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Lok Sabha Election 2019 : सपा, बसपा गठबंधन और कांग्रेस के बीच उलझे मुस्लिम वोटर

लोकसभा चुनाव में सभी प्रत्याशी जीत को सुनिश्चित करने के लिए प्रयासरत हैं। वहीं मुस्लिम मतदाता अभी भी उलझन में हैं। इसे लेकर प्रत्याशियों में बेचैनी की स्थिति बनी हुई है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Fri, 10 May 2019 12:47 PM (IST)Updated: Fri, 10 May 2019 12:47 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019 : सपा, बसपा गठबंधन और कांग्रेस के बीच उलझे मुस्लिम वोटर
Lok Sabha Election 2019 : सपा, बसपा गठबंधन और कांग्रेस के बीच उलझे मुस्लिम वोटर

फरहत खान, प्रयागराज : 17 वीं लोकसभा के लिए पांच दौर का मतदान पूरा हो चुका है। अब 12 मई को छठें दौर के लिए वोट डाले जाएंगे। दलों के स्टार प्रचारक मैदान में हैं। अपनी नीतियों के साथ तो जमीन पर जाति और धर्म भी अहम हो चला है। कुल मिलाकर चुनावी पारा चरम पर पहुंच गया है। क्लाइमेक्स का इंतजार है और यह सामने आएगा 23 मई को। मंडल की इलाहाबाद, फूलपुर और प्रतापगढ़ संसदीय सीट पर मुस्लिम मतदाताओं का रुझान क्या है, इसे भांपने की कोशिश हर दल कर रहे हैं। इधर यह समुदाय है कि असमंजस में है कि किधर जाएं? 

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इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र में सवा दो लाख व फूलपुर में पौने तीन लाख मतदाता

सबसे पहले बात प्रयागराज जिले की। यहां दो संसदीय सीट है। इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब सवा दो लाख है और फूलपुर संसदीय सीट में मुस्लिम मतदाता पौने तीन लाख के आसपास हैं। इन वोटों पर सपा-बसपा गठबंधन के साथ कांग्र्रेस की भी नजर तो है ही, भाजपा भी तीन तलाक के मसले के भरोसे वोट पाने की जुगत में है। उधर मुस्लिम यही सोच रहे हैं कि उनकी अच्छी-खासी संख्या होने के बावजूद चुनाव में उनके मुद्दे पीछे छूट जाते हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही है। वोट बैंक की सियासत हावी है। 

शहर उत्तरी, शहर पश्चिमी विस सीट  फूलपुर संसदीय क्षेत्र का हिस्सा

लोकसभा सीट की भौगोलिक सीमा कुछ ऐसी है कि शहर का काफी हिस्सा फूलपुर लोकसभा क्षेत्र में आता है। शहर उत्तरी और शहर पश्चिमी विधानसभा सीट  फूलपुर संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है। इसमें से शहर पश्चिमी विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम वोटरों की संख्या ठीक-ठाक है। पांच बार अतीक अहमद इस क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं। अतीक को एक बार फूलपुर संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित होने का भी मौका मिला है। कांग्रेसी और सपाई दोनों ही यहां एक दूसरे को पछाड़ कर मुस्लिम वोट पाने की जुगत में हैं तो भाजपा इस खुशफहमी है कि तीन तलाक के नाते उसे भी वोट मिलेंगे।

 शहर दक्षिणी, यमुनापार व गंगापार के मुस्लिम भी उलझन में

इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र के हिस्से शहर दक्षिणी से परवेज अहमद टंकी समाजवादी पार्टी से विधायक रह चुके हैं। यहां के मुस्लिमों में भी उलझाव के हालात हैं। यमुनापार और गंगापार के मुस्लिम भी कुछ इसी तरह की उधेड़बुन में दिख रहे हैं। हालात यह हैं कि सपा, बसपा और कांग्रेस के नेता अपनी हनक दिखाने के लिए प्रत्याशी को क्षेत्र में घुमाकर जीत का दम भरवा रहे हैं पर आम वोटर पत्ते नहीं खोल रहा। इसलिए जहां राजनीतिक दल और उनके प्रत्याशी बेचैन हैं, वहीं मुस्लिम वोटर भी उलझन में हैं।

वोटों का बिखराव रोकने की मशक्कत 

वैसे चुनावी बयानबाजी के ताजे दौर में मुस्लिमों में वोटों के बिखराव को लेकर फिक्र है। आलिम, बुजुर्ग और मुस्लिम नेता इस कोशिश में लगे हैं कि वोटों का बिखराव न हो। लेकिन यह तो 23 मई को परिणाम आने पर ही पता चलेगा कि उनकी कोशिश कितनी सफल हुई। 

छुटभैये नेता खेल रहे खेल

मुस्लिम वोट बैंक की सियासत गर्म होने पर छुटभैये नेता अपने खेल में जुट गए हैं। एकतरफा मुस्लिम मत दिलाने के नाम पर तमाम छुटभैये नेता प्रत्याशियों से तरह तरह की सुविधाएं ले रहे हैं। वोट भले ही उनके कहने पर न मिले, लेकिन वह अपना उल्लू सीधा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।

तीन तलाक मुद्दा नहीं 

तीन तलाक पर मोदी सरकार का रुख मुस्लिम महिलाओं को कितना पसंद, नापसंद आया है, यह बात इस चुनाव में मुद्दा नहीं है। वैसे ऐसा नहीं है कि इस मुद्दे पर घरों में चर्चा नहीं होती। बहादुरगंज की शमीमा बेगम कहती हैं कि तीन तलाक पर मोदी सरकार की पहल अच्छी है। कुछ तो डर पैदा हुआ ही है तत्काल तीन बार तलाक-तलाक-तलाक कहने वालों में। हालांकि वह यह नहीं बतातीं कि उनका वोट किसको जाएगा।

विकास कार्यों के लिए सराहना 

ऐसा नहीं है कि सभी मुसलमानों का एजेंडा सिर्फ भाजपा को हराना है। कुंभ के दौरान प्रयागराज में हुए विकास कार्यों से यह समुदाय भी खुश है। कहता है कि पहली बार काम दिख रहा है। सांप्रदायिक तनाव इत्यादि की घटनाएं नहीं होना भी इस समाज के लिए सुकूनदेह है। करेली निवासी इमरान कहते हैं कि जिसने जो अच्छा किया है, वह तो कहना ही चाहिए। जीत हार और वोट किसे देना है, यह निजी मामला है। इसमें किसी की दखल नहीं होनी चाहिए। जानसेनगंज के इसरार कहते हैं कि भाजपा के नाम पर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्र्रेस अब तक मुसलमानों को डराती और बरगलाती ही रही हैं। यह नहीं होना चाहिए।  

प्रतापगढ़ में भी भ्रम की स्थिति 

प्रतापगढ़ में करीब 10 फीसद मतदाता मुस्लिम हैं। उनका वोट अहम होता है जीत हार में। वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में इस संसदीय क्षेत्र से आसिफ सिद्दीकी बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी थे और 2,07, 567 वोट लेकर दूसरे नंबर पर थे। अपना दल-भाजपा गठबंधन के कुंवर हरिवंश को जीत मिली थी। हरिवंश को 3,75, 789 वोट मिले थे। दलित मुस्लिम समीकरण के सहारे आसिफ ने जीत की आस लगाई थी, लेकिन यह पूरी नहीं हुई। अभी तक जैसा माहौल है उसमें यहां मुस्लिम मतों के किसी एक प्रत्याशी विशेष के पक्ष में पूरी तरह जाने के आसार नहीं दिखाई दे रहे हैं। 

मुस्लिमों को अपनी बेहतरी के लिए मतदान करना चाहिए : मौलाना नादिर

मौलाना नादिर हुसैन कहते हैं कि मुस्लिमों को अपनी बेहतरी के लिए मतदान करना चाहिए। किसी दल के चक्कर में या फिर किसी के बहकावे में आकर वोट नहीं डालना चाहिए। जो प्रत्याशी अच्छा लगे, जिससे विकास की उम्मीद हो, उसे ही वोट करें। एकजुट होकर वोट करना ही फायदेमंद है। 

समझदारी के साथ करना चाहिए वोटिंग : राशिद

राशिद फरीदी बोले कि आज जिस तरह की राजनीति है उसमें मुस्लिमों के मुद्दे उठाए ही नहीं जा रहे हैं। मुस्लिमों को भी किसी दल के डर से वोटिंग नहीं करनी चाहिए। समझदारी दिखाते हुए वोट करना चाहिए, ताकि जीतने के बाद वह प्रतिनिधि मुस्लिम हित में आवाज उठा सके।

मुस्लिम समाज के अहम मुद्दे

नारी सशक्तीकरण

समाज की महिलाएं बड़ी संख्या में बीड़ी उद्योग से जुड़ी हैं। अक्सर वह टीबी की चपेट में आ जाती हैं। इसलिए टीबी के सस्ते अथवा मुफ्त इलाज की सुविधा हो। 

तालीम

शिक्षा सस्ती होनी चाहिए। तकनीकी शिक्षा का इंतजाम सरकारें करें। 

रोजगार

मुस्लिम समाज के युवा रोजगार से जुड़ें, इसे सुनिश्चित किया जाना चाहिए। 

आवास

मुस्लिम समाज के लोगों को आवासीय योजनाओं में उपेक्षित नहीं किया जाना चाहिए।

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