Lok Sabha Election 2019: मोदी वाद हैं, मोदी ही प्रतिवाद हैं, मोदी ईमानदार चौकीदार हैं
लोकसभा के चुनाव में राष्ट्रीय हितों के लिए समर्पित स्वार्थरहित विचारों से अनुप्रमाणित चरित्रवान लोगों के दल को चुनना श्रेयस्कर होता है।
हृदयनारायण दीक्षित। भारत में आम चुनाव का लोकतंत्री महोत्सव है। राजनीतिक दल व प्रत्याशी अपने पक्ष में मतदान की अपील कर रहे हैं। भारत के लोगों ने संसदीय जनतंत्र अपनाया है। एक आदर्श शासन प्रणाली है। जैसे व्यक्ति प्राणवान सत्ता है, शरीर, मन, बुद्धि और प्राण आत्मा का धारक है वैसे ही जनतंत्र का शरीर है दलतंत्र। सत्ता की इच्छा दलतंत्र का मन है, सत्ता प्राप्ति के उपाय और अभियान दलतंत्र की बुद्धि हैं। राष्ट्रहित का संवर्द्धन, ध्येय व विचार दलतंत्र की प्राण-आत्मा है। यहां तरह तरह के दल हैं। भाजपा, माकपा, भाकपा जैसे दल विचार आधारित कार्यकर्ता आधारित हैं। अनेक दल व्यक्तिगत प्रापर्टी पार्टी हैं। अनेक दल दो-ढाई जिलों तक ही सीमित है पर इनके भी राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। चुनाव के कारण बेमेल गठबंधन हैं। काफी मनोरंजक है हमारा दलतंत्र। चुनाव के मेले में सबकी दुकानें हैं। मतदाता के विकल्प सीमित नहीं हैं।
वोट के समय तमाम प्रश्न उठते हैं- क्या वोट किसी राष्ट्रीय दल को ही दें? क्या राष्ट्रीय संदर्भ में नीतियां बनाने वाले दल को ही प्राथमिकता दें? क्या घरेलू लघु उद्योग जैसी पार्टियों को वोट दें? क्या उम्मीदवार की जाति गोत्र आदि का ध्यान रखें? क्या जाति आधारित दलों को वोट दें? एक प्रश्न मनपसंद दल के साथ मनपसंद उम्मीदवार की क्षमता, योग्यता जांचने का है। क्या उम्मीदवार की पात्रता न जांच कर दल को ही वरीयता दें?
1957 के आम चुनाव के पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक एमएस गोलवलकर ने खूबसूरत टिप्पणी की थी, ‘इस संबंध में दो प्रमुख सिद्धांत उतने ही पुराने हैं जितनी विधायिका हेतु आम चुनाव की लोकतांत्रिक प्रणाली। इनमें से एक है पंडित नेहरू का प्रतिपादन कि व्यक्ति के गुण दोष भूलकर दल को चुना जाए। दूसरा चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य का कथन है कि दल की उपेक्षा कर उम्मीदवार के चरित्र का आकलन किया जाय। राजा जी ने ठीक कहा है क्योंकि अंतत: जनप्रतिनिधियों का चरित्र ही विधायिका के अंदर बाहर प्रकट होता है किंतु दोनों विचार आंशिक रूप से ही सत्य हैं। दोनों विचारों को साथ लेना होगा। राष्ट्रीय हितों के लिए समर्पित, स्वार्थरहित विचारों से अनुप्रमाणित चरित्रवान लोगों के दल को चुनना होगा।
जनतंत्र में दल का विशेष महत्व होता है। विचारनिष्ठ दलों के कार्यकर्ता विचार के पक्ष में अपनी निजता का स्वेच्छया त्याग करते हैं। दल अपने सभी सदस्यों की सामूहिक इच्छा का ‘एकरूप’ होते हैं। वे अपने संकल्प पत्र या घोषणा पत्रों के माध्यम से राष्ट्रीय विकास, सुशासन, अर्थनीति आदि विषयों पर दृष्टिकोण रखते हैं। भारतीय मतदाता अनुभवी हैं। समाचार माध्यमों व जनअभियानों से उनकी जानकारियां समृद्ध हैं। इस चुनाव में सत्ता के दावेदार सभी दल पहले सत्ता में रह चुके हैं। उनके द्वारा पूर्व में किए गए वायदे और सत्ता के दौरान किए गए कार्य भी मतदाता की जानकारी में हैं। उनकी कथनी और करनी के फर्क भी सुस्पष्ट हैं। मनपसंद प्रत्याशी बनाम मनपसंद दल की बहस विशेष विचारणीय है।
अच्छा जनप्रतिनिधि क्षेत्र के साथ राष्ट्रहित भी साधता है। आदर्श दल सत्ता में आकर पूरी शक्तिके साथ राष्ट्र सर्वोपरिता के लिए काम करता है। विपक्ष में रहते हुए वह राष्ट्रीय प्रश्नों पर वैकल्पिक नीति व कार्यक्रम प्रस्तुत करता है। पं. दीनदयाल उपाध्याय का कथन है कि ‘जनता के लिए काम करने वाले राजनीतिक दल जनता के बल पर खड़े होते हैं। जनता को उन्हें शक्ति प्रदान करनी चाहिए।’
लेकिन 2019 का आम चुनाव भिन्न है। भारतीय दलतंत्र के बड़े भाग ने पीएम मोदी को हटाने का ही लक्ष्य घोषित किया है। उन्होंने स्वयं अपने नीति, कार्यक्रम और घोषणा पत्र बेकार कर दिए हैं। मोदी हटाओ ही उनका उद्घोष है। भाजपा और विपक्षी दलों के बीच मोदी ही असली मुद्दा हैं। मोदी पर ही बहस है। मोदी वाद हैं, मोदी ही प्रतिवाद हैं। मोदी ईमानदार चौकीदार हैं। विपक्ष कहता है कि चौकीदार चोर है। सब तरफ मोदी बनाम मोदी। मोदी राष्ट्रीय बेचैनी हैं। विपक्ष नेतृत्वविहीन है। भाजपा विचारनिष्ठ कार्यकर्ताओं व मोदी के नेतृत्व में अग्रसर हैं। वोट किसे? वोट क्यों? जैसे सभी प्रश्नों का उत्तर हैं मोदी। ऐसा पहली बार हो रहा है। नामुमकिन अब मुमकिन है। मोदी फिर से। किसे चुनें? एमपी देखें या पीएम? पीएम सामने हैं? दूसरे के पास पीएम हैं ही नहीं। हरेक प्रश्न का उत्तर हैं मोदी।
(विधनसभा अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश)