अतीत के आईने सेः बाहरी ने बनाया फरीदाबाद को भाजपा का गढ़
फरीदाबाद लोकसभा क्षेत्र में एक उपचुनाव सहित कुल 12 बार चुनाव हो चुके हैं। कांग्रेस ने इस सीट पर एक उपचुनाव सहित सात बार और भाजपा ने चार बार चुनाव जीता है।
फरीदाबाद [बिजेंद्र बंसल]। 1977 में बने नए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आए फरीदाबाद लोकसभा क्षेत्र में एक उपचुनाव सहित कुल 12 बार चुनाव हो चुके हैं। कांग्रेस ने इस सीट पर एक उपचुनाव सहित सात बार और भाजपा ने चार बार चुनाव जीता है।
1977 में यहां से जनता पार्टी ने विजय हासिल की थी। भाजपा ने इस सीट पर अपने दम पर पहली बार 1991 का चुनाव ही लड़ा और वह भी बाहरी नेता के दम पर। 1991 में पहली बार भाजपा ने गठबंधन की राजनीति को दरकिनार करते हुए अकेले दम पर चुनाव लड़ा था। हालांकि, तब भाजपा को राज्य में दस लोकसभा सीटों में से एक पर भी विजय हासिल नहीं हुई, मगर कई सीटों पर पार्टी ने ऐसा दमखम दिखाया कि वहां अब वहां भाजपा का गढ़ बन गया।
ऐसी ही एक सीट फरीदाबाद है। इस पर भाजपा ने फरीदाबाद से बाहर का उम्मीदवार खड़ा किया था। असल में तब राज्य में कांग्रेस और जनता दल की तूती बोलती थी। भाजपा को तो पुराने जनसंघ वालों की शहरी पार्टी ही कहा जाता था। कोई भी दमदार नेता आसानी से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने को तैयार नहीं होता था।
1991 में भाजपा ने दिल्ली छतरपुर-महरौली क्षेत्र के गांव फतेहपुर बेरी निवासी ब्रह्म सिंह तंवर को लोकसभा चुनाव लड़ाया। तब भाजपा का शहरों में तो वजूद था, मगर गांवों में कोई खास असर नहीं था। ब्रह्म सिंह तंवर फरीदाबाद चुनाव लड़ने आए तो उनका समर्थन करने भाजपा की स्थानीय इकाई भी उत्साहित नहीं थी।
ऐसे में तंवर ने अपने गांव और आसपास क्षेत्र से 200 प्रमुख लोगों को फरीदाबाद बुलाया। ये 200 लोग पूरे एक महीने तक फरीदाबाद के विभिन्न गांवों और अपनी रिश्तेदारियों में ही रहे और ब्रह्म सिंह तंवर का चुनाव प्रचार जाति-बिरादरी से लेकर हिन्दुत्व के मुद्दे को लेकर किया। तंवर गोत्र के मेवातियों और जाटों में भी गुर्जर बिरादरी की इस सरदारी ने नाता जोड़ लिया। परिणाम स्वरूप ब्रह्म सिंह को चुनाव में 1,03,403 लाख (14.93 फीसद) मत मिले।
हालांकि, इसके बाद 1996 में भी पार्टी ब्रह्म सिंह तंवर को ही फरीदाबाद से उम्मीदवार बनाना चाहती थी, मगर तब तंवर ने दिल्ली की राजनीति से फरीदाबाद लौटने के लिए इन्कार कर दिया था, क्योंकि 1993 के चुनाव में तंवर दिल्ली के महरौली विधानसभा से विधायक बन चुके थे। तंवर के इन्कार के बाद भाजपा ने रामचंद्र बैंदा को उम्मीदवार बनाया, जो लगातार तीन बार पार्टी के टिकट पर सांसद बने। 1991 के चुनाव में कांग्रेस के अवतार भड़ाना 38.84 फीसद मत लेकर चुनाव जीते थे।
1991 के चुनाव में ही हुई थी कृष्णपाल गुर्जर की भाजपा में एंट्री
2014 के चुनाव में भाजपा के टिकट पर 4.67 लाख मतों के अंतर से सांसद बने कृष्णपाल गुर्जर भी 1991 में ही भाजपा में आए थे। ब्रह्म सिंह तंवर बताते हैं कि गुर्जर तब ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व वाले दल में थे। गुर्जर इसके बाद 1996, 2000 और 2009 में भाजपा के टिकट पर फरीदाबाद से विधायक भी बने थे।
एचकेएल भगत से डर गए थे ब्रह्म सिंह
भाजपा नेता ब्रह्म सिंह तंवर 1991 के चुनाव में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एलकेएल भगत के बड़े कद से डर गए थे। बकौल ब्रह्म सिंह तंवर 1989 के चुनाव में उन्हें भाजपा ने तत्कालीन बाहरी दिल्ली की सीट से उम्मीदवार बना लिया, मगर तब पार्टी का इस सीट पर चौधरी अजीत सिंह की पार्टी से समझौता हो गया था। इस सीट पर तारीफ सिंह अजीत सिंह के टिकट पर चुनाव जीते। इसलिए उन्हें बाहरी दिल्ली से अपना नामांकन पत्र वापस ले लिया।
इसके बाद 1991 में बाहरी दिल्ली से पार्टी ने साहिब सिंह को उम्मीदवार बना लिया तो उन्हें पार्टी ने पूर्वी दिल्ली से चुनाव लड़ने को कहा। ब्रह्म सिंह बताते हैं कि पूर्वी दिल्ली में एचकेएल भगत के बड़े कद से वे डर गए और उनके सामने चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया। मगर अगले ही दिन उनके घर हरियाणा प्रदेश भाजपा के तत्कालीन संगठन मंत्री जगदीश मित्तल आए और उन्होंने उनको फरीदाबाद से चुनाव लड़ने का आदेश दिया।
ब्रह्म सिंह कहते हैं कि वे फरीदाबाद से चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे, मगर तब दिल्ली प्रदेश भाजपा का कार्यालय चूंकि 11 अशोक रोड पर ही होता था, इसलिए वहां कुछ बड़े नेताओं ने कड़े शब्दों में जब आदेश दिया तो वे चुनाव लड़ने को तैयार हो गए।