नतीजों के बाद चुनावी वादों का क्या होगा, शहीदों का गांव जानता है!
मेरठ का भमौरी गांव आजादी की लड़ाई में बलिदान हुए क्रांतिकारियों की शहादत का गवाह है लेकिन आजादी के 70 साल बाद यहां मौजूद स्वतंत्रता संग्राम के निशान हल्के पड़ गए हैं।
नई दिल्ली, जेएनएन। दिल्ली से लगभग 100 किलोमीटर दूर मेरठ का भमौरी गांव आजादी की लड़ाई में बलिदान हुए क्रांतिकारियों की शहादत का गवाह है, लेकिन आजादी के 70 साल बाद यहां मौजूद स्वतंत्रता संग्राम के निशान हल्के पड़ गए हैं। गांव में रेखाओं की तरह खिंची छोटी और संकीर्ण गलियों के चौराहे पर भमौरी का शहीद स्मारक जीर्ण-शीर्ण हालत में खड़ा है, पास ही में गांव का डाक खाना है।
स्मारक की बदहाली देख ये यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि यहां 1942 में क्रांतिकारियों ने वतन को सींचने के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया था। अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 18 अगस्त 1942 को भमौरी गांव में मोटो की चौपाल पर क्रांतिकारियों की सभा हो रही थी, तभी अंग्रेजी फौज ने अचानक हमला कर दिया। अंग्रेजी सिपाहियों ने उन पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दीं, जिसमें कई क्रांतिकारी मौके पर ही शहीद हो गए।मौजूदा हालात में शहीदों के नाम स्मारक के खंभों पर फीके से दिखते हैं। स्मारक के कई कमरों पर ताले लगे हैं। गांव के पूर्व प्रधान दिनेश कुमार बताते हैं कि एक समय गांधी आश्रम के लोग यहां पर खादी बुनते थे। लेकिन, आज इन तालों के पीछे और भी बदहाली बंद है।
स्थानीय लोग कहते हैं कि जब अंग्रेजों की गोलियां में कई लोग घायल हुए थे, अंग्रेजों ने सभा का नेतृत्व कर रहे बलिया निवासी रामस्वरूप शर्मा की गर्दन कलम कर दी थी। शहीद और घायल हुए क्रांतिकारियों के कई परिवार वाले भमौरी में ही रहते हैं। भमौरी में इनके घर ढूंढ़ना मुश्किल नहीं है।मिसाल के तौर पर स्वतंत्रता सेनानी रणधीर सिंह का घर, उनके मकान के बाहर रणधीर सिंह का नाम लिखा हुआ है। पूछने पर परिवार के लोग उनकी तस्वीर और इंदिरा गांधी द्वारा आजादी की 25वीं सालगिरह पर दिया गया मेमेंटो ले आते हैं। रणधीर सिंह के परिवार के लिए कुछ सालों तक कांग्रेस का साथ देने के लिए इतना काफी था, लेकिन अब नहीं।
रणधीर सिंह के परिवार के चेतन कहते हैं, 'जब बाबाजी थे, हम कांग्रेस को वोट करते थे. लेकिन, कांग्रेस ने कुछ नहीं किया। 18 अगस्त को नेता और अधिकारी आते हैं। लेकिन कुछ खास हुआ नहीं।' रणधीर सिंह के घर से कुछ ही कदम दूर पर एक और स्वतंत्रता सेनानी का घर है। यहां पर भी घऱ के बच्चे स्वतंत्रता सेनानी सुनते ही, मेमेंटो ले आते हैं।
राष्ट्रवाद, शहीदों और देशहित जैसे मुद्दों के शोर में स्थानीय किसान नामधो कहते हैं, 'कोई सुविधा नहीं है। सबको 2 हजार रुपया मिल रहा है। हम पर जुर्माना लग रहा है। गन्ने का भुगतान भी नहीं मिला।' स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को मिले मेमेंटो देखें, तो पता चलता है कि मेमेंटो पर स्वतंत्रता सेनानियों का जिक्र बहुत कम है, लेकिन स्थानीय नेताओं की तस्वीरें मेमेंटो पर भारी पड़ी हैं। नामधो कहते हैं, 'शहीदों को कोई नहीं पूछता। हमारे लिए कोई कुछ नहीं करता।'
भमौरी गांव में आजादी की लड़ाई का एक और स्मारक सुनसान पड़ा है। मौसम बदल गया है। चुनाव आ गए हैं। सबको जवानों, सेनानियों की चिंता है। चुनाव के बाद क्या होगा? दशकों से भमौरी में खड़ा शहीदों का स्मारक सब जानता है।
लोकसभा चुनाव के बारे में शहीदों का गांव भमौरी क्या सोचता है? जानने के लिए देखिए जागरण डॉट कॉम की ये खास इलेक्शन ग्राउंड रिपोर्ट।