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मिशन 2019: विपक्ष से लड़ने की बजाय आपस में ही उलझ रहे महागठबंधन के घटक दल

विपक्ष से भिड़ने की बजाय अाजकल महागठबंधन दल के सदस्य सीट शेयरिंग को लेकर आपस में ही उलझ गए हैं। एनडीए में तो सीट शेयरिंग लगभग तय हो चुका है, लेकिन महागठबंधन में तय नहीं हुआ है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Thu, 14 Feb 2019 09:41 AM (IST)Updated: Thu, 14 Feb 2019 11:18 PM (IST)
मिशन 2019: विपक्ष से लड़ने की बजाय आपस में ही उलझ रहे महागठबंधन के घटक दल
मिशन 2019: विपक्ष से लड़ने की बजाय आपस में ही उलझ रहे महागठबंधन के घटक दल

पटना [अरुण अशेष]। एनडीए की तरह महागठबंधन में भी सीटों का बंटवारा बिना शोर-शराबे के हो जाएगा, यह संभव नजर नहीं आ रहा है। एनडीए के बारे में बताया जा रहा है कि संसद की कार्यवाही स्थगित होने के बाद किसी दिन उम्मीदवार का नाम तय हो जाएगा। भाजपा, जदयू और लोजपा के बीच सीटों की संख्या बहुत पहले तय हो चुकी है।

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एनडीए के घटक दल किसी दिन यह घोषणा कर देंगे कि किसके हिस्से में कौन-कौन सीटें गई हैं। फिर घटक दल उम्मीदवारों का नाम बता देंगे। उनके पास इस काम के लिए तीन मार्च तक का समय है। उस दिन गांधी मैदान में एनडीए की रैली है। रैली के मंच से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और लोजपा अध्यक्ष रामविलास पासवान एनडीए के उम्मीदवारों को लांच कर देंगे। 

इधर महागठबंधन की हालत ठीक इसके उलट है। कांग्रेस और हम की ओर से राय आई थी कि घटक दलों की एक समन्वय समिति बने। जो आजतक नहीं बनी। सभी दलों की साझी बैठक भी नहीं हुई। ले-देकर घटक दलों के नेता रांची जाकर राजद सुप्रीमो से मुलाकात कर चले आते हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री और हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतनराम मांझी ऐसा कुछ बोल जाते हैं, जो इस आशंका को बल देता है कि कहीं एनडीए से लडऩे से पहले महागठबंधन के घटक दल आपस में ही न दो-दो हाथ करने लगें।

मांझी का यह कहना महत्वपूर्ण है कि महागठबंधन के अलावा उनके पास और भी विकल्प है। याद होगा, जिस समय मांझी के पुत्र संतोष मांझी राजद की मदद से विधान परिषद पहुंच रहे थे, वे उसके कुछ दिन पहले तक एनडीए के अंग थे। कहिए तो अब तक ढंग से सिर्फ मांझी का मुंह खुला है।

कांग्रेस और रालोसपा दाएं-बाएं से अपनी इच्छा जाहिर कर रही है। कांग्रेस का मुंह बड़ा हो रहा है। आधिकारिक तौर पर कांगे्रस सीटों की संख्या के बारे में कुछ नहीं बता रही है। लेकिन, अलग-अलग दावा करने वाले नेताओं पर वह लगाम भी नहीं लगा रही है। नया फंडा यह है कि उसे छोटे प्रमंडल में एक और बड़े प्रमंडल में दो सीट चाहिए। यह संख्या लोकसभा की 15 सीटों तक जा सकती है।

पार्टी के कुछ नेता यह फार्मूला भी दे रहे हैं कि राजद-कांग्रेस 15: 15 सीटों पर लड़े। बाकी 10 सीटें अन्य घटक दलों को दे दी जाए। यह एनडीए के दो घटक दलों-भाजपा और जदयू के बीच हुए सीटों के बंटवारे की तर्ज पर है, जिसे राजद और कांग्रेस के निर्णायक नेताओं ने स्वीकार नहीं किया है।

यह बहस उस हालत में है, जबकि वाम दलों ने महागठबंधन के सामने अपना एजेंडा नहीं रखा है। चलताऊ तरीके से बताया जा रहा है कि तीनों वाम दलों-भाकपा, भाकपा माले और माकपा के लिए लोकसभा की एक-एक सीटें छोड़ी जा सकती हैं। अगर यह  सही है तो मान कर चलिए कि वाम दल इसे स्वीकार नहीं करेंगे।

विधानसभा के पिछले चुनाव में 43 सीटों पर लड़कर 0.61 फीसदी वोट हासिल करने वाली माकपा सहमत भी हो जाए, भाकपा और माले के लिए इसे स्वीकार करना संभव नहीं है। 2015 के विधानसभा चुनाव में माले को 1. 54 और भाकपा को 1.36 फीसद वोट मिले थे। इन दोनों वाम दलों को दो-दो सीटें चाहिए।

यह भी कम आश्चर्य की बात नहीं है कि महागठबंधन के दलों ने सीट शेयरिंग का कोई फार्मूला ही नहीं बनाया है। हां, घटक दलों का एक दृष्टिकोण बहुत साफ नजर आ रहा है-वे सब राजद से जुड़कर उसके प्रति अहसान जता रहे हैं। मानों भाजपा को हराने का कार्यभार सिर्फ उसी का है। यह दृष्टिकोण राजद की कतारों में गुस्सा पैदा कर रहा है, जो अंतत: महागठबंधन के बदले एनडीए के लिए फायदेमंद होगा।


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