जी कम खर्च में काम चला लेते थे। कार्यकर्ता आपस में चंदा इकट्ठा करते थे। लेकिन अब समय बदल गया है। समय के साथ-साथ चुनाव प्रचार में भी बदलाव देखने को मिल रहें हैं। छोटे-बड़े कार्यकर्ता चार पहिया व बाइक में सवार होकर गांव पहुंचते हैं। अपने प्रत्याशी के समर्थन में वोट देने का आग्रह करते हैं। महेशपुर के हिमांशु मंडल कहते हैं कि नेता, कार्यकर्ता पहले पैदल चलकर गांव-गांव पहुंचते थे। नेता जी की मेहनत देखकर वोटर भी दंग रह जाते थे। गांव के लोग प्रत्याशियों को सम्मान की नजर से देखते थे। पर, इस समय स्थिति बदल गई है। इस समय प्रत्याशी प्रचार-प्रसार में लाखों, करोड़ों खर्च कर देते हैं। कार्यक्रर्ता भी खूब मौज करते हैं।
हाईटेक हो गया है प्रचार तंत्र : कई चुनावों को देख चुके बुजूर्गों का कहना है कि इस जमाने में प्रचार का तौर-तरीका बिल्कुल बदल गया है। एक दौर था जब नेता और कार्यकर्ता प्रचार के दौरान सत्तू, मुढ़ी, दही-चूड़ा से काम चलाते थे। क्योंकि चुनाव प्रचार के लिए उम्मीदवारों के पास बहुत अधिक पैसे नही होते थे। लेकिन अभी के समय में विभिन्न दलों के प्रत्याशी प्रचार-प्रसार में पैसे खर्च कर वोटरों को लुभाते हैं। पैसे के बदौलत चुनाव जीतने का दावा करते हैं। चुनावी प्रचार के समय विभिन्न दलों के कार्यकर्ता चार पहिया वाहन में खूब मौज करते हैं। कार्यकर्ता होटलों व ढाबों में पहले मुर्गा-दारू के साथ भोजन करते हैं। इसके बाद वह गांव में पहुंच प्रचार-प्रसार करते हैं। इतना ही नहीं शाम ढलते ही गांवों में तो होली, दिवाली जैसा नजारा रहता है। विभिन्न दलों के कार्यकर्ता गांव के प्रमुख लोगों को लेकर चुनावी पिकनिक मनाते हैं। इसी बीच चुनावी चर्चा भी होती है।