इस लोकसभा सीट का नया है नाम लेकिन इतिहास बहुत पुराना, जानिए इसकी खासियत
महेंद्रगढ़ सीट वर्ष 1971 में इसलिए वीआइपी बन गई थी क्योंकि स्वतंत्रता के महान नायक राव तुलाराम के वंशज राव बिरेंद्र सिंह तब पहली बार यहां से विजयी हुए थे।
नारनौल [महेश कुमार वैद्य]। भिवानी-महेंद्रगढ़ संसदीय क्षेत्र का इतिहास जितना पुराना है नाम उतना ही नया। पहले भिवानी और महेंद्रगढ़ नाम से अलग लोकसभा सीटें थी, लेकिन परिसीमन के बाद भिवानी-महेंद्रगढ़ के संयुक्त नाम से नई सीट सृजित हुई। भिवानी नाम से लोकसभा सीट का अस्तित्व वर्ष 1977 से 2004 तक रहा जबकि महेंद्रगढ़ नाम से लोकसभा सीट का अस्तित्व वर्ष 1957 के दूसरे आम चुनाव से वर्ष 2004 तक रहा।
महेंद्रगढ़ सीट वर्ष 1971 में इसलिए वीआइपी बन गई थी, क्योंकि स्वतंत्रता के महान नायक राव तुलाराम के वंशज राव बिरेंद्र सिंह तब पहली बार यहां से विजयी हुए थे। इसके पूर्व राव बिरेंद्र सिंह हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके थे। इसके बाद तो यह सीट उनके खुद मैदान में उतरने या बेटे के मैदान में उतरने के कारण चर्चित ही रही है।
भिवानी से चौ. बंसीलाल वर्ष 1980 से लगातार तीन बार सांसद रहे। सांसद बनने से पहले चौ. बंसीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके थे। उनकी इंदिरा गांधी से निकटता किसी से छुपी नहीं थी। इंदिरा-संजय-बंसीलाल की तिकड़ी उन दिनों चर्चित थी। वर्ष 2004 के लोस चुनाव तक राव बिरेंद्र सिंह के बेटे राव इंद्रजीत सिंह महेंद्रगढ़ में सक्रिय थे। इसके बाद उन्होंने गुड़गांव लोकसभा को कर्मस्थली बना लिया।
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भाजपा ने इस बार भी चौ. धर्मबीर सिंह को टिकट दिया है जबकि कांग्रेस से बंसीलाल की पौत्री श्रुति चौधरी मैदान में है। लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी से रमेश राव पायलट आ चुके हैं जबकि जजपा से स्वाती यादव की चर्चा है।
लहरों को छोड़कर नेता केंद्रित रहा मिजाज
बंसीलाल की इंदिरा गांधी से निकटता ने हरियाणा के लिए विकास के द्वार खोले थे। बंसीलाल तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों को बदलकर बंसीलाल ने राजनीतिक परिस्थितियों को अपने पक्ष में किया। महेंद्रगढ़ में राव का रुतबा था। चुनाव रामपुरा हाउस व एंटी रामपुरा हाउस होता रहा था। भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट की प्रकृति मिलीजुली रही है। वर्ष 2014 के चुनाव में कांग्रेस के चौ. धर्मबीर सिंह ने एक दिन पहले पार्टी छोड़कर भाजपा का टिकट लिया था और मोदी लहर में बाजी जीती थी। इस बार चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था, लेकिन मोदी-मनोहर का जलवा देखकर फिर टिकट हासिल की है।
चर्चित लोकसभा चुनाव: जब यहां से लड़े बड़े सूरमा
-वर्ष 1977 में भारतीय लोकदल की चंद्रावती ने चौ. बंसीलाल को भिवानी से हराया था।
-वर्ष 1991 में चौ. बंसीलाल ने अपनी अलग हरियाणा विकास पार्टी बनाई।
-वर्ष 1999 में इनेलो के अजय सिंह चौटाला ने बंसी परिवार को झटका देकर जीत दर्ज की।
-वर्ष 2004 के चुनावों में कुलदीप बिश्नोई ने भिवानी से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीता।
-वर्ष 1971 में राव बिरेंद्र ने अपनी विशाल हरियाणा पार्टी से चुनाव लड़कर कांग्रेस को मात दी थी।
-वर्ष 1977 की जनता लहर में राव बिरेंद्र जैसे दिग्गज जनता पार्टी के साधारण कार्यकर्ता मनोहरलाल सैनी से हार गए थे।
-राव विरोध की राजनीति से अहीरवाल में कद्दावर नेता बनकर उभरे कर्नल राम सिंह ने बड़े कद के राव बिरेंद्र सिंह को वर्ष 1991 व 1996 में दो बार मात दी, लेकिन बाद में राव परिवार कर्नल रामसिंह की राजनीति पर भारी रहा।
-वर्ष 1999 में भाजपा ने डा. सुधा यादव को राव इंद्रजीत के मुकाबले में उतारकर सबको चौंका दिया। राव सुधा से मात खा गए।