LokSabha Election 2019: मठ-मंदिर और मेला, मुसाफिर भटक रहा अकेला
हरियाणा में मतदान की तारीख नजदीक आते ही मुद्दों ने भी जोर पकडऩा शुरू कर दिया है। जहां आम लोगों में ईमानदार सरकार का संतोष है तो सर्जिकल स्ट्राइक का गर्व भी। पढि़ए ये रिपोर्ट।
पानीपत, [सतीश चंद्र श्रीवास्तव]। चैत्र का चौथा और अंतिम बुधवार। पाथरी गांव का माता मंदिर। पानीपत शहर से 40 किलोमीटर दूर। यहां रात 12 बजे से ही मेला और रेला है। हम चुनावी गर्मी में माहौल समझने निकले थे। चारों तरफ अव्यवस्था पर आस्था भारी मिली। आसपास के जिलों के लाखों श्रद्धालुओं का तांता। मान्यता ऐसी कि सवा माह के नवजात से नवविवाहित जोड़ों तक, सभी माता को समर्पित। गटजोड़े की जात (पूजा) ताकि वैवाहिक जीवन सुखी रहे। ... और मनोकामना पूरी हुई तो जो चाहा, भेंट चढ़ाया। गुलगुले, बतासे, लड्डू, नारियल, चुनरी, चोला, मूर्गा-सूअर - भेंड़ ...। अब आषाढ़ का इंतजार रहेगा।
पंचायती मंदिर के मुख्य महंत जयभगवान जाति से धानक हैं। 100 साल की उम्र होने पर पिता ने गद्दी सौंपी। 50 वर्ष से सेवा में लगे हैं। 36 बिरादरी आशीर्वाद लेती है। इसमें पंडित भी हैं और जाट भी। वे मानते हैं कि कोई भी गद्दी पर बैठ जाएगा, माता उसे ही सामर्थ्यवान बना देगी। यही संस्कृति है। मनुष्य नहीं, मान्यता महत्वपूर्ण है। यात्रा में साथी पानीपत के ब्यूरो प्रभारी अरविंद झा और वरिष्ठ फोटो पत्रकार राजेंद्र फोर भी चढ़ावे की बदइंतजामी से चिंतित रहे। गुलगुले-नारियल - चुनरी को पैरों के नीचे आने से कैसे बचाएं।
सांसद के खिलाफ बगावती तेवर
अप्रैल के महीने में आकाश में बादल भले ही गर्मी से राहत दे रहे हों, किसान बेचैनी में है। गेहूं पककर तैयार है। आंधी-ओले-बारिश से तबाही का डर। सोना खाक हो जाएगा। दो पल बात की तो सब समझ आ गया। कुछ वैसी ही आशंका, जो चुनाव परिणाम से पहले होती है। सोनीपत से आए 30 वर्षीय बसाऊ शर्मा केंद्र में तो नरेंद्र मोदी की सरकार चाहते हैं, पर पांच साल गायब रहे अपने सांसद रमेश कौशिक के खिलाफ बगावती हैं। बताते हैं, गांव-गांव में सांसद का विरोध हो रहा है। बोले, जाति से पंडित हूं पर मैं भी किसी हालत में कौशिक को वोट नहीं दूंगा।
ईमानदार सरकार के अलावा क्या चाहिए
मेले से बाहर निकले तो गन्ने का रस बेच रहे ईश्वर थोड़ी राहत में दिखे। गर्मी कम होने से बिक्री भी कम। उनका गांव खेड़ी भी सोनीपत जिले में है। चुनावी चर्चा छेड़ी तो बोल पड़े, पहली बार एससी-बीसी बच्चों की सरकारी नौकरी बिना रिश्वत के लगी है। सरकार से ईमानदारी के सिवा और क्या चाहिए? हमने छेड़ा, खाते में 15 लाख तो नहीं आए? ठोस जवाब मिला, खाते तो खुल गये, पैसे तो अपनी मेहनत की कमाई से ही जमा कराने होंगे।
कामयाब हुईं योजनाएं
पानीपत के ऊझा गांव से मेले में पहुंचे 50 वर्षीय सुभाष वाल्मीकि इस बात से खुश हैं कि शौचालय की योजना सच में कामयाब हो गई। सींख गांव पहुंचने पर जितेंद्र नंबरदार ने सर्जिकल स्ट्राइक से गौरव को चुनाव परिणाम के लिए महत्वपूर्ण बताया। साथ ही जोड़ा, गांव के 10 बच्चों को नौकरी मिली है। फार्म भरने में बमुश्किल 150 रुपये खर्च किए थे। यह सींख गांव वही है जहां महाभारत के चार द्वारपालों में एक मचक्रुक यक्ष तैनात थे। यहां संदीपन ऋषि का एक आश्रम भी था। महाभारत के वन पर्व में इसका उल्लेख है। मान्यता है कि यहां एक रात निवास से सौ गायों के दान का फल मिलता है। पाथरी माता के मंदिर की नींव इसी गांव के सिंहा जाट ने रखी थी। आज भी यहां नाथों के डेरे की 300 एकड़ जमीन है। यहां के महंत कृष्णदास बताते हैं, 24 वर्षों की तपस्या के बाद भी अकेला हूं। डेरे की आय को हाथ भी नहीं लगाता। अपनी-अपनी आस्था, अपना-अपना विश्वास।