Move to Jagran APP

दिल्ली से सटी इस सीट पर इन धुरंधरों की प्रतिष्ठा दांव पर, जातिगत वोट बिगाड़ सकते हैं खेल

गाजियाबाद में इस बार मुकाबला जोरदार है। खासकर वैश्य मतों में तगड़ी सेंधमारी की संभावना है वहीं ब्राह्मणों का झुकाव भी बिरादरी की ओर लाजिम तौर पर होगा।

By Mangal YadavEdited By: Published: Thu, 28 Mar 2019 05:08 PM (IST)Updated: Thu, 28 Mar 2019 05:08 PM (IST)
दिल्ली से सटी इस सीट पर इन धुरंधरों की प्रतिष्ठा दांव पर, जातिगत वोट बिगाड़ सकते हैं खेल
दिल्ली से सटी इस सीट पर इन धुरंधरों की प्रतिष्ठा दांव पर, जातिगत वोट बिगाड़ सकते हैं खेल

गाजियाबाद[मनीष शर्मा]। लोकतंत्र के महापर्व को लेकर गाजियाबाद में भारतीय जनता पार्टी के सिपहसालारों का उत्साह चरम पर है। यह आत्मविश्वास पिछले लोकसभा चुनाव में मिली तकरीबन साढ़े पांच लाख से ज्यादा मतों से मिली जीत के बूते हैं। इस उत्साह और आत्मविश्वास के आगे अगर अति भी जोड़ दिया जाए तो कतई गलत नहीं होगा। अति की इति खतरनाक हो सकती है यह भाजपा को ध्यान रखना होगा। क्योंकि इस बार मंजिल पिछली दफा की तरह आसान नहीं है।

loksabha election banner

इस बार मुकाबला जोरदार है। खासकर वैश्य मतों में तगड़ी सेंधमारी की संभावना है, वहीं ब्राह्मणों का झुकाव भी बिरादरी की ओर लाजिम तौर पर होगा। ऐसे में बिरादरी में सेंध रोकने के भगवा क्षत्रपों की प्रतिष्ठा दांव पर रहेगी। जिले की पांचों विधानसभाओं में कमल खिलखिला रहा है। हालांकि गाजियाबाद की चार विधानसभाएं साहिबाबाद, गाजियाबाद, मुरादनगर और लोनी ही गाजियाबाद लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है।

वैश्य समुदाय के वोट पर नजर

हापुड़ की धौलाना इससे जुड़ी है, लेकिन वहां हाथी चिंघाड़ रहा है। यह गाजियाबाद के भौगोलिक परिदृश्य की बात थी, राजनीतिक परिदृश्य पर गौर करें तो भाजपा का प्रतिद्वंद्वियों से कांटे का मुकाबला है। बसपा और रालोद के गठबंधन के साथ चुनाव मैदान में उतरी सपा के सिंबल पर पूर्व विधायक सुरेश बंसल प्रत्याशी हैं। 25 साल तक दादरी नगर पालिका के अध्यक्ष रहे सुरेश बंसल की वैश्य वर्ग में तगड़ी पकड़ मानी जाती है।

व्यवहारकुशल बंसल अगर वैश्यों के बीच अपनी मान्यता को मतों में तब्दील कर ले जाएं तो भाजपा के लिए मुसीबत हो सकती है। वैश्य मतों के इसी भटकाव को रोकने के लिए राज्यसभा सदस्य अनिल अग्रवाल, सूबे के खाद्य और रसद आपूर्ति राज्यमंत्री अतुल गर्ग पर पार्टी की निगाह टिकी है। जिले से वैश्य को राज्यसभा भेजने के पीछे भी भाजपा की रणनीति चुनाव में वैश्यों को साधे रखने की थी।

अतुल गर्ग और अनिल अग्रवाल की प्रतिष्ठा दांव पर

कुल मिलाकर देखें तो वैश्य वर्ग में सपा-बसपा गठबंधन प्रत्याशी जितने मजबूत साबित होंगे भाजपा के भीतर अतुल गर्ग और अनिल अग्रवाल उतने ही कमजोर आंके जाने तय हैं। यही समीकरण साहिबाबाद विधायक सुनील शर्मा और महापौर आशा शर्मा के लिए बनते दिख रहे हैं, जिनके कंधों पर ब्राह्मणों को पक्ष में करने का जिम्मा है। गाजियाबाद में ब्राह्मणों मतों की बहुलता है। इसी के चलते कांग्रेस ने डॉली शर्मा को प्रत्याशी बनाया, जो निकाय चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर चुकी हैं।

दलित मतदाताओं के रुख से महासमर हुआ दिलचस्प

पिछले चुनाव में भाजपा की रिकार्ड मतों से जीत इस बात की तस्दीक करने के लिए काफी है कि वीके सिंह को सर्व समाज के वोट मिले थे। दलित मत भी। लोकसभा क्षेत्र में दलित वोटबैंक के सापेक्ष गत चुनाव में एकमात्र ब्राह्मण प्रत्याशी होने के बावजूद पौने दो लाख से भी कम मतों के साथ बसपा का प्रदर्शन इसकी पुष्टि कर रहा है।

समाजवादी पार्टी ने खेला वैश्य कार्ड

इनसे पहले सपा ने भी सुरेंद्र कुमार मुन्नी को ब्राह्मण कार्ड खेलकर बिरादरी पर एकाधिकार की कोशिश की थी, लेकिन कांग्रेस के भी ब्राह्मण प्रत्याशी उतारने पर बैकफुट पर आई सपा ने वैश्य का ट्रंप कार्ड खेल दिया। सुरेंद्र मुन्नी का टिकट कटने के बाद डॉली शर्मा ब्राह्मणो की पहली पसंद रहनी तय हैं।

हालांकि इस बार नजारा बदला-बदला सा है। चुनावी रणभेरी के बीच शुरू हुए भाजपा के अभियान में दलितों को सही मंच नहीं मिलने की आवाज सुनाई देने लगी है। भीम आर्मी भी गुल खिलाने की जुगत में है। ऐसे में दलित मतदाताओं का रुख चुनाव को और दिलचस्प बनाएगा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.