अम्मां तण्णै ते सीट मिलगी, लेकिन नेता णो सीटां खातिर जोर लगाणां पड़रा
चुनाव की चर्चा बस में बैठने वाले यात्री भी कर रहे हैं। स्टैंड बदलने के साथ-साथ चर्चा का विषय भी लगातार बदल रहा था। जैसा इलाका वैसे लोग यानी वैसे यात्री।
नई दिल्ली [गौतम कुमार मिश्र]। इन दिनों हर तरफ सिर्फ लोकसभा चुनाव को लेकर चर्चा चल रही है। फिर चाहे आप चाय की दुकान पर हों, किसी सफर में हों या किसी बैठकी में हों, चुनाव मुद्दों पर चर्चा जोर-शोर से चल रही है। इसी क्रम में हम भी चढ़ लिए एक बस पर, जो कैर गांव से इंद्रलोक को जा रही थी।
कैर से राजौरी गार्डन तक यह बस पश्चिमी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र तो राजौरी गार्डन चौक को पार करते ही यह बस नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र में प्रवेश कर जाती है। चुनावी मौसम में तो इस रूट पर चलने वाली बसों में केवल सफर करके आप राजनीति का क, ख, ग सीख सकते हैं। स्टैंड बदलने के साथ-साथ बस पर चर्चा का विषय भी लगातार बदल रहा था। जैसा इलाका वैसे लोग यानी वैसे यात्री।
खिड़की की सीट पर बैठे मित्रऊं गांव निवासी सौरव नजफगढ़ स्थित बैंक यह पता करने जा रहे हैं कि दादाजी का पेंशन खाते में आई है या नहीं। बुजुर्ग रामबती यह पता करने जा रही हैं कि डिस्पेंसरी में बीपी की दवा आई या नहीं। इसी गांव के सुमन सरकारी नौकरी पाने की लालसा लिए प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। वहीं सुमन को उत्तम नगर जाना है।
अमूमन इस रूट की बसें कैर गांव से ही भरकर चलती हैं, लेकिन शुक्रवार को इन तमाम यात्रियों की किस्मत अच्छी थी। मित्रऊं गांव जब यह बस पहुंची तो अधिकांश सीटें खाली थीं। सीट पर बैठते ही रामबती के मुंह से सहसा निकल ही गया, भाई पहली बार इस बस में आसानी से सीट मिली है। मन्ने ऐसा लागे माणो लोकसभा की सीट मिल ग्या सै।
रामबती के मुंह से निकली इस बात को सुनकर सभी ठहाके लगाने लगे। ठहाकों के थमते ही बस कंडक्टर ने कहा अम्मां, तण्णै ते सीट मिलगी लेकिन नेता णो सीटां खातिर जोर लगाणां पड़रा। बस बातों ही बातों में नजफगढ़ पहुंच गई। नजफगढ़ में बस यात्रियों से खचाखच भर गई। बस चलते ही एक यात्री ने चुटकी लेते हुए कहा कि भाई अब तू नेता णो माफिक पांच साल बाद ही ड्राइवर नू देख सकेगा, तभी कंडक्टर सीट के पास बैठे एक यात्री ने कहा भाई अब वो जमाना लद गया जब नेता केवल चुनाव के समय ही नजर आते थे और फिर भी वोट बटोर लेते थे। अब तो जमाना बदल गया है, पब्लिक उसे ही वोट देगी, जो जनता के सुख दुख में शरीक होगा।
यह बात कंडक्टर साहब को इस कदर पसंद आई कि उन्होंने उस यात्री को अपने बगल वाली सीट, जिसका इस्तेमाल आमतौर पर कंडक्टर अपनी बैग रखने के लिए करते हैं, बैठने के लिए दे दिया। सीट मिलने से गदगद इस यात्री ने उसके बाद राष्ट्रवाद का राग छेड़ दिया। फिर क्या था, आसपास मौजूद सभी लोग चर्चा में शामिल हो गए। बस स्टैंड की ही तरह कभी राष्ट्रवाद तो कभी बेरोजगारी, कभी महिला सुरक्षा, कभी गरीबी का मुद्दा बदलता रहा। हर मुद्दे पर लोग अपनी राय रखते रहे।
द्वारका मोड़ पर बैठी भारती कॉलेज की एक छात्र अपनी बगल वाली सीट पर बैठी अपनी हमउम्र लड़की से चर्चा करते हुए कह रही थी कि इस बार महिला सुरक्षा एक अहम मुद्दा है। महिलाओं को अधिक से अधिक सीट पर टिकट मिलनी चाहिए। पास में बैठी एक महिला ने कहा कि उम्मीद पर दुनिया कायम है। देश में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री के पद तक महिलाएं पहुंच चुकी हैं, लेकिन अभी भी महिलाओं को वह दर्जा हासिल नहीं हुआ है जो पुरुषों को हासिल हुआ है।
पास में बैठे एक बुजुर्ग की बातों से लग रहा था कि वे किसान हैं। वे किसी से फोन पर सरसों व गेहूं के समर्थन मूल्य के बारे में चर्चा कर रहे थे। वे कह रहे थे कि इस बार शायद किसानों की सुनी जाए। कांग्रेस हो या भाजपा अब किसानों की बात सभी कर रहे हैं। बस जब उत्तम नगर लाल बत्ती के पास पहुंची तो ड्राइवर के पास खड़े यात्री उनकी ओर बड़ी उम्मीद से देखने लगे।
एक यात्री ने अनुरोध करते हुए कहा उस्ताद जी, जरा लाल बत्ती के पास दरवाजा खोल देना। ड्राइवर ने नेताओं की तरह डिप्लोमेटिक अंदाज में कहा, देखता हूं। इससे पहले कि बस लाल बत्ती के पास पहुंचती, बस जाम में फंस गई। ड्राइवर बोला, देश की स्थिति जाम की तरह है, हर कोई खुद आगे निकलना चाहता है। हर किसी को सामने की सड़क नजर आती है, पीछे का हिस्सा कोई नहीं देखता, यदि हम थोड़ा अपने पीछे के लोगों के बारे में सोचें तो आधी से अधिक समस्याएं खत्म हो जाएंगी। देश तरक्की करने लगेगा।
इससे पहले कि ड्राइवर की बातें रुकती, गाड़ियां धीरे धीरे आगे सरकनी शुरू हो गईं। लाल बत्ती के पास ड्राइवर ने जैसे ही गेट खोला, आधे से अधिक यात्री बस से उतर गए। लाल बत्ती के खत्म होते ही फिर बस ने रफ्तार पकड़ ली। फिर क्या था, एक बार नए यात्री और नए मुद्दे पर चर्चा का दौर शुरू हो गया।