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Lok Sabha Election 2019: चुनाव का केंद्र रहे पीएम मोदी, कांग्रेस को भारी पड़ा व्यक्तिगत हमला

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की प्रधानमंत्री मोदी पर व्यक्तिगत हमले करने की रणनीति भी पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ी है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Fri, 24 May 2019 01:28 AM (IST)Updated: Fri, 24 May 2019 01:28 AM (IST)
Lok Sabha Election 2019: चुनाव का केंद्र रहे पीएम मोदी, कांग्रेस को भारी पड़ा व्यक्तिगत हमला
Lok Sabha Election 2019: चुनाव का केंद्र रहे पीएम मोदी, कांग्रेस को भारी पड़ा व्यक्तिगत हमला

भवदीप कांग। आम चुनाव के नतीजों से एक बात शीशे की तरह साफ है कि एक शांत, अदृश्य मोदी लहर देश भर में इस कदर छाई कि सबकुछ उसमें समाहित हो गया और नरेंद्र मोदी इंदिरा गांधी के बाद ऐसे पहले प्रधानमंत्री बन गए जिन्होंने अपने दम पर पूर्ण बहुमत के साथ लगातार दूसरा कार्यकाल हासिल किया। मतदाताओं ने स्थिरता और निरंतरता के पक्ष में वोट जरूर दिया, लेकिन सबसे बढ़कर उसने मोदी को चुना। यहां तक कि इस मोदी सुनामी-2.0 में मजबूत गठबंधन एवं क्षेत्रीय दल भी टिक नहीं सके।

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मोदी के इस ज्वार में उत्तर प्रदेश में सपा- बसपा, महाराष्ट्र में कांग्रेस-राकांपाऔर बिहार में राजद-कांग्रेस गठबंधन के पांव उखड़ गए। आखिर वह कौन-सी रहस्यमयी शक्ति थी, जो जमीन पर काम कर रही थी? कुछ दिन पूर्व भाजपा के एक महासचिव ने मुझसे कहा था। आप आंकड़ों पर मत जाइए, कैमिस्ट्री देखिए! उनका आकलन था कि देश के आमजन के साथ मोदी की जो कैमिस्ट्री है, जाति-आधारित गठबंधन उसके मुकाबले कहीं नहीं ठहरते। और देखिए, आज उनकी बात सही साबित हो गई।

बालाकोट एयर स्ट्राइक, केंद्र में स्थिर सरकार की दरकार, विपक्ष का एकजुट न हो पाना, कांग्रेस की चौकीदार चोर है के इर्दगिर्द बुनी गई मूर्खतापूर्ण रणनीति जैसे तमाम कारकों को एक साथ रखते हुए भी इस बात की व्याख्या नहीं की जा सकती कि आखिर किस तरह मोदी फैक्टर सत्ता विरोधी रुझान, बेरोजगारी, किसानों की नाराजगी और नोटबंदी एवं जीएसटी की वजह से उपजे असंतोष को थामने में कामयाब रहा। यह मोदी का आम मतदाता के साथ सीधा जुड़ाव ही है, जिसकी वजह से ऐसे नतीजे आए।

इस तरह का जुड़ाव किसी भी सांगठनिक ढांचे (चाहे वह पार्टी हो या सरकार) से मुक्त होता है और इसीलिए इसे आसानी से पहचाना भी नहीं जा सकता। यहां तक कि खुद पीएम मोदी इन चुनाव नतीजों को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थे, वह भी तब जबकि पहला वोट भी नहीं पड़ा था। अप्रैल के पहले हफ्ते में ही उन्होंने अपने सलाहकारों से आगामी एनडीए सरकार की पहले 100 दिन की कार्ययोजना तैयार करने के लिए कहा था। इन चुनाव नतीजों का प्रभाव दुनियाभर में महसूस किया जाएगा। इसके भू-राजनीतिक, सांस्कृतिक व आर्थिक प्रभाव दक्षिण एशिया का परिदृश्य बदल देंगे। भारत में इन नतीजों के बाद वाम से लेकर दक्षिण तक समूचा राजनीतिक स्पेक्ट्रम उलट-पुलट हो जाएगा।

आरएसएस का मोदी को पूरे दिल से समर्थन करना और मोदी-केंद्रित मुहिम चलाना सही साबित हुआ। आज यदि कोई ऐसी मीम बनाता है जिसमें श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय स्वर्ग से मोदी पर फूल बरसा रहे हैं तो उसकी भावनाएं समझी जा सकती हैं। मोदी ने वह कर दिखाया है जो मुखर्जी ने 1951 में कहा था। उस वक्त नेहरू ने कहा था कि वे जनसंघ को कुचल देंगे। मुखर्जी ने जवाब दिया था- मैं इस कुचलने वाली मानसिकता को कुचल दूंगा। कहना होगा कि आज कांग्रेस के सत्ता में वापसी के मंसूबे कुचल चुके हैं।

हालांकि उसने अपनी ओर से पूरी कोशिश की। युवाओं के लिए लाखों नौकरियां, किसानों के लिए अलग से बजट और गरीबों के लिए न्यूनतम आय योजना समेत कई लुभावने वादे किए। लेकिन कांग्रेस की विश्वसनीयता इतनी गिर चुकी है कि मतदाताओं ने उसके वादों पर यकीन नहीं किया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की प्रधानमंत्री मोदी पर व्यक्तिगत हमले करने की रणनीति की भी पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ी। वर्ष 2002 से ही देखा गया है कि मोदी पर जितने हमले किए जाते हैं, वह उतने ही मजबूत होकर उभरते हैं।

आगामी हफ्तों में कांग्रेस संगठन के भीतर उठापठक मचेगी। उसमें मजबूत नेतृत्व की जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही है। राहुल गांधी एक अप्रभावी नेता साबित हो चुके हैं। उनका इस चुनाव में एकमात्र अक्लमंदी भरा कदम केरल के वायनाड से चुनाव लड़ना रहा, ताकि वे संसद में अपनी एक सीट सुनिश्चित कर सकें। इस बात की पूरी संभावना है कि अब पार्टी प्रियंका की ओर रुख करे। अन्यथा राज्य स्तर पर इसे बगावत का सामना करना पड़ सकता है। अगर मोदी महारथी हैं तो अमित शाह उनके मजबूत सारथी हैं, जिन्होंने पूर्वी भारत के नए क्षेत्रों में पार्टी का परचम लहराने का भरोसा दिलाया और ऐसा किया भी।

अब देश के सामने आगे कुछ मुश्किल चुनौतियां हैं। मोदी इन चुनौतियों से अवगत हैं और अब जबकि वे वह एक बार फिर स्पष्ट जनादेश हासिल कर चुके हैं, लिहाजा अपने ढंग से इन तमाम मसलों से निपटने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। नई एनडीए सरकार द्वारा हनीमून पीरियड में ही ऐसे व्यापक नीतिगत निर्णय लिए जा सकते हैं, जिससे आर्थिक सुधारों का एक नया चक्र शुरू हो। 

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)

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