सम्भल जिले में नहीं सरकारी ब्लड बैंक, लगानी पड़ती है मुरादाबाद की दौड़
शिक्षा और विकास के साथ ही सम्भल स्वास्थ्य के मामले में भी काफी पिछड़ा हुआ है। जिले में स्वास्थ्य सुविधाएं राम भरोसे चल रही हैं।
सम्भल, जेएनएन । शिक्षा और विकास के साथ ही सम्भल स्वास्थ्य के मामले में भी काफी पिछड़ा हुआ है। जिले में स्वास्थ्य सुविधाएं राम भरोसे चल रही हैं। अगर आप गंभीर रूप से बीमार हुए तो सम्भल में उपचार होना मुश्किल है। आपको जानकार हैरानी होगी कि कई दफा मरीज की जान बचाने के लिए तीमारदारों को खून के लिए मुरादाबाद तक की दौड़ लगानी पड़ जाती है। समय से खून न मिलने पर कई मरीजों की जान भी जा चुकी हैं। प्राइवेट ब्लड बैंक हैं लेकिन इतनी बड़ी आबादी की जरूरत इससे पूरी नहीं हो पाती है।
इन तमाम परेशानियों के बाद भी सम्भल में कोई ब्लड बैंक नहीं हैं। करोड़ों की लागत से बने जिला अस्पताल में भी यह सुविधा नहीं हैं। पूरे जिले में प्राइवेट तौर पर इक्का-दुक्का ब्लड बैंक है, लेकिन वहां से खून लेने के लिए अच्छी खासी रकम देने के साथ ही डोनर भी अपने साथ ले जाना पड़ता है। जिला बनने के बाद से चुनाव तो कई हुए लेकिन किसी भी नेता ने इस गंभीर समस्या को न तो मुद्दा बनाया और न ही ब्लड बैंक खुलवाने के लिए कोई प्रयास किया।
प्राइवेट दो ब्लड बैंक हैं
मौजूदा समय में सम्भल जिले में प्राइवेट तौर पर दो ब्लड बैंक हैं। जिसमें एक मुरादाबाद रोड सम्भल में है तो दूसरा चंदौसी में। इन दोनों ब्लड बैंकों का आलम यह है कि अगर आपको खून चाहिए तो पहले डोनर लेकर जाएं। खून के बदले खून देने के बाद भी एक यूनिट के लिए करीब 25 सौ रुपये का भुगतान अलग से करना होगा। साथ ही यह भी जरूरी नहीं हैं कि आपको जिस ब्लड ग्रुप की जरूरत है उस ग्रुप का खून आपको मिल जाए। इसके लिए आपको चंदौसी या फिर मुरादाबाद की दौड़ लगानी होगी। ज्यादातर तीमारदार मुरादाबाद से खून लेकर आते हैं। कई दफा समय से खून न मिलने के कारण मरीजों की जान भी जा चुकी हैं। यही वजह है कि करोड़ों की लागत से बने जिला अस्पताल में कई दफा ब्लड बैंक खुलवाने की मांग जोर-शोर से उठ चुकी है लेकिन नतीजा सिफर है। ऐसा नहीं हैं कि यहां से प्रस्ताव शासन को नहीं गया है। सीएमएस डॉ. एके गुप्ता का कहना हैं कि ब्लड बैंक के लिए कई दफा शासन को प्रस्ताव भेजा जा चुका है लेकिन मंजूरी नहीं मिल सकी है।
समय पर नहीं मिला खून
पिछले दिनों मेरी पत्नी की डिलीवरी हुई। जब अस्पताल लेकर आए तो डाक्टरों ने खून की कमी बताई। काफी मशक्कत के बाद भी उस ग्रुप का खून नहीं मिल सका। इधर पत्नी की हालत खराब हो रही थी। बाद में चंदौसी से आए एक परिचित ने खून देकर पत्नी की जान बचाई।
धर्मेश यादव, सौंधन
कई बार हो चुका है आंदोलन
मरीजों की परेशानी को देखते हुए वह लंबे समय से जिला अस्पताल में ब्लड बैंक खुलवाने की मांग कर रहे हैं। कई दफा आंदोलन भी कर चुके हैं। ब्लड बैंक जरूरत के हिसाब से कम हैं। चुनाव के बाद फिर इस मुद्दे को उठाएंगे।
डॉ. नाजिम, सम्भल
तीन साल पहले भी उठाया था मुद्दा
तीन साल पहले ब्लड बैंक खुलवाने का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था। शासन ने इस पर संज्ञान भी लिया था। पूरे देश में 87 ब्लड बैंक पास हुए थे, जिसमें सम्भल भी शामिल था। लेकिन जिला अस्पताल में पैथोलॉजिस्ट की तैनाती न होने के कारण ब्लड बैंक शुरू नहीं हो सका।
आमिर सुहेल वारसी, सम्भल
लगातार जा रही है लोगों की जान
ब्लड बैंक को लेकर कई दफा आंदोलन कर चुके हैं लेकिन अभी तक मांग पूरी नहीं हुई। समय से ब्लड न मिलने से लोगों की जान जा रही है। सरकारी ब्लड बैंक होने से लोगों को कम पैसों में ब्लड समय से उपलब्ध हो सकेगा।
नाजिश नसीर, सम्भल