Sonipat Seat: देवीलाल का परिवार छोड़ सोनीपत से सांसद रहे नेताओं के बेटे-बेटियां राजनीति में नहीं रहे सफल, साहबजादों ने गंवाई साख
Sonipat Lok Sabha Election 2024 सोनीपत लोकसभा सीट पर विरासत की सियासत है। इस सीट पर देवीलाल का परिवार छोड़ सोनीपत से सांसद रहे माननीयों के साहबजादों ने उनकी साख गंवाई है। सोनीपत लोकसभा क्षेत्र से सांसद रहे चौधरी देवीलाल को छोड़े दें तो तीन-तीन बार और दो-दो बार सांसद रहे माननीयों के बेटे-बेटियां अब तक उनकी विरासत नहीं संभाल सके हैं। इस बार क्या होगा यह देखना दिलचस्प होगा।
नंदकिशोर भारद्वाज, सोनीपत। Sonipat Lok Sabha Election 2024 Latest News : सोनीपत लोकसभा सीट से अब तक सांसद रहे माननीयों के साहबजादे उनकी राजनीतिक विरासत के उत्तराधिकारी नहीं बन सके हैं।
वर्ष 1977 में अस्तित्व में आया सोनीपत लोकसभा क्षेत्र
सोनीपत लोकसभा क्षेत्र से सांसद रहे चौधरी देवीलाल को छोड़े दें तो तीन-तीन बार और दो-दो बार सांसद रहे माननीयों के बेटे-बेटियां अब तक उनकी विरासत नहीं संभाल सके हैं।
वर्ष 1977 में अस्तित्व में आए सोनीपत लोकसभा क्षेत्र ने देश को अब तक 14 सांसद दिए हैं लेकिन उनकी दूसरी पीढ़ी राजनीति से या तो दूर है या राजनीति में स्थापित होने के लिए संघर्ष कर रही है।
इस लोकसभा सीट पर होते हैं बड़े उलटफेर
वर्ष 1977 में रोहतक लोकसभा क्षेत्र से अलग होकर बनी लोकसभा सीट बड़े उलटफेर करने के लिए जानी जाती है। यहां के लोग शिखर पर बैठे माननीयों को हराकर कर संसद से बाहर का रास्ता दिखा देते हैं और आजाद प्रत्याशी को भारी वोटों से जिता देते हैं। इसके कई उदाहरण यहां पर मौजूद हैं।
चौधरी देवीलाल सोनीपत से सांसद थे तो उनकी तूती बोलती थी लेकिन अगली बार उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था। 2019 में बड़ी जीत की आस लेकर चुनाव में उतरे पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को भाजपा के रमेश कौशिक के हाथों करारी हार मिली थी।
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अब तक संसद पहुंच चुके हैं 14 माननीय
वर्ष 1977 से अब तक इस लोकसभा क्षेत्र से 14 माननीय संसद पहुंच चुके हैं, लेकिन उनके साहबजादे उनकी राजनीतिक विरासत के उत्तराधिकारी नहीं बन सके हैं। कई के बेटे-बेटियां या राजनीति से दूर हैं या फिर राजनीति में पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। लोकसभा क्षेत्र के पहले सांसद मुख्यत्यार सिंह मलिक गांव भिगान के थे।
वहीं भिगान से सांसद बने जितेंद्र सिंह मलिक राजनीतिक परिवार से थे, उनके पिता राजेंद्र सिंह मलिक राज्य सरकार में मंत्री थे लेकिन जितेंद्र के बेटे राजनीति से दूर हैं। वहीं दो बार के सांसद रहे धर्मपाल मलिक के बेटे को राजनीति में रुचि नहीं है।
उन्होंने कभी राजनीति का रुख नहीं किया। इसके साथ ही तीन बार के सांसद रहे किशन सिंह सांगवान के बेटे प्रदीप सांगवान पिता के साथ सांसद रहने के दौरान राजनीति में उतरे थे।
प्रदीप सांगवान की कांग्रेस में नहीं गली दाल
पिता के निधन के बाद प्रदीप सांगवान कांग्रेस में शामिल हो गए, लेकिन वहां पर उनकी दाल नहीं गली। इसके बाद प्रदीप सांगवान दोबारा भाजपा में शामिल हो गए। अब तक वे कई पदों पर रह चुके हैं लेकिन राजनीति में पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
वहीं दो बार के सांसद रमेश कौशिक के इकलौते बेटे शाहबाद मारकंडा में जज के रूप में तैनात थे लेकिन पिछले साल उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उनके राजनीति में आने की चर्चाएं जोर पकड़ने लगी लेकिन उन्होंने अब तक राजनीति में आने की कोई कोशिश नहीं की है।इससे उनके राजनीति में आने की चर्चाओं पर विराम लग चुका है।
दो विधायकों के बेटे बने सफल नेता
सोनीपत में अब तक बने विधायकों के दो बेटे सफल नेता बन चुके हैं। गांव भिगान के रहने वाले राज्य सरकार में मंत्री रहे राजेंद्र मलिक के बेटे जितेंद्र मलिक तीन बार सांसद की हैट्रिक बना चुके किशन सिंह सांगवान को हराकर सांसद बने। उस समय राजेंद्र मलिक की तूती बोलती थी।
वहीं कद्दावर राजनितिक शख्सियत रहे चौधरी रिजकराम के बेटे जयतीर्थ दहिया भी दो बार राई से विधायक रहे, लेकिन उनके बेटे अर्जुन दहिया राजनीति में स्थापित होने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
बेटे को राजनीति में उतारने की अभी कोई योजना नहीं है। उन्होंने पढ़ाई और पढ़ाई की आगामी तैयारियों के लिए पद से त्यागपत्र दिया है। अभी तो मैं खुद ही चुनाव में उतरूंगा।
- रमेश कौशिक, सांसद, सोनीपत